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Madrasa Survey: मदरसों के सर्वे पर बाल आयोग का बड़ा बयान, जताई मानव तस्करी की आशंका

Madrasa Survey: यूपी राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने मदरसों को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने मदरसों में मानव तस्करी की आशंका जताई है.

Madrasa Survey In UP: यूपी राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. शुचिता चतुर्वेदी ने मदरसों के नाम पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग की बात कही है.  उनके इस बयान से यूपी की सियासत गरमा गई है. इससे पहले डॉ. शुचिता ने ही जून में पत्र लिखकर गैर मान्यता प्राप्त मदरसे बंद करने की मांग की थी. प्रमुख सचिव अल्पसंख्यक कल्याण को लिखे इस पत्र के बाद ही मदरसों के सर्वे की कार्यवाई शुरू हुई थी. 

मदरसों पर खड़े किए गंभीर सवाल

डॉ. शुचिता ने कहा कि ह्यूमन ट्रैफिकिंग के जितने केस हमारे पास आते उनका सर्वे कर लीजिए तो बच्चे चाहे बिहार से जा रहे हों या नेपाल से, सभी मदरसे में शिक्षा प्राप्त करने जा रहे हैं. बाराबंकी में 11 बच्चियों को रेस्क्यू किया गया तो पता लगा मदरसे में पढ़ाने के लिए सूरत ले जा रहे हैं. सवाल ये है कि क्या यहां मदरसा नहीं? जब गुजरात से रिपोर्ट ली तो वहां बिहार के 188 और यूपी के 18 बच्चे थे. इसमें भी सिर्फ लड़कियां जाती हैं लड़के नहीं. ये क्या चल रहा, क्यों चल रहा है इसकी जानकारी होनी चाहिए. इनकी आड़ में कहीं ना कहीं ह्यूमन ट्रैफिकिंग है.

मानव तस्करी की जताई आशंका

उन्होंने कहा कि लखनऊ में केस आया तस्करी का पता लगा कि मदरसा ले जा रहे पढ़ाने के लिए. लखनऊ, गोरखपुर, कुशीनगर, बहराइच प्रदेश में मदरसों की भरमार है. फिर दूसरे राज्य में पढ़ाने क्यों ले जा रहे हैं. बच्चियों ने खुद बताया कि 1-1 साल हो गए मेरी बहन को ले गए थे आज तक नहीं लौटी क्या निगरानी की जरूरत नहीं है? अगर हम निगरानी कर रहे तो उसमें हिचक क्यों हैं?

शिक्षा के स्तर पर कही ये बात

मदरसों को लेकर उन्होंने पत्र क्यों लिखा इस सवाल के जवाब में डॉ. शुचिता ने कहा कि उन्होंने कई जिलों में मदरसों का निरीक्षण किया. इसमें देखा कि बच्चों को जानबूझकर एजुकेशन से दूर कर सरकारी योजनाओं से दूर कर सिर्फ धर्म की शिक्षा पर केंद्रित किया जा रहा है. ये उसे शिक्षा के अधिकार से वंचित कर रहा है. आयोग के निरीक्षण में जो कुछ निकल कर आया उसके आधार पर ही जून में पत्र लिखा गया. देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज और लखनऊ के मदरसों का निरीक्षण किया था. अनुदानित और गैर मान्यता प्राप्त दोनों का निरीक्षण किया.

डॉ शुचिता ने कहा कि लखनऊ के गोसाईगंज में मामला सामने आया था कि 2 बच्चों के पैरों को जंजीरों से बांधकर ताला डाल दिया था. जब वहां गए तो देखा 17 बच्चे थे, उनमें अधिकतर ऐसे बच्चे थे जो प्राइमरी स्कूल में पंजीकृत थे. उनको वहां से निकालकर मदरसों में लाया गया. आखिर क्या देना चाहते थे मदरसे में जो प्राइमरी स्कूल से निकालकर यहां लाए. स्थिति ये थी कि बच्चे बहुत पतले दुबले थे, अगर जांच हो तो 100 फ़ीसदी वह कुपोषित निकलेंगे. उन्हें सिर्फ आलू और चावल खिलाया जाता था.

गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे जरूरी

डॉ शुचिता ने बताया कि अंबेडकर नगर से 2 बच्चे भागकर आयोग के कार्यालय पहुंचे और बताया कि उन्हें मदरसे में बुरी तरह मारा जाता है. जब जानकारी ली तो पता चला वो भी गैर मान्यता प्राप्त था. आगरा के एक मदरसे में मौलवी ने बच्ची साथ दुष्कर्म किया वह भी गैर मान्यता प्राप्त था. जब अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी से इसकी जानकारी ली तो उन्होंने बताया कि उनके पास गैर मान्यता प्राप्त मदरसों की कोई जानकारी नहीं. यानी वहां घटित होने वाली किसी भी घटना की जिम्मेदारी कोई प्रशासनिक अधिकारी लेने को जिम्मेदार नहीं.

मदरसों को आधुनिक शिक्षा से जोड़ना जरूरी

हम सरकार को सुझाव देते हैं और आभारी है कि सरकार ने बाल आयोग के सुझाव को स्वीकार कर मदरसों के सर्वे के निर्देश दिए. मान्यता प्राप्त मदरसों को देखने की भी जरूरत है. मान्यता प्राप्त मदरसों के निरीक्षण में देखा कि जो मौलवी है वह मौलवी को पढ़ा रहा. आलिम, आलिम को पढ़ा रहा, कामिल कामिल को पढ़ा रहा, फाजिल फाजिल को पढ़ा रहा है. अब सवाल उठता के मौलवी, आलिम, कामिल और फाजिल इन की डिग्री है क्या? इनकी डिग्री है मात्र उर्दू अरबी फारसी और दीनियात की. जिसने मौलवी किया हो वो हाई स्कूल को गणित, सामाजिक विज्ञान, विज्ञान कैसे पढ़ायेगा? वह बच्चा मुख्यधारा में कैसे जुड़ेगा? 

सर्वे का विरोध करने वालों को जवाब

डॉ शुचिता ने कहा कि जो लोग सर्वे का विरोध कर रहे हैं वो सिर्फ राजनीति कर रहे हैं. इन्हें चलाने वालों के जो बच्चे होंगे वो खुद विदेशों में पढ़ रहे होंगे, किसी का बच्चा मदरसे में नहीं पढ़ रहा होगा. अलीगढ़ के मान्यता प्राप्त मदरसा का मामला आया. बच्चों से ढाई-ढाई हजार रुपए फीस ली जाती है. लड़कियों ने मदरसा छोड़ दिया, करीब ढाई सौ बच्चों ने मदरसा छोड़ दिया. वहां बच्चे बहुत सहमे थे, एक 7 साल का बच्चा था उसने बताया कि मैं यहां नहीं आना चाहता था लेकिन मौलवी साहब आए तो मां ने उनके साथ भेज दिया. जो बच्चे मदरसे बच्चे में पढ़ रहे उन्हें मिड डे मील यूनिफॉर्म का पैसा किताबें उपलब्ध कराया जाता है लेकिन मान्यता प्राप्त मदरसों के निरीक्षण में पाया गया कि वो अपने सिलेबस पढ़ाते हैं. 

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