गोरखपुर: वैश्विक महामारी कोरोना के बीच बारिश ने अधिकारियों से लेकर शहर और गांव के लोगों के लिए मुसीबतें बढ़ा दी हैं. भारी बारिश की वजह से नदियां उफान पर हैं और सरकारी दावों की पोल खुलनी शुरू हो गई है. एक तरफ जहां नदियों का रौद्र रूप देख लोग डरे हुए हैं तो वहीं, अधिकारी नदी के तटपर पूजा-अर्चना करते हुए नजर आ रहे हैं. उनका कहना है कि नदियों की पूजा करना हमारी परंपरा का हिस्सा है.

गोरखपुर में राप्‍ती, रोहिन और सरयू नदियां उफान पर है. तीनों नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. यही वजह है कि नदियों के आसपास के बसे गांवों तक बाढ़ के पानी पहुंच जाने की वजह से प्रशासन के हाथ-पांव फूल रहे हैं. अधिकारी दावा कर रहे हैं कि इंतजाम पूरे हैं लेकिन पश्चिम और उत्तर में जंगल कौड़िया और पाली ब्‍लॉक में राप्‍ती और रोहिन आफत का सबब बनी हुई हैं. दक्षिण में सरयू खतरे के निशान से ऊपर बह रही है और सैकड़ों एकड़ फसलें बाढ़ के पानी में डूबकर बर्बाद हो चुकी हैं. इस बीच प्रशासन ने राहत पहुंचाने का दावा किया है.

गोरखपुर में राप्ती नदी के बढ़ते जलस्तर को रोकने के लिए अब बाढ़ खंड और सिचाई विभाग के अधिकारी नदी को मनाने के लिए पूजा-अर्चना करने लगे हैं. ऐसा लग रहा है कि जिस रफ्तार से नदी बढ़ रही है, उसकी रफ्तार को रोकना अब विभाग के बस का काम नहीं है. चौरीचौरा तहसील क्षेत्र के राप्ती नदी के बरही पाथ पर गंडक विभाग के मुख्य अभियंता आलोक जैन, अधिशासी अभियंता दिनेश सिंह, वीके यादव, जेई बृजेश द्विवेदी ने तटबंध पर पूजा-अर्चना की.

अधिकारियों ने नदियों के जलस्तर को नीचे करने के लिए पूजा की लेकिन जिस रफ्तार से पानी बढ़ रहा है उसे देखकर तो यही लगता है कि पानी अभी और मुसीबत बनेगा. नेपाल ने 3 दिन पहले ही चार लाख क्‍यूसेक पानी छोड़कर भारत के मैदानी इलाके में बहने वाली नदियों को उफनने पर आतुर कर दिया है. नदियों का तटबंधों पर दबाव जिस तरह से बढ़ रहा है, उससे अधिकारी भी सकते में हैं. नदियों ने तटबंधों को तोड़ा तो बाढ़ से तबाही मचेगी. ऐसे में संसाधन के साथ-साथ अब पूजा का भी सहारा है. वहीं जब पूजा करने वाले गंडक और बाढ़ खंड के मुख्य अभियंता अलोक जैन से बात की गई, तो उन्‍होंने कहा कि हमारे यहां नदियों की पूजा करने की परंपरा है.

गंडक और बाढ़ खंड के मुख्‍य अभियंता आलोक जैन ने कहा कि जहां रेनकट हो रहा है वहां पर मरम्‍मत की जा रही है. ऐसी कोई समस्‍या नहीं है. सवाल ये है कि अगर समय रहते बंधों की मरम्‍मत का काम पूरा हो जाता तो पूजा-पाठ की जरूरत नहीं पड़ती. अधिकारियों का कहना है कि पूजा-पाठ अपनी जगह है और बाढ़ से निपटने की तायारियां अपनी जगह. अधिकारियों का ये भी कहना है कि नेपाल ने चार लाख क्‍यूसेक पानी छोड़ा है. लेकिन बाढ़ जैसी की कोई समस्‍या नहीं है.

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