Shani Jayanti 2022 Puja Vidhi: कल सोमवार 30 मई को न्यायाधीश ग्रह शनि की जयंती यानी जन्मदिन है. इस बार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की देवपितृ कार्य सोमवती अमावस्या के दिन सुबह 7 बजकर 11 मिनट तक कृतिका नक्षत्र फिर रोहिणी नक्षत्र रहेगा. इस दिन शनि अपनी ही राशि कुंभ में वक्री हैं. पंडित सुरेश श्रीमाली ने इसको लेकर खास उपाय बताया है.


दरअसल हम अपना और अपने प्रियजनों का जन्मदिन धूमधाम से मनाते हैं, वैसे ही शनिदेव का जन्मदिन भी हमें पूरी श्रद्धा और प्रसन्न मन से मनाना है. क्योंकि सभी नौ ग्रहों में शनि जैसा मित्र नहीं तो उनके जैसा कठोर, निमर्म शत्रु भी नहीं है. शनि जब अपना दंड देते हैं तो सबसे पहले बुद्धि विपरीत कर देते हैं. हर युग में शनि का प्रभाव रहता है. द्वापर युग में पांडवों को दंड देने के लिए द्रोपदी की बुद्धि विपरीत की और दुर्योधन को कठोर वचन कहलाए तभी पांडवों को वनवास भोगना पडा. त्रेतायुग में रावण की बुद्धि विपरीत कर सीता का अपहरण करवाया और इसी से उसका नाश हुआ. कलियुग में तो ये सर्वाधिक व्यस्त ग्रह हैं.


गलत कर्म का सौ जन्मों तक दंड देते हैं शनि


शनि हमें इस जन्म में ही दंड नहीं देते बल्कि सौ जन्मों तक हमारे कर्मो के अनुसार दंड या फिर कृपा बरसाते हैं. इस जन्म में आप शनि के दंड से बचे हुए हैं तो निश्चित पूर्व जन्म के शुभ कर्मो का फल है और यदि इस जन्म में गलत कार्य कर रहे हैं तो अगले जन्म में वे आपकी कुंडली में ऐसे विराजमान होंगे कि आप दरिद्रता और दुखों को झेलने को बाध्य हो जाएंगे. इसलिए शनिदेव के जन्मदिन पर उन्हें तोहफे के रूप में अच्छे कर्म करने का उन्हें वचन दीजिए, हाथ जोड़कर जाने-अनजाने हुए अपराधों की क्षमा मांगिये और जैसे जन्मदिन पर हम मनपसंद मिठाई लाते हैं, वैसे ही शनि की पसंद का कड़वा तेल उन्हें अर्पित करें. उनको प्रिय लोहे का दान करें.


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शनि का साढ़ेसाती पड़ती है भारी


कहते हैं कि धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, पंछी सींचे सौ घड़ा, ऋतु आया फल होय. यानी आप भले ही रोज सौ घड़े पानी से पौधे को सींचे इससे वह जल्दी पेड़ बनकर फल नहीं दे देगा. वह तो अपना समय आने पर ही बड़ा होकर फल देगा. यह कहावत शनिदेव पर भी लागू होती है कि जब उनकी वक्र दृष्टि, साढेसाती हो तो कितना ही उपाय कर लो, कष्ट से मुक्ति और सुख तो समय आने पर ही मिलेगा. शनि की चक्की धीरे चलती है लेकिन पीसती बहुत बारीक है. शनि की अशुभ दशा में व्यक्ति इसीलिए आसमान से जमीन पर आ गिरता है.


