इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शुक्रवार को इस बात पर नाराजगी जताई कि पूर्व आदेश के बावजूद, राज्य सरकार ने यह स्पष्ट जवाब नहीं दिया कि अगर कोई राजनीतिक दल जाति आधारित रैली आयोजित करता है तो वह क्या करेगी.

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हाईकोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 अक्टूबर की तारीख तय की है. न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने स्थानीय अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान नाराजगी प्रकट की.

हाईकोर्ट ने राज्य सरकार ने मांगा जवाब

हाईकोर्ट ने 11 जुलाई, 2013 से जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया था. खंडपीठ ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि वह सात अगस्त, 2024 के उसके आदेश के अनुपालन में तीन दिनों के भीतर हलफनामा दाखिल करे, अन्यथा संबंधित प्रमुख सचिव को अगली सुनवाई पर अदालत में उपस्थित होना होगा.

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सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार के वकील ने अदालत को बताया कि राज्य सरकार ने 21 सितंबर, 2025 को एक सरकारी आदेश जारी करके राज्य में राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. इस पर, अदालत ने राज्य सरकार के वकील से पूछा कि इस संबंध में हलफनामा दायर करने में फिर क्या समस्या थी. 

जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध

पिछली सुनवाई में, निर्वाचन आयोग ने भी कहा था कि उसने आदर्श आचार संहिता के तहत जाति आधारित रैलियों पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया है. अदालत ने राज्य सरकार से कार्रवाई करने के उसके अधिकार के बारे में स्पष्टीकरण मांगा था. लेकिन, कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया गया, जिससे पीठ नाराज़ हो गई.

अदालत ने 11 जुलाई, 2013 को राज्य में राजनीतिक दलों द्वारा जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया था. एक अंतरिम आदेश पारित करते हुए, अदालत ने कहा था कि जाति व्यवस्था समाज को विभाजित करती है और भेदभाव पैदा करती है. न्यायालय ने कहा था कि जाति आधारित रैलियों की अनुमति देना संविधान की भावना, मौलिक अधिकारों और दायित्वों का उल्लंघन है. 

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