Uttar Pradesh News: भारत का 'खाद्य कटोरा' कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में खेती की तस्वीर अब बदल रही है. रसायनों और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से उपजने वाली बीमारियों और मिट्टी की गिरती उर्वरता को देखते हुए प्रदेश के किसान अब 'जैविक खेती' की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहे हैं. यह न केवल पर्यावरण के लिए सुरक्षित है, बल्कि किसानों की आय दोगुनी करने का एक ठोस जरिया भी बन रहा है.

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मिट्टी की सेहत और सरकारी प्रयास

उत्तर प्रदेश सरकार ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएं लागू की हैं. वर्तमान में, राज्य के गंगा किनारे बसे जिलों में 'नमामि गंगे' योजना के तहत प्राकृतिक खेती को प्राथमिकता दी जा रही है. सरकार का लक्ष्य गंगा के दोनों किनारों पर 5-5 किलोमीटर के दायरे में रसायनों के प्रयोग को शून्य करना है, ताकि पवित्र नदी का जल भी स्वच्छ रहे और मिट्टी की गुणवत्ता भी बनी रहे.

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महत्वपूर्ण तथ्य और आंकड़े

प्रमाणीकरण: यूपी के लाखों हेक्टेयर क्षेत्र को जैविक खेती के तहत पंजीकृत किया जा चुका है.बाजार की मांग: जैविक उत्पादों (जैसे काला नमक चावल, जैविक गुड़ और दलहन) की मांग वैश्विक बाजार में 15-20% की वार्षिक दर से बढ़ रही है.लागत में कमी: रसायनों और उर्वरकों पर होने वाला खर्च शून्य हो जाता है, जिससे छोटे किसानों की बचत बढ़ती है.

किसानों के लिए वरदान

जैविक खेती में गाय के गोबर और गौमूत्र से बनी 'जीवामृत' और 'घनजीवामृत' जैसी खाद का उपयोग होता है. इससे मिट्टी में मित्र कीटों और केंचुओं की संख्या बढ़ती है. उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र आज जैविक खेती के केंद्र के रूप में उभर रहा है, जहाँ पानी की कमी के बावजूद किसान कम लागत में बेहतर मुनाफा कमा रहे हैं. सिद्धार्थनगर का 'काला नमक चावल' इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहना मिल रही है.

चुनौतियां और भविष्य

हालांकि, जैविक खेती में शुरुआती 2-3 साल पैदावार थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन मिट्टी के सुधरने के बाद यह स्थिर हो जाती है. सरकार अब ब्लॉक स्तर पर 'जैविक हाट' और टेस्टिंग लैब स्थापित कर रही है ताकि किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य मिल सके.

उत्तर प्रदेश में जैविक खेती महज एक परंपरा की वापसी नहीं, बल्कि एक आर्थिक क्रांति है. यह आने वाली पीढ़ियों के लिए विष-मुक्त भोजन और एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है.