राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने बीजेपी द्वारा शुरू किए गए ‘कार्यकर्ता सुनवाई कार्यक्रम’ को महज एक सियासी पाखंड करार दिया है. उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ताओं में बढ़ रहे आक्रोश और असंतोष पर लीपापोती करने का एक असफल प्रयास मात्र है.

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टीकाराम जूली ने सरकार से सवाल किया कि पिछली बार शुरू किए गए जनसुनवाई कार्यक्रम को अचानक बिना किसी कारण के बंद क्यों कर दिया गया था?

कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और असंतोष की गूंज

जूली ने कहा कि जिलों से लगातार यह फीडबैक मिल रहा है कि बीजेपी कार्यकर्ता अपनी ही सरकार में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और उनकी सुनवाई कहीं नहीं हो रही. इस असंतोष की गूंज अब मुख्यमंत्री निवास तक पहुंच चुकी है. उन्होंने कहा, "हाल ही में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के दौरे के दौरान भी कार्यकर्ताओं ने खुले तौर पर अपनी पीड़ा व्यक्त की थी, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए. यह प्रमाण है कि बीजेपी के अंदर असंतोष जड़ों तक फैल चुका है और अब ‘सुनवाई’ के नाम पर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की जा रही है."

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 सुनवाई कार्यक्रम की विश्वसनीयता पर सवाल

नेता प्रतिपक्ष ने तंज कसते हुए कहा कि बीजेपी ने पहले भी तामझाम के साथ सुनवाई का ढोंग रचा था, लेकिन उसे बीच में ही बंद कर दिया गया. उन्होंने कहा, "अगर इस बार भी इसे कुछ दिन चलाकर बंद ही करना है, तो सरकार पहले ही स्पष्ट कर दे. ताकि दूर-दराज से अपनी फरियाद लेकर आने वाले कार्यकर्ताओं और आम जनता का समय और पैसा बर्बाद न हो."

 असमंजस और प्रभावहीनता से जूझती सरकार

जूली ने कहा, "वास्तविकता यह है कि राजस्थान में आज शासन नाम की कोई चीज नहीं है. न मंत्रियों की चल रही है, न विधायकों की और न ही संगठन के कार्यकर्ताओं की. जनता तो दूर की कौड़ी है. बीजेपी का यह कार्यक्रम नाराज कार्यकर्ताओं को ‘मीठी गोली’ देने के अलावा कुछ नहीं है."

उन्होंने कहा कि दो साल बीतने के बाद भी सरकार जिस असमंजस, अनिश्चितता और प्रभावहीनता के दौर से गुजर रही है, वही अब इसकी पहचान बन चुकी है. बीजेपी केवल ईवेंट मैनेजमेंट और प्रचार के सहारे अपनी विफलताओं को छिपाना चाहती है, लेकिन प्रदेश की जनता सब देख और समझ रही है.