नई दिल्ली: तीन पीढ़ियों से कांग्रेस से रिश्ता रखने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद का बीजेपी में जाना मुख्य विपक्षी पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश में बड़ा झटका है. यूपी में कुछ महीने बाद ही विधानसभा चुनाव होना है और बीजेपी को एक बड़े और भरोसेमंद ब्राह्मण नेता की तलाश थी. शायद अब बीजेपी की तलाश पूरी हो गई है. जितिन प्रसाद एक युवा ब्राह्मण नेता माने जाते हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि जितिन प्रसाद की बदौलत सूबे में ब्राह्मणों की कथित नाराजगी दूर करने में कामयाबी हासिल हो सकती है.


बीजेपी के लिए अहम ब्राह्मण वोट बैंक
यूपी चुनाव में जाति समीकरण काफी अहम होता है. बीजेपी को अगर मिशन 2022 में कामयाब होना है तो वह ब्राह्मणों को अनदेखा नहीं कर सकती. यूपी में करीब 10 से 11 फीसदी ब्राह्मण है. साल 2017 में बीजेपी के कुल 312 विधायकों में 58 ब्राह्मण चुने गए थे. इनमें 9 ब्राह्मण विधायक मंत्री बनाए गए. ब्राह्मण समाज से आने वाले दिनेश शर्मा उपमुख्यमंत्री बनाए गए. श्रीकांत शर्मा, बृजेश पाठक, उपेंद्र तिवारी, नीलकंठ तिवारी और सतीश द्विवेदी मंत्री बने थे.


कांग्रेस का मुख्य वोट बैंक था ब्राह्मण
यूपी में पहले कांग्रेस के लिए मुख्य वोट बैंक ब्राह्मण समुदाय का माना जाता था. यूपी में अब तक 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे और सभी कांग्रेस पार्टी से थे. ब्राह्मणों ने 23 साल तक यूपी पर राज किया. आजादी के बाद राम मंदिर आंदलोन तक ब्राह्मण ज्यादातर कांग्रेस के साथ रहा. यूपी में आखिरी ब्राह्मण सीएम कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी थे. साल 1989 के बाद न तो कांग्रेस की सरकार बनी और न ही ब्राह्मण सीएम. रणनीति और समझदारी से वोटिंग के मामले में ब्राह्मण बेहतर माने जाते रहे हैं.


राम मंदिर आंदोलन के बाद ब्राह्मण बीजेपी की तरफ आने लगे. 6 दिसंबर 1992 के बाद गठबंधन की राजनीति शुरू हो गई. बीच के सालों गठबंधन की राजनीति के कारण ब्राह्मण वोटर बंटा रहा लेकिन कांग्रेस की प्रदेश में हालत खराब होने से धीरे-धीरे बीजेपी की तरफ आने लगा.


बीएसपी और एसपी ने ब्राह्मणों से समर्थन से बनाई सरकार
साल 2007 के चुनाव में मायावती के नेतृत्व में बीएसपी सरकार बनी थी. तब बीएसपी ने 56 ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें से 41 विधायक बने, माया ने ब्राह्मणों के समर्थन से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. बीएसपी ने इसे सोशल इंजीनियरिंग का नाम दिया था. बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्रा मायावती के साथ साए की तरह रहते थे. सरकार बनने पर माया ने 7 ब्राह्मणों को मंत्री बनाया था. रामवीर उपाध्याय, राकेश धर त्रिपाठी, नकुल दुबे, रंगनाथ मिश्र, राजेश त्रिपाठी और दद्न मिश्रा जैसे ब्राह्मण नेता मंत्री बनाए गए थे.


इसके बाद साल 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. एसपी के 21 ब्राह्मण विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. अभिषेक मिश्रा, पवन पाण्डेय और मनोज पाण्डेय सहित कई विधायक मंत्री बने थे. माता प्रसाद पाण्डेय विधानसभा के स्पीकर बनाए गए. एसपी ने यूपी में ब्राह्मण नेता जनेश्वर मिश्रा के नाम पर पार्क बनवाया. परशुराम जयंती पर छुट्टी भी घोषित की गई थी.


यूपी में क्या है जाति समीकरण
यूपी में जातीय समीकरण की शुरू से ही अहम भूमिका रही है. राजनीतिक पार्टियां जाति के आधार पर ही टिकटों का बंटवारा करती हैं. 25 फीसदी वोट बैंक दलितों का माना जाता है. ब्राह्मणों और ठाकुरों को अगड़ी जाति में माना जाता है. पिछली जाति का वोट बैंक 35 फीसदी है. इसमें 13 फीसदी यादव, 12 फीसदी कुर्मी और 10 फीसदी अन्य जाति के लोग आते हैं. प्रदेश में 18 फीसदी मुस्लिम और 5 फीसदी जाट वोट बैंक भी अहम भूमिका निभाता है.


यूपी में मुख्य रूप से बीजेपी, कांग्रेस, एसपी और बीएसपी के बीच मुकाबला होता है. आज के समीकरण के अनुसार, अगड़ी जाति के लोगों को बीजेपी का प्रतिनिधित्व माना जाता है. एसपी को पिछड़ी जाति का अगुवा और बीएसपी को दलित वोट बैंक का पैरोकार माना जाता है. उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2022 में विधानसभा चुनाव होना है और इसमें कांग्रेस प्रियंका गांधी वाड्रा के चेहरे के साथ अपने पुराने वोटबैंक (ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित वर्ग) में फिर से पैठ बनाने की कोशिश में है. जितिन प्रसाद का बीजेपी में जाना कांग्रेस की रणनीति के लिए बड़ा झटका है.


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