उत्तराखंड में धराली गांव में मंगलवार को बादल फटने और बाढ़ जैसी आपदा ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि राज्य की नदियां और पहाड़ क्यों लगातार विनाश का कारण बन रहे हैं? वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) की हालिया रिपोर्ट्स और पिछले वर्षों की पांच बड़ी आपदाओं के विश्लेषण से पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग, अवैध निर्माण, और पर्यावरणीय असंतुलन इसके मूल कारण हैं. धराली में 4 लोगों की मौत और 50 से अधिक लापता होने के बाद यह मुद्दा और गंभीर हो गया है.
आइए जानते हैं इसके पीछे के कारण और वाडिया संस्थान की रिपोर्ट के आधार पर उत्तराखंड की पांच प्रमुख आपदाओं का विश्लेषण.
वाडिया संस्थान की रिपोर्ट
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, जोकि हिमालय के भूवैज्ञानिक अध्ययन में अग्रणी है. संस्थान ने हाल के वर्षों में उत्तराखंड में आपदाओं के कारणों पर विस्तृत शोध किया है. संस्थान की रिपोर्ट्स के मुताबिक हिमालयी ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना और भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम हैं.
2021 की चमोली आपदा में WIHG ने पाया कि चट्टान-बर्फ लैंडस्लाइड और ग्लेशियर झील के फटने ने बाढ़ को बढ़ावा दिया. इसी तरह 2023 की जोशीमठ सब्सिडेंस की जांच में WIHG ने छोटे भूकंपों और अवैध निर्माण को जिम्मेदार ठहराया. धराली आपदा के संदर्भ में, विशेषज्ञों का मानना है कि ग्लेशियर झील के फटने या हिमस्खलन की संभावना है, जैसा कि WIHG के शोध में इंगित किया गया है.
उत्तराखंड की पांच बड़ी आपदाएं:
- 2013 की केदारनाथ आपदा: 16-17 जून 2013 को भारी बारिश और ग्लेशियर झील के फटने से मंदाकिनी और अलकनंदा नदियों में बाढ़ आई, जिसमें 5,000 से अधिक लोगों की मौत हुई और अरबों का नुकसान हुआ. WIHG ने इसे ग्लेशियर पिघलने और मानव हस्तक्षेप का परिणाम बताया.
- 2021 की चमोली आपदा: 7 फरवरी 2021 को चट्टान-बर्फ लैंडस्लाइड ने ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में बाढ़ ला दी, जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए. WIHG ने इसके पीछे ग्लेशियर झील के टूटने को कारण माना.
- 2013 की उत्तरकाशी बाढ़: जून 2013 में भारी बारिश ने उत्तरकाशी में तबाही मचाई, जिसमें सैकड़ों घर नष्ट हुए. WIHG ने वनों की कटाई और मिट्टी क्षरण को जिम्मेदार ठहराया.
- 2023 की जोशीमठ सब्सिडेंस: जनवरी 2023 में जोशीमठ में जमीन धंसने से सैकड़ों घरों में दरारें आईं. WIHG की रिपोर्ट ने अवैध निर्माण और छोटे भूकंपों को इसके लिए दोषी माना.
- 2025 की धराली आपदा: 5 अगस्त 2025 को बादल फटने या ग्लेशियर झील के फटने से धराली में 4 मौतें और 50 से अधिक लापता. WIHG के प्रारंभिक विश्लेषण में ग्लेशियर गतिविधियों की भूमिका संदिग्ध है.
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
WIHG के शोध के अनुसार हिमालयी क्षेत्र में तापमान वृद्धि से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, जिससे नदियों का जलस्तर अनियंत्रित हो रहा है. धराली में बाढ़ इसके ताजा उदाहरण के रूप में सामने आई है. मौसम विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि बिना कदम उठाए भविष्य में और बड़ी आपदाएं संभव हैं.
अवैध निर्माण और वन कटाई
पर्यटन और बुनियादी ढांचे के विकास के नाम पर अवैध निर्माण और वनों की कटाई ने मिट्टी को कमजोर कर दिया है. WIHG की रिपोर्ट्स में जोशीमठ और चमोली जैसी घटनाओं में इसकी भूमिका स्पष्ट की गई है. पर्यावरणविदों ने सख्त नीतियों की मांग की है.
मानव गतिविधियों का योगदान
बढ़ती जनसंख्या और औद्योगीकरण ने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित किया है. WIHG ने सुझाव दिया कि जल प्रबंधन और जागरूकता से इस समस्या से निपटा जा सकता है.
सरकार और राहत कार्य
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने धराली के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत किया है, जिसमें ICU बेड और मनोचिकित्सक शामिल हैं. एनडीआरएफ और सेना राहत में जुटी हैं, लेकिन WIHG के अनुसार दीर्घकालिक समाधान के लिए पर्यावरण संरक्षण जरूरी है.