Rajasthan Politics: राजस्थान में विधानसभा चुनाव के बाद बहुमत में आई भारतीय जनता पार्टी में अब मुख्यमंत्री की दौड़ चल रही है. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के बड़े चेहरों के बड़े अंतर से हार के कारणों पर चर्चा शुरू हो गई है. ऐसा ही एक उदाहरण उदयपुर में देखने को मिला, जहां कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता गौरव वल्लभ 32 हजार से ज्यादा वोटों से हारे हैं.


इसके पीछे राजनीतिक विश्लेषकों से दो बड़े कारण सामने आ रहे हैं. जबकि गौरव वल्लभ के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत खुद मैदान में उतरे, रोड शो के साथ ही जनसभाएं भी की थी. जिसके बाद भी वह बड़े अंतर से हार गए.


कांग्रेस का प्रत्याशी कभी स्थाई नहीं रहा, एक हार के बाद बदल चेहरा


उदयपुर शहर विधानसभा सीट से अंतिम बार वर्ष 1998 में कांग्रेस के त्रिलोक पुरबिया विधायक बने थे. इसके बाद से लगातार असम के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया ही जीतते आए. इस चुनाव में ताराचंद जैन रिकॉर्ड मतों से विजय हुए. रिकॉर्ड को देखे तो मोहनलाल सुखाडिया के बाद एक मात्र कांग्रेस के त्रिलोक पुरबिया ही है जो लगातार 1999 से 2008 तक 3 चुनाव लड़े जिसमें से एक ही बार वह जीते. इनके अलावा हर बार कांग्रेस ने चेहरे बदले. जैसे 2013 में दिनेश श्रीमाली, 2018 में गिरिजा व्यास और 2023 में गौरव वल्लभ ने चुनाव लड़ा. ऐसे में महामहिम गुलाब चंद कटारिया के जमीन से जुड़ाव के कारण उदयपुर बीजेपी का गढ़ बनता गया. 


गौरव वल्लभ को टिकट मिलने से शुरू हुई गुटबाजी


गौरव वल्लभ को उदयपुर शहर से टिकट मिलने की शुरुआत पर ही बाहरी व्यक्ति की बात पर कांग्रेस में विरोध शुरू हो गया. चर्चाएं यह भी है कि अंदर ही अंदर चुनाव के दौर गुटबाजी हुई. चुनाव के बाद गौरव वल्लभ ने खुद पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा था कि पार्टी विरोधी काम करने वालों के अच्छे दिन खत्म हुए.


मोहनलाल सुखाडिया के बाद बिखरी पार्टी


राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे मोहनलाल सुखाडिया उदयपुर से 4 बार 1952 से 1967 तक विधायक रहे. तब तक उदयपुर कांग्रेस का गढ़ था. इनके बाद पार्टी बिखरी और सिर्फ 2 बार ही चुनाव जीत सकी.


यह भी पढ़ेंः 
Sukhdev Gogamedi Murder: जयपुर में दिखा बंद का असर! बाजारों में पसरा सन्नाटा, लोगों ने टायर जलाकर दिखाया आक्रोश