उत्तर प्रदेश में बहुचर्चित अनामिका शुक्ला शिक्षक भर्ती घोटाले में सोमवार को बड़ा मोड़ आया. कोर्ट के आदेश पर नगर कोतवाली पुलिस ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी अतुल तिवारी समेत 8 लोगों के खिलाफ फर्जी नियुक्ति और सरकारी धन गबन के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है. इस मामले ने बेसिक शिक्षा विभाग में फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार की गहरी परतें उजागर की हैं.
2020 में ये मामला चर्चा में आया था, जिसने यूपी के शिक्षा विभाग में फैले भ्रष्टाचार की जड़ों को उजागर कर दिया था.
क्या था पूरा मामला ?
दरअसल शिकायतकर्ता प्रदीप कुमार पांडेय ने कोर्ट में याचिका दायर कर आरोप लगाया कि बेसिक शिक्षा विभाग में एक संगठित गिरोह (सिंडिकेट) सक्रिय है, जो नौकरी चाहने वालों की शैक्षिक डिग्रियों का दुरुपयोग कर फर्जी नियुक्तियां करता है. याचिका के मुताबिक अनामिका शुक्ला को 2017 से नियमित वेतन मिल रहा था, लेकिन 2020 में उन्होंने दावा किया कि वह बेरोजगार हैं. जांच में सामने आया कि उनकी कोई औपचारिक नियुक्ति ही नहीं हुई थी, फिर भी उनके नाम पर वेतन भुगतान जारी रहा.
शिकायतकर्ता ने दावा किया कि इस फर्जीवाड़े से करोड़ों रुपये का सरकारी धन गबन किया गया. इससे पहले अनामिका शुक्ला ने भी नगर कोतवाली में अपने दस्तावेजों के दुरुपयोग की शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने खुद को बेरोजगार बताया था.
आरोपियों के नाम और कानूनी कार्रवाई
कोतवाली नगर के प्रभारी निरीक्षक विवेक त्रिवेदी ने बताया कि आरोपियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
- जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) अतुल तिवारी
- तत्कालीन वित्त एवं लेखा अधिकारी सिद्धार्थ दीक्षित
- पटल लिपिक सुधीर सिंह
- अनुपम पांडेय
- अनामिका शुक्ला
- भैया चंद्रभान दत्त स्मारक विद्यालय, रामपुर टेंगरहा के प्रबंधक दिग्विजयनाथ पांडेय
- विद्यालय के प्रधानाचार्य
- एक अज्ञात व्यक्ति
अपर पुलिस अधीक्षक (पूर्वी) मनोज रावत ने बताया कि 24 अगस्त को माननीय न्यायालय के आदेश पर भारतीय नवीन संहिता (बीएनएस) की धारा 175(4) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. यह मामला सरकारी दस्तावेजों के दुरुपयोग और सरकारी धन के गबन से संबंधित है. मामले की जांच उप-निरीक्षक शुभम दुबे को सौंपी गई है, और साक्ष्यों के आधार पर अग्रिम कार्रवाई की जाएगी.
2017 से हो रहा भुगतान
याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता अमित दुबे ने बताया कि बेसिक शिक्षा विभाग में डाटा लीक कर फर्जी नियुक्तियां की जाती हैं, जिससे करोड़ों रुपये का गबन होता है. उन्होंने कहा कि अनामिका शुक्ला के मामले में 2017 से वेतन भुगतान हो रहा था, जबकि 2020 में उनकी अस्थाई नियुक्ति दिखाई गई, जो संदेहास्पद है.
अनामिका शुक्ला प्रकरण का इतिहास
यह मामला पहली बार 2020 में सुर्खियों में आया था, जब अनामिका शुक्ला ने दावा किया कि उनके शैक्षिक दस्तावेजों का दुरुपयोग कर फर्जी नियुक्तियां की गईं. जांच में पता चला कि उनके नाम पर कई स्कूलों में नियुक्तियां दिखाई गईं, जिनमें से कुछ में उन्होंने कभी काम ही नहीं किया. इस घोटाले ने उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में गहरे भ्रष्टाचार और लापरवाही को उजागर किया.
विभाग पर सवाल
इस मामले ने बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं. शिकायतों के बावजूद विभाग द्वारा कोई ठोस कार्रवाई न किए जाने पर कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा. मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अमित सिंह के आदेश ने शिक्षा विभाग में हड़कंप मचा दिया है.