उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर झीलों के आकार में तेजी से हो रही वृद्धि ने वैज्ञानिकों और प्रशासन की चिंता बढ़ा दी है. गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के अध्ययन में खुलासा हुआ है कि पिथौरागढ़ की दारमा घाटी में अर्णव झील, गंगोत्री की केदार ताल, और चमोली की वसुधारा झील का आकार क्रमशः 30%, 50%, और 80% तक बढ़ गया है. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि इन झीलों का विस्तार भविष्य में 2013 की केदारनाथ त्रासदी जैसी भीषण आपदा का कारण बन सकता है.

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ग्लेशियर झीलों का बढ़ता आकार: खतरे की घंटी

गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भू-विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. एमपीएस बिष्ट के नेतृत्व में किए गए अध्ययन में 2014 से 2023 तक के सैटेलाइट चित्रों का विश्लेषण किया गया. अध्ययन में सामने आए प्रमुख तथ्य:

  • अर्णव झील (दारमा घाटी, पिथौरागढ़): यह झील अब 700 मीटर लंबी और 600 मीटर चौड़ी हो गई है, जिसमें 30% की वृद्धि दर्ज की गई.
  • केदार ताल (गंगोत्री, उत्तरकाशी): इसका आकार 50% तक बढ़ा है, जो ग्लेशियर पिघलने का परिणाम है.
  • वसुधारा ताल (चमोली): इस झील का क्षेत्रफल 80% तक बढ़ गया है, जो इसे अति संवेदनशील बनाता है.

डॉ. बिष्ट ने बताया कि ये झीलें मोराइन डैम (हिमनद मलबे से बने प्राकृतिक बांध) के कारण बनी हैं. ग्लोबल वॉर्मिंग और जलवायु परिवर्तन के चलते ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे इन झीलों में पानी का स्तर बढ़ रहा है. यदि अतिवृष्टि या बादल फटने की स्थिति में ये डैम टूटते हैं, तो निचले इलाकों में जलप्रलय और भारी तबाही हो सकती है.

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वैज्ञानिकों की चेतावनी

डॉ. बिष्ट ने उत्तराखंड सरकार और अन्य वैज्ञानिक संस्थानों को सतर्क करते हुए कहा कि इन झीलों की निगरानी और जल निकासी के उपाय तत्काल शुरू किए जाने चाहिए. वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान ने भी वसुधारा ताल और केदार ताल के आकार में वृद्धि की पुष्टि की है. संस्थान ने हाल ही में 25 खतरनाक ग्लेशियर झीलों को चिह्नित किया था, जिनमें से 13 उत्तराखंड में हैं, और 5 अति जोखिम वाली श्रेणी में हैं.

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने भी इन झीलों को खतरनाक माना है. 2013 की केदारनाथ आपदा में चौराबाड़ी झील के टूटने से हुई तबाही और 2021 की चमोली बाढ़ इसका उदाहरण हैं.