चमोली: बीती 7 फरवरी को रैणी गांव के पास ऋषिगंगा में ग्लेशियर टूटने के साथ आये सैलाब ने कई जिंदगियां लील ली हो,लेकिन आपदा में जान गंवा चुके लोगो के परिजनों के साथ साथ बेजुबानों को आज भी अपनों के वापस लौटने का इंतजार है. इसी उम्मीद के साथ रैणी गांव में पूरी तरह तबाह हो चुके ऋषिगंगा प्रोजेक्ट के ऊपर बिखरे मलवे पर एक कुतिया आज भी अपनों के वापस आने का इंतजार कर रही है.


खाना-पीना छोड़ दिया है


7 फरवरी से दिन हो या रात ये बेजुबान उसी स्थान पर बैठकर मलबे को साफ करने में लगी मशीनों को निहारती रहती है. पास में ही निःशुल्क भंडारे का संचालन कर रहे संदीप भंडारी बताते है कि दिन में एक बार कुतिया भंडारे का आसपास जरूर आती है. जब हम कुतिया को कुछ भी खाने को देते है तो वह मुंह फेर लेती है. आपदा के पहले दिन से ही रैणी गांव में वैली ब्रिज निर्माण कार्य में जुटे बीआरओ के कुछ कर्मचारियों का कहना है कि 7 फरवरी से कुतिया मलबे के ऊपर इसी जगह पर बिना कुछ खाये पिये बैठी है. कई लोगों के द्वारा कुतिया को खाने के लिए बिस्किट, पुलाव भी दिया गया लेकिन कुतिया ने खाने में कोई रुचि नहीं दिखाई.


मलबे में दब गये थे बच्चे 


रैणी गांव के युवा बताते है कि यह गांव की ही कुतिया है, लेकिन अधिक समय ये ऋषिगंगा के कर्मचारियों के साथ ही रहती थी, और सभी कर्मचारी कुतिया को सुबह शाम का खाना भी देते थे. ऐसा भी बताया जा रहा है कि कुतिया ने कंपनी के भीतर ही कर्मचारी आवास के पास कुछ बच्चों को भी जन्म दिया था, जो कि 7 फरवरी को आई आपदा से आये मलवे के नीचे दफन हो गए, इसी चीज का सदमा कुतिया को लगा है.


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