कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद डॉ. पीएल पुनिया ने शुक्रवार को बाराबंकी स्थित अपने आवास पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए संभल हिंसा रिपोर्ट को लेकर बड़ा बयान दिया. उन्होंने कहा कि आयोग द्वारा तैयार की गई यह रिपोर्ट पूरी तरह भरोसेमंद नहीं है. सही और विश्वसनीय आंकड़े तभी सामने आ सकते हैं जब भारत सरकार द्वारा जनगणना कराई जाएगी.
कांग्रेस नेता डॉ. पीएल पुनिया ने कहा कि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में स्वतंत्रता के समय यानी 1947 की स्थिति और जनसंख्या संतुलन का हवाला दिया है, लेकिन उस दौर के किसी भी आंकड़े को पूरी तरह प्रमाणिक नहीं माना जा सकता. उन्होंने कहा कि आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना के आंकड़े ही वास्तविक आधार माने जा सकते हैं. पुनिया ने सवाल उठाते हुए कहा कि किसी भी काल्पनिक तारीख को आधार बनाकर तथ्य पेश करना उचित नहीं है.
आयोग की कार्यप्रणाली पर कांग्रेस नेता ने उठाए सावल
कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने आयोग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि जिन लोगों को गिनती और आकलन का काम सौंपा गया था वह उनका दायित्व ही नहीं था. इसलिए ऐसी रिपोर्ट को सही मान लेना ठीक नहीं है. उन्होंने साफ कहा कि सही तस्वीर तभी सामने आएगी जब सेंसेस का ऑपरेशन पूरा होगा और भारत सरकार के द्वारा जारी आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध होंगे.
उन्होंने सरकार पर हमला करते हुए कहा कि आयोग को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं कराए गए, जिससे उसकी रिपोर्ट अधूरी और अविश्वसनीय साबित होती है. पुनिया ने दोहराया कि इस रिपोर्ट के आधार पर किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी और लोगों को गुमराह करने वाला भी हो सकता है.
महिलाओं व दलितों पर अत्याचार की घटनाएं थमी नहीं- पीए एल पुनिया
प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ. पीएल पुनिया ने प्रदेश की मौजूदा स्थिति और सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठाए. उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले आठ वर्षों में अपराध और अत्याचार बढ़े हैं, न्याय व्यवस्था चरमराई है और महिलाओं व दलितों पर अत्याचार की घटनाएं थमी नहीं हैं. उनका कहना था कि "बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ" जैसे नारे सिर्फ कागजों तक सीमित रह गए हैं, जबकि राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट खुद बता रही है कि उत्तर प्रदेश से सबसे अधिक शिकायतें आ रही हैं.
राजनीतिक संरक्षण पाकर खुलेआम अपराध करते हैं कुछ लोग
उन्होंने आगे कहा कि प्रदेश की न्याय व्यवस्था जाति और धर्म देखकर चलती है. कुछ लोग राजनीतिक संरक्षण पाकर खुलेआम अपराध करते हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती. ऐसी परिस्थिति में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को नैतिकता के आधार पर इस्तीफा दे देना चाहिए.