Rajasthan News: सरिस्का वन क्षेत्र राजस्थान में बाघों के लिए सबसे अनुकूल अभ्यारण्य माना जाता है लेकिन रणथंबोर में क्षमता से अधिक बाघ होने के बावजूद उन्हें सरिस्का शिफ्ट नहीं किया जा रहा जबकि रणथंबोर से बाघों को शिफ्ट करने की मंजूरी राज्य और केंद्र सरकार से मिल चुकी है. वहां की लॉबी सरकार पर भारी पड़ रही है जिससे बाघ शिफ्ट नहीं किये जा पा रहे हैं. रणथंबोर में 43 बाघों की क्षमता वाले अभ्यारण्य में 80 बाघ हैं जिस वजह से 15 से ज्यादा बाघ टैरेटरी से बाहर निकल चुके हैं. अब इन बाघों से लोगों को भी खतरा है.


ग्रामीणों और बाघों के लिए खतरा
रणथंबोर नेशनल पार्क के 17 सौ वर्ग किलोमीटर में आज करीब 80 बाघ-बाघिन हैं. यह पार्क की क्षमता से कहीं ज्यादा है. इसमे 25 बाघ, 25 बाघिन और 24 शावक हैं.  हालात यह हैं कि रणथंबोर में अब बाघों के लिए जगह कम पड़ने लगी है जिससे बाघ बाहर का रुख करने लगे हैं. इससे ग्रामीणों और बाघों दोनों की जान पर खतरा मंडरा रहा है. इस समय करीब 15 बाघ ग्रामीण क्षेत्रों में घूम रहे हैं तो वहीं 24 शावक भी अब जवान हो चले हैं तो उन्हें भी अपनी टैरेटरी चाहिए. ऐसे में अब हालात ऐसे भी सामने आ सकते हैं कि या तो बाघ आपस मे लड़कर मरेंगे या गांवों में घुसकर लोगों को मारेंगे.


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रणथंबोर लॉबी सरकार पर भारी
रणथंबोर लॉबी सरकार पर भारी नजर आ रही है. दरअसल जब क्षमता से अधिक बाघ हैं तो बाघों की सुरक्षा को देखते हुए उन्हें अन्य पार्कों में शिफ्ट किया जाना चाहिए जबकि सरिस्का सीसीएफ आरएन मीणा द्वारा सरिस्का में दो बाघ और दो बाघिनों की आवयश्कता बताई गई है ताकि बाघों का लिंगानुपात बना रहे. केंद्र व राज्य सरकार ने यहां से टी 124 को सरिस्का शिफ्टिंग के आदेश भी दे दिए लेकिन रणथंबोर लॉबी सरकार पर इतनी भारी है कि एक साल बीत जाने के बाद भी आजतक टी 124 रिद्धि को शिफ्ट नहीं होने दिया गया. सरिस्का टाइगर फाउंडेशन के फाउंडर सचिव दिनेश दुर्रानी का मानना है बाघों को सरिस्का शिफ्ट किये जाने से सरिस्का भी आबाद होगा और बाघ भी सुरिक्षत रहेंगे. फिलहाल सरिस्का में 24 बाघ बाघिन हैं जबकि यहां 50 बाघ बाघिन आराम से रह सकते हैं.




रणथंबोर में क्षमता से अधिक बाघ
रणथंबोर में क्षमता से अधिक बाघों का संरक्षण किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि यहां आपसी संघर्ष में 6 बाघ अपनी जान गंवा चुके हैं. यहां 2021 में 26 शावकों का जन्म हुआ जिसमें दस मारे गए. 5 साल में सवाईवल रेट 100% से घटकर 72% पर आ पहुंचा है. वहीं इंसानी खतरे की बात करे तो 2015 से 2022 तक 8 मौतें सामने आ चुकी हैं और 48 लोग घायल  हुए हैं. सबसे बड़ी बात यह है जो बाघ संघर्ष या शिकार में मारे गए उन्हें गायब दिखा दिया गया. अभी भी हालात कुछ इस तरह के हैं कि यहां 9 बाघ टैरेटरी न मिलने से इधर उधर भटक रहे हैं. ये सभी दो से तीन साल तक के हैं. वहीं पांच बाघिनों की भी यही स्थिति बनी हुई है. अब टैरेटरी की लड़ाई में करीब 15 बाघ जंगल से खदेड़े जा रहे हैं जिससे वे बाहर गांव और खेतों की सीमा पर घूम रहे हैं. बाघों को बचाने के लिए जरूरी है कि इन्हें सुरक्षित दूसरे अभ्यारण्य में शिफ्ट किया जाए.


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