UP Politics: बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती के फैसलों पर कयासों का दौर थमने का नाम ही नहीं ले रहा है. यूपी की पूर्व सीएम मायावती के फैसले आए दिन सियासी पंडितों के लिए पहेली बन गए हैं. इसे समझना भी मुश्किल नजर आ रहा है कि आखिर मायावती कर क्या रही हैं या करना क्या चाहती हैं? इसकी शुरुआत लोकसभा चुनाव के दौरान ही हो गई थी.

दरअसल, पिछले एक दशक से राजनीतिक हाशिए पर चल रहीं मायावती पहले फैसला लेती हैं और फिर वो खुद बदल देती हैं. यही फिर दोहराया जाता है और स्थिति ऐसी बनती है कि अब हर फैसले पर सवाल खड़े होने लगे हैं. इसकी शुरुआत लोकसभा चुनाव के दौरान तब हुई जब मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को उसके एक विवादित बयान के बाद उत्तराधिकारी पद से हटा दिया था लेकिन मायावती यहीं नहीं रुकीं.

पहले बताया इम्मैच्योर फिर दोबारा दी जिम्मेदारी...लोकसभा चुनाव खत्म होने के कुछ दिनों बाद उन्होंने खुद ही अपना फैसला वापस लिया और भतीजे को पुरानी जिम्मेदारी वापस सौंप दी. जबकि मायावती ने उन्होंने हटाते हुए कहा था, ‘पूर्ण परिपक्वता’ हासिल करने तक उन्हें अपने उत्तराधिकारी की ज़िम्मेदारियों से मुक्त कर दिया है. लेकिन कुछ ही महीनों में ऐसी परिपक्वता आकाश आनंद के अंदर कैसे आ गई कि उन्हें पुरानी जिम्मेदारी के बाद दिल्ली चुनाव की कमान भी मिल गई.

अब बात यहीं खत्म नहीं हुई, दिल्ली चुनाव खत्म हुआ तो बसपा में सस्पेंस का दौर शुरू हो गया. चुनाव के बाद मायावती जब प्रेस कांफ्रेंस करने आईं तो आनंद के साथ दूसरे भतीजे ईशान को लेते आईं. इसके बाद ही राजनीतिक पंडितों के लिए पहेली वाला दौर शुरू हो गया और फिर हर कुछ दिन के बाद ये समझना मुश्किल होता गया कि आखिर मायावती करना क्या चाहती हैं?

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कयास लगाए गए कि अब राजनीति में ईशान की एंट्री तय है. लेकिन कुछ ही दिन बाद मायावती ने नया बम फोड़ा. उन्होंने आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को बाहर का रास्ता दिखा दिया. उनपर पार्टी के अंदर गुटबाजी करने का आरोप लगाा. इस फैसले के बाद आकाश आनंद को लेकर अटकलें शुरू हो गईं. सूत्रों की मानें तो पार्टी नेताओं ने आकाश आनंद से दूरी बनानी शुरू कर दी है.

उत्तराधिकार पर भी नया फैसलाइतना ही नहीं पहले तो यह माना जा रहा था कि बसपा चीफ के उत्तराधिकारी आकाश आनंद ही होंगे लेकिन अशोक सिद्धार्थ को निकालने के कुछ दिनों बाद ही मायावती ने इस पर भी नया फैसला ले लिया. उन्होंने जो बयान जारी किया उससे यह संकेत मिले कि जो उन्हीं (मायावती) की तरह पूरी तत्परता और सेवा भाव से मिशन और पार्टी के लिए काम करेगा, वही उत्तराधिकार के योग्य माना जाएगा.

उधर, अब जब रविवार, 2 मार्च को मायावती जब मीडिया के सामने आईं तो इस दावे को बल मिला और नई चर्चा शुरू हो गई.

मायावती जब रविवार को प्रेस कांफ्रेंस करने आईं तो उनके साथ केवल उनके भाई और आकाश आनंद के पिता आनंद ही नजर आए. यानी इस बार आकाश और ईशान में से कोई भी नहीं दिखा. इससे आकाश को साइड लगाने के दावे को बल तो मिला, साथ ही ये भी अटकलें शुरू हो गई कि ईशान की राजनीति में एंट्री पर होल्ड लग गया है. ऐसे में देखा जाए तो मायावती के फैसले ये संकेत दे रहे हैं कि राजनीति में उसकी घर वालों से ही दूरी बनाने लगी हैं. इन सबके बीच बसपा के नेता भी चुप हैं और मायावती के फैसलों के संदर्भ में सवाल-जवाब से कतरा रहे हैं.