Uttar Pradesh News: हम आप को एक ऐसे बच्चे से मिलवाते हैं जो पैदाइशी दोनों हाथों से दिव्यांग हैं लेकिन उसके हौंसलों की उड़ान को देखकर आप खुद दांतो तले उंगली दबा लेंगे. यूपी के बस्ती (Basti) का यह बच्चा कक्षा 6वीं का छात्र है और वह महज 11 साल की उम्र में अपनी किस्मत अपने हाथों से नहीं बल्कि पैरों की उंगली से लिख रहा है. उसका सपना पढ़ लिखकर डाक्टर बनना है. उसके पिता की दोनों किडनी खराब होने की वजह से आर्थिक स्थिति सही नहीं है. कक्षा 6 के छात्र आलोक कुमार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath) से पढाई में सहयोग के लिए मदद मांगी है

पैदाइशी दोनों हाथों से दिव्यांगकहते हैं कि अगर इंसान कुछ करने की ठान ले तो किसी भी परिस्थिति में अपने लक्ष्य को पा सकता है. हम बात कर रहे हैं यूपी में बस्ती जिले के रामनगर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय के कक्षा 6 के छात्र आलोक कुमार की. आलोक पैदाइशी दोनों हाथों से दिव्यांग है लेकिन उस बच्चे के जज्बे को देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाता है. दोनों हाथों से दिव्यांग होने के बावजूद आलोक ने अपने हौसले को कभी कम नहीं होने दिया.

साइकिल चलाकर जाता है स्कूलअपने हौसले की बदौलत वह सामान्य बच्चों की तरह बिना हाथ के अपना पूरा काम खुद करता है. वह खुद से साइकिल चलाकर स्कूल जाता है. आप बच्चे को साइकिल चलाते देखकर दंग रह जाएंगे. आलोक बिना हाथ के भी अपने कंधों के सहारे साइकिल को अच्छे ढंग से चलाता है. वह साइकिल से स्कूल पढ़ने जाता है और पैर से फर्राटेदार कापी पर लिखता है. बच्चे को पैर से लिखता देख आप दंग रह जाएंगे. 

अच्छी रायटिंग में लिखता है पैर सेवह बिलकुल सामान्य बच्चों की तरह पैर से अच्छी रायटिंग में लिखता है. बच्चे की रायटिंग देखकर कोई यह नहीं कह सकता है कि बच्चे ने अपने पैर की उंगलियों के सहारे इतनी अच्छी रायटिंग में लिखा है. बच्चे की ख्वाहिश है कि एक दिन पढ़ लिखकर वह डाक्टर बने लेकिन उसके इस सपने को साकार होने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. उसके पिता की दोनों किडनी खराब है और खेत बेचकर पिता का इलाज चल रहा है. बच्चे ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से अपनी पढाई में मदद की गुहार लगाई है ताकि वह पढ लिखकर डाक्टर बन सके और अपने सपने को साकार कर सके.

दिव्यांग छात्र आलोक बचपन से ही होनहार है. वह चार बहनों में इकलौता भाई है, जो पैदाइशी दोनों हाथों से दिव्यांग है. आलोक जब धीरे-धीरे बड़ा होने लगा और उसकी उम्र स्कूल जाने की हो गई तो गांव के अन्य बच्चों को स्कूल जाते देख उसका भी मन स्कूल जाने को करने लगा. उसी के बाद आलोक ने स्कूल जाकर पढ़ने की जिद ठानी और अपने पैरों से लिखना सीखना शुरू किया. 

पीछे मुड़कर नहीं देखाइसके बाद घर वालों ने बच्चे का एडमिशन करा दिया और अपने जज्बों और हौंसलों की वजह से बच्चा आज सामन्य बच्चों की तरह स्कूल में पढ़ रहा है और कभी उसने अपने दिव्यांग का बहाना बनाकर पीछे मुड़कर नहीं देखा. उसने स्कूल जाने के लिए साइकिल चलाना सीखा और अब साइकिल से स्कूल पढ़ने जाता है. घर वालों ने भी आलोक का हौसला बढ़ाया. 

11 साल के आलोक ने यह साबित कर दिखाया है कि अगर इंसान के अंदर हौसला है तो अपने लक्ष्य को किसी भी कीमत पर पा सकता है. कोई चीज उसमें रूकावट नहीं खड़ी कर सकती है. दोनों हाथों से दिव्यांग कक्षा 6 का 11 साल का छात्र आलोक उन हजारों दिव्यांगों को जीने और कुछ कर जाने की रोशनी दिखा रहा है. महज 11 साल के आलोक में जो हौसला है उसको देखकर कोई भी काम नामुमकिन नहीं लगता.

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