झालावाड़ के पीपलोदी गांव में जुलाई महीने में जब स्कूल की इमारत ढह गई और सात मासूम बच्चों की जान चली गई, तो पूरे इलाके में मातम छा गया. हादसे के बाद सबसे बड़ी मुश्किल थी कि बाकी बच्चों की पढ़ाई कहां और कैसे शुरू की जाए.
तभी गांव के ही एक किसान मोर सिंह ने ऐसा फैसला लिया, जिसने सभी को हैरान कर दिया. उन्होंने अपना घर ही स्कूल के लिए दे दिया और खुद अपने परिवार के साथ खेत में तिरपाल की झोपड़ी में रहने लगे.
हादसे के बाद स्कूल की परेशानी
जुलाई में पीपलोदी का सरकारी उच्च प्राथमिक विद्यालय हादसे का शिकार हुआ था. एक कक्षा ढह गई थी जिसमें सात बच्चों की मौत हो गई और 21 घायल हो गए थे. गांव के लिए ये बहुत बड़ा सदमा था. जो बच्चे बचे, उनकी पढ़ाई रुकने की कगार पर थी. शिक्षक इधर-उधर वैकल्पिक जगह ढूंढ रहे थे, लेकिन कोई भी अपना मकान या कमरा देने को तैयार नहीं था.
ऐसे में जब शिक्षक मोर सिंह से मिले, तो उन्होंने बिना सोचे-समझे अपनी हामी भर दी. मोर सिंह ने कहा, “उस वक्त मुझे लगा कि भगवान का आशीर्वाद मिला है. अगर मेरे घर में बच्चे पढ़ लेंगे तो इससे बड़ी सेवा और क्या होगी. बारिश हो या गर्मी, मैं अपने परिवार के साथ खेत में रह लूंगा, लेकिन बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकनी चाहिए.”
खेत पर झोपड़ी में जिंदगी
मोर सिंह का परिवार आठ लोगों का है. सब मिलकर अब खेत पर बनी अस्थायी झोपड़ी में रहते हैं. प्लास्टिक और तिरपाल से बनी इस झोपड़ी में दो चारपाइयां, एक चूल्हा और कुछ बर्तन ही हैं. बाकी सामान रिश्तेदारों के यहां रख दिया गया.
बरसात में छत टपकती है, रात को कीड़े-मकौड़े और सांपों से बचने के लिए वे घास जलाते हैं. लेकिन परिवार के किसी भी सदस्य ने आपत्ति नहीं की. सबको गर्व है कि उनके घर में अब गांव के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं.
2011 में बनाया था घर
मोर सिंह ने अपना घर बड़ी मेहनत से बनाया था. साल 2011 में उन्होंने दिहाड़ी मजदूरी करके चार लाख रुपये खर्च कर दो कमरे का घर खड़ा किया था. लेकिन आज वही घर स्कूल की कक्षाओं के लिए खुला है. उनका कहना है कि ये कठिन समय है, लेकिन हमेशा नहीं रहेगा. नया स्कूल भवन बनते ही हम अपने घर लौट जाएंगे.
प्रशासन भी मोर सिंह का कायल
झालावाड़ के कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ ने मोर सिंह के त्याग की तारीफ करते हुए उन्हें ‘भामाशाह’ की उपाधि दी. प्रशासन ने बताया कि अगर मोर सिंह ने मदद नहीं की होती तो बच्चों को 2-3 किलोमीटर दूर के सरकारी स्कूल में भेजना पड़ता.
राज्य सरकार ने नए स्कूल भवन के लिए 10 बीघा जमीन आवंटित की है और 1.8 करोड़ रुपये की मंजूरी भी दे दी है. साथ ही मोर सिंह को मुआवजे के तौर पर दो लाख रुपये भी दिए गए हैं.
बच्चों का भरोसा लौटा
हादसे के बाद गांव के कई लोग अपने बच्चों को स्कूल भेजने से डर रहे थे. लेकिन जब मोर सिंह ने अपना घर स्कूल के लिए दे दिया, तो गांव वालों का भरोसा वापस लौटा. इतना ही नहीं, हादसे के बाद 10 नए बच्चों का दाखिला भी हुआ और अब कुल 75 विद्यार्थी यहां पढ़ाई कर रहे हैं.
स्कूल के शिक्षक महेश मीणा ने बताया कि हादसे में घायल आठ बच्चे अभी भी घर पर इलाज करा रहे हैं. उनकी पढ़ाई न छूटे, इसके लिए दो अतिरिक्त शिक्षकों को घर भेजा गया है.
'हमारा संकल्प-पीपलोदी का कायाकल्प'
नए स्कूल भवन का काम शुरू हो चुका है और उम्मीद है कि अगले साल से कक्षाएं वहीं लगेंगी. हादसे के बाद राजस्थान सरकार ने पीपलोदी को ‘मॉडल विलेज’ बनाने का ऐलान भी किया है. नारा दिया गया है
“हमारा संकल्प–पीपलोदी का कायाकल्प, हादसे से विकास तक.”
गांव के नायक बन गए मोर सिंह
आज पीपलोदी गांव में हर कोई मोर सिंह की मिसाल देता है. अशिक्षित होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा की असली कीमत समझी और अपने घर को बच्चों के लिए खोल दिया. उनकी उदारता ने पूरे समाज को एक संदेश दिया है कि इंसानियत सबसे बड़ी ताकत है.