Kota Suicide Case: कोचिंग संस्थानों के गढ़ कहे जाने वाले कोटा समेत पूरे राजस्थान में छात्रों की खुदकुशी के मामले कम होने का नाम नहीं ले रहे हैं. इसे लेकर राजस्थान हाईकोर्ट गंभीर चिंता जताते हुए सुओ मोटो को लेकर सुनवाई भी कर रही है. हाईकोर्ट पिछले 7 सालों से राजस्थान सरकार को छात्रों का जीवन बचाने के लिए कोई पॉलिसी बनाने का निर्देश दे रही है.

हालांकि कई सरकारें बदलने के बावजूद राज्य में अभी तक कोई पॉलिसी नहीं बन सकी है. पिछले दिनों विधानसभा में पेश किया गया बिल भी लटक गया है. कोर्ट के आदेश का पालन नहीं होने पर सरकार को अब एक बार फिर से फटकार लगाई है. राजस्थान सरकार के जारी किए गए 8 साल के रिकॉर्ड के मुताबिक अकेले कोटा शहर में औसतन हर महीने एक छात्र सुसाइड करता है. पिछले 8 सालों में कोटा शहर के कोचिंग संस्थानों में पढ़ने वाले तकरीबन 100 छात्रों ने खुदकुशी की है. इसके बाद दूसरा नंबर सीकर का आता है.

कई दूसरे शहरों में भी छात्रों ने पढ़ाई के मानसिक तनाव की वजह से खुदकुशी की है. विधानसभा से जारी हुए रिकॉर्ड के मुताबिक साल 2018 से इस साल 2025 अप्रैल तक कोटा शहर में 94, सीकर में 16, डीडवाना में 2 और जयपुर ग्रामीण में 1 छात्र ने खुदकुशी की. 

छात्रों के साथ ही उनके परिवार वालों की भी काउंसलिंग

छात्रों की खुदकुशी की घटनाओं पर साल 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने सुओ मोटो यानी स्वतः संज्ञान लिया था. हाईकोर्ट तब से इस मामले में लगातार सुनवाई कर रहा है और सरकार को समय-समय पर निर्देश भी दे रहा है. इस मामले में कोर्ट के नियुक्त किए गए न्याय मित्रों और दूसरे लोगों का सुझाव था कि खुदकुशी की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए छात्रों के साथ ही उनके परिवार वालों की भी काउंसलिंग की जाए. परिवार वालों की काउंसलिंग इसलिए जरूरी है ताकि वह अपने बच्चों पर सफलता का अनावश्यक दबाव न डालें.

हाईकोर्ट से पॉलिसी बनाए जाने का निर्देश देने का यह आठवां साल है. 8 सालों में तीसरी सरकार काम कर रही है, लेकिन इसके बावजूद छात्रों की खुदकुशी रोकने के लिए अभी तक कोई कानून नहीं बन सका है. जबकि सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक इन 8 सालों में 113 छात्र खुदकुशी कर अपनी जिंदगी खत्म कर चुके हैं. कहा जा सकता है कि अगर सरकार की तरफ से पॉलिसी बनाकर उस पर अमल किया जाता तो निश्चित तौर पर इनमें से तमाम छात्रों की जिंदगी बचाई जा सकती थी.

 सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है

हाईकोर्ट ने इस बार की सुनवाई में भी अब तक कोई पॉलिसी नहीं बनने पर गहरी नाराजगी जताई. हालांकि इस दौरान कोर्ट के संज्ञान में लाया गया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में भी सुनवाई चल रही है. सुप्रीम कोर्ट में 23 मई को सुनवाई होनी है, लिहाजा हाईकोर्ट ने कोई फैसला सुनाने के बजाय सुनवाई को कुछ दिनों के लिए टाल दिया है.

छात्रों की खुदकुशी के मामले में हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग भी पक्षकार है. आयोग की तरफ से कोर्ट में पेश होने वाले उसके अधिवक्ता वागीश कुमार सिंह का भी कहना है कि खुदकुशी की बढ़ती हुई घटनाओं को रोकने के लिए जल्द ही प्रभावी कानून बनने ही चाहिए. उनके मुताबिक आयोग ने इस बारे में स्टेक होल्डर्स की मीटिंग के साथ ही कोर्ट में भी अपना पक्ष प्रभावी तरीके से रखा है. 

कोचिंग संस्थानों पर इतना ज्यादा शिकंजा ना कसा जाए - कालीचरण सराफ 

कोटा समेत राजस्थान में स्टूडेंटस की आत्महत्या की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार ने पिछले दिनों विधानसभा में एक बिल पेश जरूर किया था. हालांकि इस बिल को लेकर विपक्ष के साथ ही सत्ता पक्ष के भी कई विधायकों ने एतराज जताया. 8 बार के विधायक कालीचरण सराफ ने एतराज जताते हुए कहा था कि प्रदेश सरकार कानून बनाने के बजाय केंद्र सरकार से तय की गई गाइडलाइन पर ही अमल कराए.

उनकी दलील थी कि बच्चों की खुदकुशी की घटनाएं कंट्रोल होनी चाहिए, लेकिन साथ ही कोचिंग संस्थानों पर इतना ज्यादा शिकंजा ना कसा जाए कि वह राज्य से बाहर चले जाएं. विधायक कालीचरण सराफ का कहना है कि राजस्थान में कोचिंग संस्थानों का 7 हजार करोड़ रुपये का कारोबार है. हजारों लोगों को इससे रोजगार मिला हुआ है. उनका यह रोजगार भी प्रभावित नहीं होना चाहिए. बहरहाल अब देखना यह होगा कि राजस्थान सरकार इस बारे में कोई कदम उठाती है या नहीं या फिर हाईकोर्ट ही सीधे तौर पर सरकार को कोई आदेश देकर कोचिंग में पढ़ाई करने वाले छात्रों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी तरफ से कोई पहल करता है.