सिरोही के पिण्डवाड़ा में प्रस्तावित चूना पत्थर खनन परियोजना को लेकर ग्रामीणों का गुस्सा शुक्रवार (19 सितंबर) को भीमाना पंचायत भवन में आयोजित जनसुनवाई में जमकर फूटा. कई गांवों से पहुंचे सैकड़ों लोगों ने एकजुट होकर कहा कि यह परियोजना उनकी जमीन, जंगल और जलस्रोत को तबाह कर देगी. ग्रामीणों का कहना था कि किसी भी कीमत पर खनन को मंजूरी स्वीकार नहीं होगी.
मैसर्स कमलेश मेटा कास्ट प्रा. लि. ने करीब 800.99 हेक्टेयर क्षेत्र में खनन का प्रस्ताव रखा है. ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि जनसुनवाई की सूचना ही छुपाई गई.
उनका कहना था कि यह पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (EIA Notification 2006) का सीधा उल्लंघन है. साथ ही पंचायतों की सहमति भी नहीं ली गई, जो पेसा कानून 1996 और संविधानिक प्रावधानों की अनदेखी है.
पंचायतों का सख्त रुख
भीमाना सरपंच हेमेंद्र सिंह ने कहा कि पंचायत ने कोई एनओसी जारी नहीं की है. भारजा पंचायत के सरपंच पुखराज प्रजापत ने कहा कि ग्रामीणों की सहमति के बिना खनन असंभव है. वहीं वाटेरा की सरपंच सविता देवी ने चेतावनी दी कि “जनता एकजुट है, परियोजना को हर हाल में रद्द कराया जाएगा.”
प्रशासन की सफाई पर संदेह
जनसुनवाई के दौरान एडीएम राजेश गोयल ने ग्रामीणों की आपत्तियां सुनीं और भरोसा दिलाया कि सभी बिंदुओं की रिपोर्ट उच्च स्तर पर भेजी जाएगी. लेकिन ग्रामीणों ने प्रशासन पर नेताओं के दबाव में काम करने का आरोप लगाया.
उनका कहना था कि जनसुनवाई को पंचायत भवन के छोटे कमरे में करने की कोशिश की गई, ताकि विरोध दबाया जा सके. लोगों के दबाव के बाद ही इसे बाहर आयोजित किया गया.
ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि खनन शुरू होने पर गांवों का जीवन पूरी तरह प्रभावित होगा. उनका कहना है कि खनन से उठने वाली धूलकणों के कारण दमा, कैंसर और अन्य सांस संबंधी बीमारियां बढ़ेंगी. खेतों में धूल जमने से पैदावार घट जाएगी और जमीन बंजर हो जाएगी.
भूजल का स्तर नीचे चला जाएगा, जिससे जल संकट और गंभीर हो जाएगा. इसके अलावा जंगल और वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाएगा, और स्थानीय पहाड़ियां, जिनसे ग्रामीणों की आस्था और परंपराएं जुड़ी हैं, पूरी तरह बर्बाद हो जाएंगी.
आदिवासी समाज पर गहरा असर
पिण्डवाड़ा क्षेत्र ट्राइबल सब-प्लान (TSP) क्षेत्र में आता है. यहां के आदिवासी परिवार खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं. उनका कहना है कि खनन उनकी आजीविका छीन लेगा. यह पेसा कानून 1996 और संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन का अधिकार), 48-A (पर्यावरण संरक्षण) और 51-A(g) (पर्यावरण बचाने का कर्तव्य) का उल्लंघन है.
ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से सीधे सवाल उठाए कि क्या पेसा कानून और संविधान की अनदेखी कर निजी कंपनी को फायदा पहुंचाया जाएगा. उन्होंने पूछा कि सूचना छुपाकर की गई यह जनसुनवाई वैध कैसे मानी जा सकती है और क्या उनके लिखित आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया जाएगा.
इसके अलावा, उन्होंने यह भी पूछा कि क्या पिण्डवाड़ा को भविष्य में खनन-मुक्त क्षेत्र घोषित किया जाएगा और क्या सूचना दबाने वाले अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी.
गांवों से आए लोगों ने साफ कहा कि उनकी पारंपरिक जलधाराएं, जंगल और खेत इस परियोजना से गंभीर खतरे में हैं. उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उनकी आपत्तियों को नजरअंदाज किया गया तो वे आंदोलन तेज करेंगे और विरोध किसी भी कीमत पर जारी रहेगा.