UP Madarsa Board News: ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मदरसों से संबंधित फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि ये फैसला बेहद ही निराशाजनक है. मदरसों के जरिए अल्पसंख्यक समुदाय के लाखों बच्चे और बच्चियां शिक्षा हासिल कर रहे थे और अब वो अंधकार के साये में चले जाएंगे. अब फैसले के बाद जो सूरत-ए-हाल है, उससे जाहिर होता है कि मदरसों का वजूद खतरे में पड़ गया है. मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने ये बात इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की ओर से मदरसा तालिमी बोर्ड एक्ट 2004 को गैर संवैधानिक करार दिए जाने पर कही है.


मौलाना ने कहा कि भारत की आजादी से पहले 1933 से 1944 के बीच एक भाषाई नीति बनाई गई. इस नीति का मकसद ये था कि अरबी, फारसी, और संस्कृत आदि भाषाओं को तरक्की देकर आगे बढ़ाया जाए और इन भाषाओं को पढ़ने वाले छात्र और छात्राओं को रोजी रोजगार से जोड़ा जाए. साल 2003 तक ये व्यवस्था सुचारू रूप से चलती रही. अरबी और फारसी भाषा को बढ़ावा देने के लिए अरबी, फारसी बोर्ड के नाम से व्यवस्था कायम रही और दूसरी तरफ संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए संस्कृत बोर्ड भी काम करता रहा.


मौलाना ने पूर्व सपा सरकार को ठहराया जिम्मेदार


बरेलवी ने आगे कहा कि 2004 में समाजवादी पार्टी की सरकार ने एक नया एक्ट बनाया, जिसका नाम मदरसा एजुकेशन एक्ट रखा गया, अब यहां पर जो सबसे बड़ी सपा सरकार की तरफ से गलती की गई वो मदरसा के शब्द को लेकर हुई. मदरसे का शब्द आते ही धार्मिक शिक्षा का नाम जुड़ जाता है. चूंकि हमारे देश का ढांचा लोकतांत्रिक, जम्हूरी है. यहां किसी भी धर्म को बढ़ावा देने का भारतीय संविधान में कोई भी प्रिंसपल नहीं है, इसलिए जहां भी धार्मिक शिक्षा का नाम आएगा तो वहां पर हुकूमत की संस्थाएं जरूर सवाल खड़ी करेगी. बिल्कुल इसी तरह यहां पर भी मदरसों के बारे में सवाल खड़ा हुआ.


मदरसों पर बड़ा संकट खड़ा हो गया- मौलाना


मौलाना ने ये भी कहा अब मदरसों पर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है. इनको चलाना और बाकी रखना बहुत बड़ा मुद्दा बन गया है. मैं तो साफ तौर पर मदरसों की खराब स्थिति के लिए तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार को जिम्मेदार मानता हूं. अगर सपा सरकार ने मदरसा एजुकेशन एक्ट नहीं बनाया होता और अरबी फारसी बोर्ड ख़त्म न किया होता तो आज ये दिन न देखने पड़ते. मदरसों से वाबस्ता मजहबी कयादत (धार्मिक नेतृत्व) भी जिम्मेदार है. 


उन्होंने कहा कि इस मजहबी कयादत ने महीनों चलने वाले कोर्ट की बहस में अपना वकील नहीं खड़ा किया. सही ढंग से पैरोकारी भी नहीं की. बड़े- बड़े मदरसों के जिम्मेदारान चाहे वो सुन्नी हो या देवबंदी, वो खामोश बने रहे. मदरसों की दुर्दशा के लिए सिर्फ बीजेपी सरकार को दोष नहीं दिया जा सकता है. मजहबी कयादत को जिम्मेदारी लेनी होगी.


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