उत्तर प्रदेश की धरती एक बार फिर पूरी दुनिया के बौद्ध धरोहर मानचित्र पर छा गई है. 127 साल बाद सिद्धार्थनगर जिले के पिपरहवा स्तूप से जुड़े भगवान बुद्ध के पवित्र अवशेष भारत लौट आए हैं.  यह वही अवशेष हैं जो वर्ष 1898 में अंग्रेज पुरातत्वविद डब्ल्यू.सी. पेप्पे ने खुदाई के दौरान खोजे थे. औपनिवेशिक दौर में इन्हें विदेश ले जाया गया था और इस साल मई 2025 में ये अवशेष हांगकांग की एक अंतरराष्ट्रीय नीलामी में रखे गए. भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय और गॉदरेज इंडस्ट्रीज़ ग्रुप के प्रयासों से नीलामी रुकवाई गई और 30 जुलाई 2025 को इन्हें सम्मानपूर्वक भारत वापस लाया गया.

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इन अवशेषों को अब शीघ्र ही आम जनता के लिए प्रदर्शित किया जाएगा. माना जा रहा है कि इससे उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन संभावनाओं को नई ऊँचाई मिलेगी. खासकर बौद्ध देशों- जैसे श्रीलंका, थाईलैंड, जापान, म्यांमार और वियतनाम से श्रद्धालुओं का रुझान और बढ़ेगा.

उत्तर प्रदेश का बौद्ध त्रिकोण- सिद्धार्थनगर का पिपरहवा स्तूप (जहां अवशेष मिले), वाराणसी का सारनाथ (जहां बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया) और कुशीनगर (जहां महापरिनिर्वाण हुआ)- पूरे एशिया के करोड़ों बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए सबसे बड़ा तीर्थ क्षेत्र माना जाता है. यह प्रदेश भगवान बुद्ध की करुणा, शांति और सहअस्तित्व के संदेश को आज भी पूरी दुनिया तक पहुँचाता है.

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क्या है इन अवशेषों में?

पिपरहवा स्तूप से मिले इन अवशेषों में भगवान बुद्ध की अस्थियां, क्रिस्टल की पेटिकाएं, स्वर्णाभूषण, रत्न और बलुआ पत्थर का संदूक शामिल हैं.  इन पर ब्राह्मी लिपि में शिलालेख भी हैं, जो सीधे भगवान बुद्ध के शाक्य वंश से जुड़ाव को दर्शाते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि इन अवशेषों की घर वापसी भारत ही नहीं, पूरी मानवता के लिए शांति और करुणा का संदेश है. 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन अवशेषों की वापसी को भारत के लिए गर्व का पल बताया था. उन्होंने कहा कि यह केवल धार्मिक धरोहर नहीं है, बल्कि 140 करोड़ भारतीयों की सांस्कृतिक अस्मिता और विरासत से जुड़ा हुआ क्षण है.