आज जिले के मुख्यालय स्थित आठ परीक्षा केंद्रों पर कांस्टेबल भर्ती परीक्षा का आयोजन किया गया, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक किशोर सिंह ने बताया की एग्जाम में कुल 2160 परीक्षार्थी पंजीकृत है. यह परीक्षा दो पारियों में संपन्न हुई. जिसमें राजस्थान के करौली, कोटा, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, जयपुर, सीकर, डूंगरपुर, चितोड़गढ़,श्री गंगानगर सहित विभिन्न जिलों से आए परीक्षार्थियों ने परीक्षा दी. हालांकि, परीक्षा के आयोजन में जिला प्रशासन की संवेदनहीनता और लापरवाही के साथ अव्यवस्थाओं को देखा गया.
परीक्षा देने आए कई अभ्यर्थियों को सड़क किनारे दरी बिछाकर बैठते और सोते हुए देखा गया. जिला प्रशासन द्वारा न तो उनके बैठने की कोई समुचित व्यवस्था की गई और न ही उन्हें प्राथमिक सुविधाएं पानी छाया, बगैरा मुहैया करवाई गईं. दुर्गम क्षेत्रों से पहुंचे परीक्षार्थी खासे परेशान नजर आए.
'शासन व्यवस्था पर उठते हैं सवाल'
कई अभ्यर्थियों ने बताया कि उनके परीक्षा केंद्र 800 से 1000 किलोमीटर दूर आवंटित किए गए है. इससे उन्हें न केवल लंबी यात्रा करनी पड़ी, बल्कि परिवहन की सरकारी व्यवस्था भी न के बराबर थी. बसों की कमी और असमंजस की स्थिति ने उनकी परेशानी और बढ़ा दी. लेकिन जिन हालातों में उन्होंने परीक्षा दी, वो किसी भी संवेदनशील शासन व्यवस्था पर सीधा सवाल उठाते हैं.
मूलभूत सुविधाओं के लिए नहीं किया कोई ठोस इंतज़ाम
राजस्थान के सुदूर और दुर्गम जिलों से आए हजारों परीक्षार्थी सिर पर आसमान और नीचे फर्श की जगह सड़क पर दरी बिछाकर बैठे और सोते नजर आए. तस्वीरें और वीडियो यह बयां कर रहे हैं कि जिला प्रशासन ने आवास, विश्राम और मूलभूत सुविधाओं के लिए कोई ठोस इंतज़ाम नहीं किया.
विशेष रूप से महिला अभ्यर्थियों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. परीक्षा केंद्रों की दूरी, रुकने की उचित व्यवस्था का अभाव और सुरक्षा को लेकर चिंताएं लगातार सामने आती रहीं. जिसकी वजह से उन्हें परिजनों के साथ एग्जाम देने सेंटर पहुंचना पड़ना.
प्रशासन की तैयारियों पर करता है सवाल खड़े
अभ्यर्थियों ने व्यवस्थाओ पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार जब इतनी बड़ी भर्ती परीक्षा आयोजित कर रही है, तो क्या यह उसकी जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह आवागमन, रहने और सुरक्षा जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं सुनिश्चित करे?
हालांकि, परीक्षा केंद्रों पर सुरक्षा के लिए कड़ी व्यवस्थाएं की गई थीं, लेकिन सामान्य सुविधाओं का अभाव प्रशासन की तैयारियों पर सवाल खड़े करता है.
800 से 1000 किलोमीटर दूर तक सेंटर
कई परीक्षार्थियों ने बताया कि उन्हें परीक्षा केंद्र उनके घर से 800 से 1000 किलोमीटर दूर आवंटित किया गया. ना समय पर कोई सरकारी बस उपलब्ध थी, ना ही निजी साधनों की कोई सुविधा. राज्य सरकार द्वारा यात्रा के लिए कोई समुचित योजना नहीं बनाई गई, जिससे अभ्यर्थी घंटों भूखे-प्यासे सफर करते हुए परीक्षा केंद्र तक पहुंचे.
क्या सिर्फ परीक्षा कराना ही सरकार की जिम्मेदारी है?
आज का दिन सिरोही में केवल एक परीक्षा का आयोजन नहीं था, बल्कि यह एक प्रशासनिक असंवेदनशीलता की तस्वीर बनकर उभरा है. सवाल ये है कि क्या सरकार की जिम्मेदारी सिर्फ परीक्षा आयोजित कराना है? या फिर यह सुनिश्चित करना भी है कि परीक्षार्थी सम्मानजनक, सुरक्षित और सुविधा-संपन्न वातावरण में परीक्षा दे सकें?
सरकार और सिस्टम से सवाल - कौन लेगा जिम्मेदारी?
जब लाखों युवा रोजगार की उम्मीद में परीक्षा देने निकलते हैं, तो क्या सिर्फ परीक्षा आयोजित कर देना ही सरकार की जिम्मेदारी है?
800 से 1000 किलोमीटर दूर सेंटर देकर, बिना किसी यात्रा सुविधा के परीक्षार्थियों को बेसहारा छोड़ देना – क्या यही "युवा हितैषी नीति" है?
सरकारी परिवहन विभाग कहां था, जब हज़ारों परीक्षार्थियों को एक जिले से दूसरे जिले में जाना था? क्या कोई रूट प्लान, विशेष बस सेवा या हेल्प डेस्क की व्यवस्था की गई थी?
क्या प्रशासन को पहले से यह अनुमान नहीं था कि इतनी दूर से आने वाले परीक्षार्थियों को ठहरने और बैठने के लिए जगह की जरूरत पड़ेगी? फिर क्यों नहीं की गई कोई व्यवस्था?
महिला परीक्षार्थियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए क्या कोई विशेष कदम उठाए गए थे? अगर हां, तो वो कहां थे जब महिलाएं खुले में बैठी मिलीं?
जो परीक्षार्थी मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से थक कर परीक्षा देने पहुंचे — क्या उन्हें समान अवसर मिल पाया?
हर साल ऐसी ही तस्वीर सामने आती हैं — तो क्यों नहीं सीखा गया पिछले अनुभवों से? क्यों दोहराई जा रही हैं वही गलतियां?
क्या सिर्फ सोशल मीडिया पर फोटो वायरल होने के बाद ही सरकार जागेंगी, या पहले से तैयारी की संस्कृति विकसित होगी?
इन सवालों के जवाब किसके पास हैं — प्रशासन के, सरकार के, या फिर खुद परीक्षार्थियों को ही इन हालातों का दोषी मान लिया जाएगा?
अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार इस मुद्दे पर क्या संज्ञान लेती है, और आने वाले समय में ऐसी परीक्षाओं के लिए कितनी जनहितकारी और संवेदनशील नीति अपनाई जाती है.