Shradh 2022: सौभाग्य स्वयं चलकर आपके द्वार तक आए और फिर भी आप उसका स्वागत स्तकार ना करें तो आपसे अधिक अभागा कौन होगा? लेकिन अगर पलक पावंडे बिछाकर उसका स्वागत किया जाए तो फिर सुख-सम्पत्ति, यश-कीर्ति, वंश वृद्धि के साथ परिवार में खुशियों का भंडार भरने से कोई नहीं रोक सकता. जी हां, आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से आश्विन कृष्ण की अमावस्या तक पितृपक्ष यानी श्राद्ध का समय वही समय है जब सौभाग्य आकर आपके द्वार पर खडा होता है. इस बार श्राद्ध पक्ष 10 सितम्बर से 25 सितम्बर तक हैं. क्या आपको पता है इस अवधि में हमारे पूर्वज पितृगण हमारे द्वार तक आते हैं.


जानिए कहां वास करते हैं पितृ


अधिकांश लोगों को शंका होती है कि आखिर पितृ हैं भी या नहीं ? हैं तो कहां हैं, कहां रहते हैं, कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं? इन सभी शंकाओं का निराकरण कर लीजिए जान लीजिए कि उनका निवास कहां हैं और कैसे वे आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक हमारे द्वार पर खडे होकर प्रतीक्षा करते हैं. चन्द्रमा के उर्ध्व भाग में यानी पिछले भाग में पितरों का लोक है और सारे पितर यहीं निवास करते हैं. ये आत्माएं यहां एक से लेकर एक हजार वर्ष तक रहती हैं. मृत्यु से लेकर उनका पुनर्जन्म होने तक इन आत्माओं का यही लोक होता है.


अब जानते है कैसे आते हैं हमारे द्वार ?


सूर्य की सहस्त्र किरणों में से एक सबसे प्रमुख किरण का नाम है अमा. सूर्य हजारों किरणों से तीनों लोकों को प्रकाशमान करते हैं. सूर्य की इन्हीं हजारों किरणों में से अमा नाम की ये प्रधान किरण है. तिथि विशेष को यही सूर्य किरण अमा चन्द्र का भ्रमण करती है तब उस अमा किरण के माध्यम से चन्द्रमा के उर्ध्व यानी पिछले भाग से पितर धरती पर उतर आते हैं. और अमावस्या को किरण का तेज समाप्त होने पर पुनः चन्द्रमा के उर्ध्व भाग लौट आते हैं. इसीलिए श्राद्ध पक्ष की अमावस्या का विशेष महत्व है. आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से अमावस्या तक पितर अपने परिजनों के द्वार पर इस आशा और विश्वास के साथ खडे रहते हैं कि उनके पुत्र-पौत्रादि उनके निमित्त श्राद्ध कर्म करेंगे. ये उनकी नेच्युरल ऐसपेक्टेशन है. श्राद्ध कर्म होने पर वे प्रसन्न होकर अपने परिजनों को सुख-सौभाग्य का आशीर्वाद देकर पुनः अपने लोक को लौट जाते हैं. जीते जी जिन पितरों ने हमें पाला-पोसा, स्वयं अभावों में रहकर हमें सहूलियते दी, उनके प्रति हमारा कर्त्वय है कि हम उनकी सद्गति के निमित्त श्राद्ध व तर्पण पूरी श्रद्धा के साथ करें. इससे सौभाग्य में उत्तरोतर वृद्धि होती रहती है.


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ढकोसला नहीं वैज्ञानिक आधार


युवा पीढी के कई लोग इसे ढकोसला कहते हैं. लेकिन हमारी सारी परंपराओं के पीछे वैज्ञानिक आधार जुडे हैं. श्राद्ध पक्ष में पितरों के धरती पर आने का भी आधार विज्ञान सिद्ध करता है. श्राद्ध के समय का धार्मिक, पौराणिक आधार है तो वैज्ञानिक आधार भी है, जैसे सूर्य, मेष से कन्या संक्रांति तक उत्तरायण व तुला से मीन राशि तक दक्षिणायण रहता है, इस दौरान शीत ऋतु का आगमन प्रारंभ हो जाता है. कन्या राशि शीतल राशि है. इस राशि की शीतलता के कारण चंद्रमा पर रहने वाले पितरों के लिए यह अनुकूल समय होता है. यह समय आश्विन मास होता है, पितर अपने लिए भोजन व शीतलता की खोज में पृथ्वी तक आ जाते हैं. वो चाहते हैं पृथ्वी पर उनके परिजन उन्हें तर्पण, पिण्डदान देकर संतुष्ट करें. इसके बाद शुभाशीष देकर मंगल कामना के साथ पुनः लौट जाते हैं.


श्राद्ध में भूलकर भी ना करें ये 7 काम


श्राद्ध की क्रिया में जिन्हें श्राद्ध कार्य करना है उन्हें पूरे पंद्रह दिनों तक क्षौरकर्म नहीं कराना चाहिये. पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये. प्रतिदिन स्नान के बाद तर्पण करना चाहिये. तेल, उबटन आदि का उपयोग नहीं करना चाहिये. दातुन करना, पान खाना, तेल लगाना, भोजन करना, स्त्री-प्रसंग, औषध-सेवन, दूसरे का अन्न- ये सात श्राद्धकर्ता के लिये वर्जित है. पुत्री का पुत्र, कुतप यानि मध्याह्न का समय तथा तिल- ये तीन श्राद्ध में अत्यन्त पवित्र हैं और क्रोध, अध्वगमन यानि श्राद्ध कर एक स्थान से अन्यत्र दूसरे स्थान में जाना तथा श्राद्ध करने में शीघ्रता- ये तीन वर्जित है.


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