Uttarakhand News: करोड़ों हिंदुओं की आस्था का केन्द्र भगवान् बद्रीनाथ (Badrinath) के लेप/अभिषेक के लिए नरेंद्रनगर (Narendra Nagar) के राज दरबार में शुक्रवार को नगर की सुहागिन महिलाओं द्वारा मूसल और सिलबट्टे से तिलों का तेल निकाला गया. हिंदुओं के सर्वोच्च तीर्थ के रूप में स्थापित बद्रीनाथ धाम के पूजापाठ के दौरान परंपरागत ढंग से बद्रीविशाल के लेप और अखंड ज्योति के लिए तिल के तेल की प्रक्रिया सदियों पुरानी है. जो कि आज भी निभाई जाती है.
कैसे पुरी हुई परंपरा?सदियों पुरानी परंपराओं के अनुसार भगवान ब्रदीविशाल के लेप और अखंड ज्योति जलाने के लिए उपयोग तिल का तेल सदियों से उपयोग में आता है. नरेन्द्रनगर स्थित टिहरी राजमहल में महारानी के अगुवाई में पवित्रता से राजपरिवार और नगर की सुहागिन महिलाओं द्वारा पीला वस्त्र धारण कर मूसल और सिलबट्टे से निकाला जाता है. शुक्रवार को तिल का तेल महाराजा की पुत्री श्रीजा शाह अरोड़ा की अगुवाई में नगर की 60 से अधिक सुहागिन महिलाओं द्वारा पीले वस्त्र धारण कर निकाला गया. इस दौरान मूसल और सिलबट्टे से परंपरागत तौर तरीकों को अपनाते हुए हाथों से निकाला गया है.
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क्या बोले राजपुरोहित?राजपुरोहित कृष्ण प्रसाद उनियाल द्वारा महाराजा मनुजेंद्र शाह की पुत्री श्रीजा शाह अरोड़ा के हाथों विधि विधान पूर्वक पूजा अर्चना के साथ तिलों का तेल पिरोने का श्रीगणेश किया गया. प्राचीन काल से ही तिलों का तेल निकालने की तिथि से ही बद्रीनाथ के कपाट खुलने की प्रकिया की शुरूआत माना जाता रहा है. तेल पिरोने के बाद तिलों का तेल एक विशेष बर्तन में गरम करने की साथ-साथ उसमें विशेष जड़ी बूटी भी डाली जाती है. ताकि तेल में लेश मात्र भी पानी ना रहे. पुनः पूजा-अर्चना और भोग लगाने के बाद तिलों के तेल को चांदी के कलश गाडू घड़ा में परिपूरित किया गया. यह गाडू घड़ा बद्रीनाथ धाम की धार्मिक पंचायत डिमरी समुदाय को सौंपा गया, जो गाडू घड़ा भव्य कलश शोभा यात्रा लेकर बद्रीनाथ धाम के लिए रवाना हो गए हैं. आज यह गाडू घड़ा कलश शोभायात्रा ऋषिकेश चेला चेतराम आश्रम में विश्राम कर, कल प्रात: बद्रीनाथ धाम के लिए पुन: रवाना होगी.
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