मोक्ष प्राप्त करने में शनि ही सक्षम


शनि को परमात्मा की अगोचर या अदृश्य आंख कहा गया है. इनकी नजर से जड़-चेतन जगत में कोई पाप बच नहीं सकता. और पाप का फल आज नहीं तो कल वे अवश्य देते हैं. शनि के बारे में प्रसिद्ध है कि जैसे ब्रह्मा के क्रोध, विष्णु के चक्र और शिव के त्रिशूल से कोई बच नहीं सकता वैसे ही शनि के कर्म फल से देवता दानव और मानव कोई नहीं बच सकता. वे कर्मों का फल देते हैं लेकिन निष्पक्ष होकर, बिना भेद भाव के. जैसे आपके कर्म वैसा फल. शनि एकमात्र ऐसे ग्रह हैं जो मोक्ष प्रदान करने में सक्षम हैं.


शनि से कांपते हैं देवता
 
ऋषि कश्यप, पत्नी अदिति के पुत्र भुवन भास्कर सूर्य, इनकी पत्नी देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा की पुत्री संन्ध्या की छाया की सन्तान शनि को ग्रह रूप, देवाधिदेव भगवान् शिव से न्यायाधीश का उच्च पद प्राप्त हुआ. शनि की दृष्टि कहां, किस पर नहीं है. चाहे कोई राष्ट्राध्यक्ष हो या प्रधानमंत्री-मंत्री इससे कोई फर्क नहीं पड़ता पर कोई भगवान शिव या श्रीराम भक्त हनुमान का साधक या भक्त हो, धर्मनिष्ठ, सद्कर्मी, सद्चरित्र हो तो फर्क पड़ता है. शनि इनका अप्रिय-अहित नहीं करते. ज्योतिष, पुराण, शास्त्रों का स्पष्ट मत है कि शनि के प्रकोप के भय से मनुष्य तो क्या, देवता भी कांपते हैं. इनकी दृष्टि पड़ने से ही पार्वती पुत्र गणेश का सिर धड़ से अलग हो गया. इनकी वक्र द्रष्टि पड़ने से ही लंका जलकर राख हो गई. 


वैदिक काल में शनि देव को वरूण रूद्र के रूप में जाना जाता था जो परम न्यायाधीश हैं. रूद्र के स्वरूप में वे दैवीय न्याय तथा भगवान शिव के क्रोध को दर्शाते हैं, वरूण के स्वरूप में वे धर्म के प्रतीक हैं. इसलिए कहा जाता है कि रूद्र देव ही शनिदेव हैं जो व्यक्ति के कर्मों के अनुरूप फल देते हैं. जब कोई इनकी विपरीत दशा-द्रष्टि, दुष्प्रभाव की झपट में आजाएं तो किसी देवता आदि में साहस नहीं कि उसे शनि से बचा सकें.


वास्तु प्रवेश के लिए इसे माना गया है बड़ा सुख
 
ज्योतिष शास्त्र में ग्रह मण्डल में शनिदेव को सेवक का पद प्राप्त है. यह मकर तथा कुम्भ राशियों के स्वामी है. तुला राशि में 20 अंश पर शनि परमोच्च होते हैं, मेष राशि के 20 अंश पर परमनीच होते हैं. कुम्भ इनकी मूल त्रिकोण राशि भी हैं. शनि अपने स्थान से तीसरे, सातवें, दसवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखते हैं तथा इनकी दृष्टि को अशुभ कारक कहा गया है. जन्म कुण्डली में शनि षष्टम, अष्टम् भाव के कारक हैं. शनि के नक्षत्र हैं, पुष्य, अनुराधा तथा उत्तराभाद्र पद. शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा, प्रत्यधिदेवता यम हैं.


माना जाता है कि वास्तु का जन्म शनिवार के दिन हुआ था इसलिए शनिदेव का यह वार वास्तु प्रवेश के लिए बड़ा शुभ माना गया है. शनि 30 वर्षों में अपनी एक परिक्रमा को पूर्ण करते हैं. इन 30 वर्षों में वह दो बार ढै़य्या, एक बार साढ़े साती में आकर कुल 12-12 वर्ष जातक को प्रभावित करते हैं. इनकी ‘ढै़य्या‘ एक प्रकार से उनके द्वारा दिखाए जाने वाली ‘फिल्म का ‘एड‘ यानी विज्ञापन होती हैं.


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