नई दिल्ली: अगर पुलिस FIR दर्ज नहीं कर रही तो आप हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं या नहीं? इस सवाल का जवाब इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने दिया है. लखनऊ खंडपीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफ़आईआर) दर्ज कराने की मांग को लेकर सीधे हाई कोर्ट में याचिका नहीं दाखिल की जा सकती है.


पीड़ित व्यक्ति के पास मजिस्ट्रेट के समक्ष जाने का विकल्प


अदालत ने कहा कि पुलिस की तरफ से संज्ञेय अपराध की शिकायत न दर्ज करने पर भी पीड़ित व्यक्ति के पास मजिस्ट्रेट के समक्ष जाने का विकल्प है. न्‍यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्‍यायमूर्ति चन्द्रधारी सिंह की बेंच ने वसीम हैदर की याचिका पर यह आदेश पारित किया. याचिका में फर्जी बैनामा के एक मामले में एफआईआर दर्ज करने का निर्देश पुलिस अधिकारियों को देने की मांग की गई थी.


अदालत ने एफआईआर दर्ज कराने की मांग वाली याचिकाओं की बढ़ती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता में इस बात का प्रावधान है कि पुलिस अधिकारी द्वारा संज्ञेय अपराध में एफआईआर दर्ज करने से इंकार करने पर किन उपायों को अपनाया जा सकता है.


उपायों को न अपनाकर सीधा हाई कोर्ट में याचिकाएं दाखिल हो रहीं


कोर्ट ने कहा कि उक्त प्रावधानों में दिये गए उपायों को न अपना कर सीधा हाई कोर्ट में रिट याचिकाएं दाखिल कर दी जा रही हैं. अदालत ने आगे कहा, “एफआईआर दर्ज करने से इनकार होने पर शिकायतकर्ता को स्वतः रिट याचिका इस बात के लिए दाखिल करने का अधिकार नहीं प्राप्त हो जाता है कि अदालत परमादेश जारी करते हुए पुलिस अधिकारी को उसके वैधानिक दायित्व का निर्वहन करने के लिए बाध्य करे.” अदालत ने कहा कि एक संज्ञेय अपराध में एफआईआर न दर्ज होने की स्थिति में शिकायतकर्ता मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रार्थना पत्र दाखिल कर सकता है.


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