समाजवादी पार्टी के क़द्दावर नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री आजम खान की रिहाई के बाद प्रदेश में सियासी हलचलें तेज हो गई हैं. आज़म खान के बाहर आने के बाद जहां एक तरफ सपा अपने मुस्लिम वोटरों के बिखराव को रोक पाएगी. सियासी जानकारों का मानना है इससे बीजेपी को भी फायदा होगा. 

Continues below advertisement

जेल से बाहर आने के बाद आज़म खान ने साफ कर दिया था कि वो सपा को छोड़कर कहीं नहीं जाने वाले हैं. वो भले ही चुनाव न लड़ पाएं लेकिन, यूपी की सियासत में उनकी धमक अब भी कम नहीं हुई हैं. 

23 महीने जेल में रहने के बाद भी युवाओं में उन्हें लेकर जबरदस्त क्रेज हैं. समाजवादी पार्टी उनकी इसी लोकप्रियता को चुनाव में भुनाने की तैयारी में लग गई है. उनके सहारे अब सपा मुस्लिम वोटरों के बिखराव को रोकने की कोशिश करेगी. 

Continues below advertisement

उत्तर प्रदेश में सियासी हलचल तेज

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आज़म खान की अहमियत को अच्छी तरह से समझते हैं. इसलिए वो कभी उन्हें नाराज करना नहीं चाहेंगे. आजम खान ने भी इसी दबाव के जरिए पार्टी में अपनी अहमियत को कम नहीं होने दिया है. प्रदेश का सियासी इतिहास भी इस बात का गवाह रहा है. 

साल 2009 में जब मुलायम सिंह यादव और बीजेपी नेता कल्याण सिंह जब साथ आए थे तो सपा को आजम खान की नाराजगी का शिकार होना पड़ा था. इस दौरान उन्होंने सपा छोड़ दी थी. उनके इस फैसले के बाद मुस्लिम वोटर भी सपा से टूटते चले गए जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला. 

हिन्दू वोटरों का ध्रुवीकरण कर सकती है बीजेपी

राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आजम खान को भले ही सपा मुस्लिम चेहरे के तौर पर आगे न पाए लेकिन उनके सपा के साथ होने से ही पार्टी को काफी फायदा होगा. जिसका असर 2027 के चुनाव में दिखाई देगा. लेकिन, बीजेपी के लिए ये हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण का मौका है. 

आजम खान अपनी तीखी बयानबाजी और अलग अंदाज के लिए जाने जाते हैं. भारतीय जनता पार्टी उनके बयानों को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है और सपा को मुस्लिम तुष्टिकरण के नाम पर घेरने की कोशिश कर सकती है. जिससे हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सकेगा. 

सीतापुर कांड में आया लेडी टीचर का कनेक्शन! हाजिरी का दबाव बना रहे थे अधिकारी