बॉलीवुड के साथ-साथ आज के दौर में सब कुछ तेजी से बदल रहा है और तेजी से दौड़ भी रहा है। एक आज का वक्त है जब महज 5 मिनट में एक शार्ट फिल्म बन जाती है। तो वहीं एक वो दौर भी था जब 4 घंटे की फिल्में भी बनती थी। वहीं 70 के दशक में जाने-माने डायरेक्टर मनमोहन देसाई की सुपरहिट फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' का एक रिकॉर्ड हर किसी को हैरान करता है।

अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना और ऋषि कपूर की फिल्म 'अमर अकबर एंथोनी' के शुरू होने के पूरे 23 मिनिट बाद पर्दे पर इस फिल्म का नाम दिखता है। 'अमर अकबर एंथोनी'। आपको बता दें कि शायद की कोई और हिंदी फिल्म होगी जिसमे इतनी देर बाद फिल्म का टाइटल आता है। इन 23 मिनटों में डायरेक्टर ने फिल्म की कहानी को स्थापित किया है जिसमे दर्शक अमर अकबर और एंथोनी के बचपन को देखते हैं। इस सुपरहिट फिल्म की कहानी शुरू होती है कि रॉबर्ट (जीवन)  के लिए ड्राइवरी करने और उसके अपराध सिर पर लेकर जेल जाने वाला किशन लाल (प्राण) छूट कर घर लौटता है। उसे पता लगता है कि उसकी पत्नी भारती  (निरुपा रॉय) को टीबी की बीमारी हो चुकी है। उनके तीन बच्चों ने दो दिनों से खाना भी नहीं खाया है क्योंकि किशन लाल के जेल जाने के बाद रॉबर्ट ने अपने वादे के मुताबिक उसके घरवालों को पैसा नहीं भेजा। गुस्से में किशन लाल रॉबर्ट के महल में जाकर उसे गोली मारता है, मगर वह बुलेट प्रूफ जैकेट की वजह से बच जाता है।

वहां से भाग कर किशन लाल घर लौटता है और बच्चों को कार में लेकर भागता है। रॉबर्ट के आदमी उसके पीछे हैं, इसलिए वह एक बगीचे में गांधी जी की प्रतिमा के नीचे तीनों बच्चों को उताकर कार में भागता है। अमर उसके पीछे दौड़ता है और सड़क पर गिर कर बेहोश हो जाता है। बाकी दोनों बच्चे भी बिछड़ जाते हैं। उधर, सड़क पर पति-बच्चों को ढूंढती भारती को एक कार टक्कर मार कर चली जाती है। टक्कर में उसकी आंखों की रोशनी खो जाती है। तेजी से वक्त बदलता है और तीनों बच्चे अमर (विनोद खन्ना), अकबर (ऋषि कपूर), एंथोनी (अमिताभ बच्चन) के रूप में सामने आते हैं। चर्च के बाहर एंथोनी देखता है कि एक बूढ़ी महिला (भारती) को कार ने टक्कर मारी है और वह सड़क पर बेहोश है। वह उसे अस्पताल लाता है। पुलिस स्टेशन से अमर भी पहुंचता है और अस्पताल की डॉक्टर सलमा अली (नीतू सिंह) को अपने कव्वाली शो का निमंत्रण देने आया अकबर भी वहां आया हुआ है। गंभीर रूप से घायल भारती को खून दिए जाने की जरूरत है। यहां मनमोहन देसाई ने इमोशनल दृश्य रचा है कि एक कतार से तीनों बेटे अमर-अकबर-एंथोनी बेड पर लेटे हैं और उनका खून सामने बिस्तर पर बेहोश मां भारती को दिया जा रहा है। एक डॉक्टर के पूछने पर तीनों अपना-अपना नाम बताते हैं और तब पर्दे पर आता है, अमर अकबर एंथोनी। हिंदी की किसी और फिल्म संभवतः इतनी देर से टाइटल शुरू नहीं हुए।

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