देशभर में सुर्खियों में रहे बिसहाड़ा गांव के अखलाक हत्याकांड मामले में एक बार फिर बड़ा मोड़ आया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस मामले में सभी आरोपियों के खिलाफ दर्ज मुकदमे वापस लेने के लिए अदालत में औपचारिक अर्जी दाखिल की है. यह अर्जी सूरजपुर स्थित स्थानीय अदालत में दी गई है, जहां अब 12 दिसंबर को इस पर महत्वपूर्ण सुनवाई होगी. अदालत का यह निर्णय इस बहुचर्चित केस है.

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वहीं अखलाक की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता युसूफ ने सरकार की अर्जी पर गहरी आपत्ति जताई है. उन्होंने कहा कि एडीजीसी द्वारा कोर्ट में केस वापसी का प्रार्थना पत्र लगाया गया है, जबकि मामले में अभी भी गवाही की प्रक्रिया जारी है. उन्होंने कहा यह हत्या और मॉब लिंचिंग का गंभीर मामला है. ऐसे मामलों में केस वापसी की प्रक्रिया सरल नहीं होती. 

केस खत्म करने की अर्जी लगाना एक अजूबा

उन्होंने कहा कि इस समय केस खत्म करने की अर्जी लगाना एक अजूबा है. अधिवक्ता के अनुसार, मृतक पक्ष की ओर से एक महत्वपूर्ण गवाह की गवाही भी रिकॉर्ड की जा चुकी है. इसके बावजूद सरकार द्वारा केस वापसी की पहल कई सवाल खड़े करती है. अब अदालत 12 दिसंबर को यह तय करेगी कि इस अर्जी पर आगे क्या कार्रवाई की जाए.

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क्या था बिसहाड़ा का अखलाक हत्याकांड

गौरतलब है कि बिसहाड़ा गांव की यह घटना 28 सितंबर 2015 को घटी थी, जब जारचा थाना क्षेत्र के अंतर्गत गौमांस रखने के शक में भीड़ ने अखलाक के घर पर हमला कर दिया था. भीड़ द्वारा पीट-पीटकर अखलाक की मौत हो गई, जबकि उनका बेटा दानिश गंभीर रूप से घायल हुआ था.

राजनीतिक दलों ने इसे बनाया था बड़ा मुद्दा

वहीं घटना के बाद कई राजनीतिक दलों ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था, वहीं उस दौरान सांप्रदायिक तनाव बढ़ा था,बिसहाड़ा गांव देश-विदेश की सुर्खियों में आ गया, मामले में विवाद तब और बढ़ा जब गांव के एक मंदिर के लाउडस्पीकर से गौ–हत्या की सूचना प्रसारित की गई, जिसके बाद बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठा हो गई और हिंसा हुई.

बता दें कि यह घटना 12 दिसंबर पूरे देश की नजरें इस फैसले पर सरकार की केस वापसी की अर्जी और अधिवक्ता की कड़ी आपत्तियों के बीच अब निगाहें पूरी तरह 12 दिसंबर पर टिक गई हैं. अदालत का निर्णय न सिर्फ इस मामले की कानूनी दिशा तय करेगा, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर भी इसके दूरगामी प्रभाव देखे जाएंगे.