PM Modi In Rajasthan: राजस्थान (Rajasthan) में सत्ता परिवर्तन की परंपरा को खत्म कर एक बार फिर सूबे की सत्ता में वापसी का दावा कर रही कांग्रेस (Congress) से कुर्सी छीनने के लिए बीजेपी  (BJP) ने कमर कस ली है. विधानसभा चुनाव 2023 (Rajasthan Assembly Election 2023) का मेगा प्लान बनाकर भारतीय जनता पार्टी ने तैयारियां भी शुरू कर दी है.


सत्ता सौंपने में अहम भूमिका निभाने वाले गुर्जर वोट बैंक में सेंधमारी कर रही है. इस बार बीजेपी सत्ता पर काबिज होने के लिए गुर्जरों को अपने पक्ष में करने की कवायद कर रही है. बीजेपी को कांग्रेस की कमजोर कड़ी भी पता है. मौजूदा माहौल को देखते हुए उन्हें यह पता है कि सचिन पायलट (Sachin Pilot) को सीएम नहीं बनाने से गुर्जर समाज कांग्रेस से खफा है. आज मालासेरी डूंगरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) का कार्यक्रम गुर्जरों की नाराजगी को बीजेपी के पक्ष में करने का प्रयास हो सकता है.


सूबे के 14 जिलों में गुर्जरों का दबदबा


राजस्थान के 33 में से 14 जिलों में गुर्जरों का प्रभाव है. इन जिलों में 12 लोकसभा क्षेत्र और 40 विधानसभा क्षेत्र आते हैं. भीलवाड़ा, अजमेर, जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, झुंझुनूं, कोटा, बारां, झालावाड़, टोंक, करौली, सवाई माधोपुर जिले में गुर्जरों का दबदबा है. यहां किसी भी नेता की जीत-हार का फैसला गुर्जर ही करते हैं. इतना ही नहीं, सूबे की सरकार बनाने, बिगाड़ने और बचाने में भी गुर्जरों का अहम रोल रहता है.


इन 40 सीटों पर बड़ा प्रभाव


भीलवाड़ा जिले में आसींद, मांडल, शाहपुरा, जहाजपुर, सहाड़ा, मांडलगढ़, अजमेर जिले में पुष्कर, नसीराबाद, किशनगढ़, जयपुर जिले में दूदू, कोटपूतली, जमवारामगढ़, विराटनगर, दौसा में बांदीकुई, दौसा, लालसोट, सिकराय, महवा, कोटा में पीपल्दा, बूंदी में केशोरायपाटन, हिंडौली, खानपुरा, टोंक व सवाई माधोपुर में टोंक, निवाई, देवली उनियारा, मालपुरा, सवाई माधोपुर, गंगापुर, खंडार, झुंझुनूं में खेतड़ी, भरतपुर में नगर, कामां, बयाना, धौलपुर में बाड़ी, बसेड़ी, करौली में टोडाभीम, सपोटरा, बारां-झालावाड़ में मनोहरथाना, अलवर में बानसूर व थानागाजी सीट पर गुर्जर समाज का बड़ा प्रभाव है.


गुर्जरों ने किया BJP का सूपड़ा साफ


गत विधानसभा चुनाव 2019 में गुर्जर बाहुल्य क्षेत्रों में बीजेपी  का सूपड़ा हो गया था. एक भी जीत बीजेपी  की झोली में नहीं आई. बीजेपी के नौ गुर्जर प्रत्याशियों में से एक भी नेता की जीत नहीं हुई. मांडल से कालूलाल गुर्जर, खेतड़ी से दाताराम गुर्जर, देवली उनियारा से राजेंद्र गुर्जर,कोटा साउथ से प्रहलाद गुंजल, नगर से अनिता सिंह, बाड़ी से जसवंत सिंह, डीग से जवाहर सिंह, गंगापुर सीट से मानसिंह को बीजेपी प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान में उतारा था लेकिन सभी हार गए.


कांग्रेस का एकतरफा समर्थन


पिछली बार चुनाव में गुर्जर समाज ने कांग्रेस पार्टी को एकतरफा समर्थन दिया था. नतीजा यह रहा कि अभी प्रदेश में मौजूदा आठों गुर्जर विधायक कांग्रेस से जुड़े हैं. समर्थन देने की मुख्य वजह यह रही कि समाज को उम्मीद थी कि कद्दावर गुर्जर नेता सचिन पायलट सीएम बनेंगे.लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सीएम की कुर्सी पर अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ही बैठे.


इस बात का फायदा उठा रही बीजेपी


सचिन को मुख्यमंत्री नहीं बनाने से सूबे का गुर्जर समाज मौजूदा कांग्रेस सरकार से खफा है. इसी बात का फायदा उठाकर बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा के सहारे गुर्जर वोट बैंक को अपने पक्ष में करने की कवायद में जुटी है. पिछले चुनाव से सबक लेकर बीजेपी  को यह भी पता लग गया कि गुर्जरों के बिना सत्ता में वापसी संभव नहीं हो सकेगी. ऐसे में धार्मिक आयोजन की आड़ लेकर बीजेपी एक बहुत बड़े समाज को लुभाने में लगी है.इस बात से इनकार भी नहीं किया जा सकता है कि मौजूदा कांग्रेस सरकार से नाराज लोगों का फायदा बीजेपी को मिलेगा.


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