Varanasi Holi: वाराणसी में त्यौहार का विशेष महत्व है. खासतौर पर यहां पर मनाए जाने वाले रंग उत्सव को लेकर एक अलग ही उमंग देखा जाता है. वाराणसी में मान्यता है कि महाशिवरात्रि के बाद से ही होली की खुमारी चढ़ने लगती है और होली तक अलग-अलग वर्ग द्वारा इसे खास अंदाज़ में मनाया जाता है.
वाराणसी में घाट की होली, विदेशियों की होली, महाशमशान की होली, बाबा विश्वनाथ संग होली ऐसे अनेक प्राचीन परंपराएं है, जो इस रंग उत्सव को बेहद खास बनाती हैं. बाहर से आने वाले लोगों इस महीने में जमकर वाराणसी के लोगों के साथ होली खेलते हैं.
काशी में खेली जाती है मसान की होलीप्राचीन शहर वाराणसी से जुड़ी परंपराओं के जानकारों की माने तो महाशिवरात्रि के दौरान भगवान काशी विश्वनाथ को अबीर गुलाल चढ़ाकर नगर में रंग उत्सव की शुरुआत हो जाती है. इसके बाद रंगभरी एकादशी के दिन बाबा मां गौरा का गौना लेकर जाते हैं. जिस दौरान वह काशी के लोगों के संग होली खेलते हैं, जिसे रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है. इस पर्व को काफी धूमधाम से वाराणसी में लोग मनाते है.
बीते वर्षों से यह पर्व पूरे देश में चर्चा के केंद्र में रहता है. दूसरे शहरों से लाखों की संख्या में लोग रंगभरी एकादशी के दिन बाबा संग होली खेलने वाराणसी पहुंचते हैं. इसके अगले दिन ही वाराणसी के दो प्राचीन मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर अघोरियों और घाट निवासियों द्वारा महाश्मशान की होली ( मसाने की होली ) खेली जाती है. यह अनोखी होली इसलिए मानी जाती है क्योंकि मोक्ष की नगरी काशी में जलती चिताओं के बीच लोग चिता भस्म से होली खेलते नजर आते हैं. बीते 5 वर्षों से यह काफी प्रचलित हो चुकी हैं.
विदेशी भी होते हैं वाराणसी के रंग उत्सव में शामिलइसके अलावा वाराणसी के घाट पर खेले जाने वाली होली काफी मशहूर है. जिसमें लोग पारंपरिक संगीत गाना और खान-पान के साथ होली खेलते हैं. साथ ही होली के एक-दो दिन पहले ही वाराणसी के घाट पर विदेशी भी नाचते गाते होली खेलते नजर आते हैं, जिसे विदेशियों की होली के रूप में भी पहचाना जाता है. होली समाप्त होने के बाद हफ्तों तक वाराणसी के अलग-अलग वर्ग की तरफ से कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाता है, जिसमें होली की गीत और कविताएं शामिल होती है.
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