जयपुर: राजस्थान सरकार के लिए रोज एक नया संकट खड़ा हो जाता है. जहां उनकी ही सरकार में 'कोल्ड वार' चल रहा है, वहीँ अब राजभवन भी सरकार पर अपनी 'आँखें' तरेर रहा है. राज्यपाल कलराज मिश्र ने तीन निजी विश्वविद्यालयों के विधेयकों को पुनर्विचार के लिए सरकार को लौटा दिया है. ड्यून्स विवि जोधपुर, व्यास विद्यापीठ विवि जोधपुर और सौरभ विवि हिंडौनसिटी (करौली) पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं. इन्हें 15वीं विधानसभा के सातवें सत्र में पारित किया गया था. राजभवन का कहना है कि इससे सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है. राज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत निर्धारित नियम-प्रक्रिया पूरा नहीं करने का हवाला दिया है. इससे उच्च शिक्षा मंत्री भी अभी अनजान हैं लेकिन सरकार में खलबली मच गई है.
विधेयक में हैं कमियां और दिए निर्देशराज्यपाल ने इनमें जो कमियां बताई हैं वो भी गंभीर किस्म की हैं. उनका कहना है कि ये बिल जल्दबाजी में लाए गए हैं. इनमें निर्धारित नियमों की पूर्णत पालना नहीं की किया गया है. निजी विश्वविद्यालय की स्थापना के संबंध में व्यापक विचार-विमर्श कर समग्र नीति बनाकर कार्रवाई करें. अधिकारी निजी विवि की कमियों की विस्तृत जांच कराएं. उच्च स्तर के राजस्व अधिकारियों से और न्यायिक जांच करवाने के बाद ही विवि की स्थापना की कार्यवाही करें. ताकि विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, रोजगार के अधिकाधिक अवसर मिलें और राजस्व की हानि न हो. इससे ये साफ़ है कि मामला और तूल पकड़ेगा.
राजस्व के नुकसान का हवाला
राज्यपाल ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखा है कि प्रस्तावित विवि भूमि, भवनों के नियमों की पालना के बगैर खुल रहे हैं. इनसे राज्य के राजस्व का भी सीधा नुकसान होता प्रतीत हो रहा है. पत्रावलियां को देखने के बाद ऐसा राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को लिखा है. इसके कई मायने निकाले जा रहे हैं. ऐसे समय में यह पत्र लिखा गया है जब खुद गहलोत सरकार 'संकट' का सामना कर रही है.
राज्यपाल ने की थी गहलोत की तारीफ
अभी तीन महीने पहले ही राज्यपाल कलराज मिश्र ने एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि आपसी बातचीत से समस्या का समाधान निकाल लेते हैं. उन्होंने यह भी कहा था कि मेरा लगातार राज्य के मुख्यमंत्री से मिलना होता है, उनसे बात होती है. कोई बात या कठिनाई होती है तो हम आपस में बात कर लेते हैं. राज्यपाल का तीन साल और सरकार का चार साल पूरा होने वाला है. वहीँ अब बिल को वापस लौटाना सरकार के लिए खतरे की घंटी समझी जा रही है.
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