राजस्थान का दूसरा बड़ा शहर जोधपुर पर्यटन और आध्यात्मिक की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है इसी के चलते अब एक और आध्यात्मिक केंद्र जोधपुर के कालीबेरी क्षेत्र में बन रहा भव्य अक्षरधाम मंदिर अब अपने अंतिम चरण में पहुँच चुका है. पिछले सात वर्षों से चल रहे निर्माण कार्य के बाद मंदिर का लगभग 95 प्रतिशत काम पूरा हो गया है.

नागर शैली में जोधपुरी (बलुआ) पत्थर से निर्मित यह मंदिर भारतीय स्थापत्य कला और आध्यात्मिक धरोहर का अनुपम उदाहरण बनकर तैयार हो रहा है. खास बात यह है कि मंदिर का निर्माण बिना लोहे के किया गया है और दोदो टन वजनी चाबीनुमा गुंबदों से इसकी संरचना को स्थिरता दी गई है.

सात वर्षों की मेहनत और 500 कारीगरों का योगदान

मंदिर निर्माण में पिंडवाड़ा, सागवाड़ा, भरतपुर, जयपुर और जोधपुर सहित विभिन्न क्षेत्रों से आए लगभग 500 कुशल कारीगरों ने भाग लिया. मंदिर के गर्भगृह, महा मंडप, अर्धमंडप, दीवारों, स्तंभों और छतों पर हजारों घन फीट पत्थर तराश कर कलाकृतियां बनाई गईं. कुल 251 पिलर्स पर बेलबूटों, पशुपक्षियों, ज्यामितीय आकृतियों और देवताओं की नक्काशी की गई है. इनमें विशेष आकर्षण का केंद्र भगवान गणेश की वह प्रतिमा है जिसमें वे ढोलक बजाते हुए दिखते हैं. मंदिर में शिव स्वरूप, दिक्पालों, संतों, भक्तों और गुरु परंपरा की मूर्तियों को भी उकेरा गया है.

धातु का उपयोग नहीं ताल-कुंचिका विधि से निर्माण

निर्माण की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि मंदिर में कहीं भी लोहे या अन्य धातु का उपयोग नहीं किया गया है. दो पत्थर खंडों को जोड़ने के लिए प्राचीन ताल-कुंचिका विधि अपनाई गई है, जिससे मंदिर की संरचना अधिक मजबूत और सुरक्षित बनती है. यह भारतीय शिल्प परंपरा का उत्कृष्ट उदाहरण है.

गुंबदों पर चढ़ाई जा रही हैं स्वर्ण कलश और पताकाएं 

मंदिर के आठ गुंबदों पर स्वर्ण कलश और ध्वज पताका लगाने का कार्य अंतिम चरण में है. गर्भगृह के साथ तीन खंडों में राधा-कृष्ण, स्वामीनारायण तथा अक्षर ब्रह्म गुनातीतानंद स्वामी महाराज की मूर्तियों का प्रतिष्ठापन होगा. मंदिर की संरचना तीन तल की है, जिसमें नीलकंठ वर्णी स्वरूप में भगवान स्वामीनारायण की किशोर प्रतिमा अभिषेक मंडप में स्थापित की जाएगी. इसके ऊपर मुख्य मंडप और तीसरी मंजिल के रूप में गुंबदनुमा संरचना बनाई गई है.

पंचशिखरीय मंदिर पांच शिखरों का अद्वितीय स्वरूप

मंदिर के तीन मुख्य खंडों के साथ कुल पाँच शिखर बनाए गए हैं, इसलिए इसे पंचशिखरीय मंदिर कहा जाएगा. मंदिर का मध्य भाग ऊँचा है, जिससे यह दूर से ही दर्शनीय बनता है. प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक विस्तृत सीढ़ियों और खुले मंडप का निर्माण किया गया है, जिससे भक्त आसानी से दर्शन कर सकते हैं. मंदिर में हनुमान और गणपति के भी मंदिर स्थापित किए गए हैं.

प्रतिष्ठा महोत्सव की तैयारियां

मंदिर के योगी प्रेम स्वामी और लक्ष्मण सोलंकी ने बताया कि मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव 21 से 28 सितंबर तक बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा.

23-24 सितंबर को सुबह 6:30 बजे यज्ञ का आयोजन होगा, जिसमें देश और विदेश से आए लगभग 2500 जोड़े भाग लेंगे.

24 सितंबर को दोपहर 2 बजे रावण का चबूतरा से उम्मेद स्टेडियम तक भव्य शोभायात्रा निकलेगी.

25 सितंबर को सुबह 6:30 बजे मूर्ति प्रतिष्ठा और शाम 5:30 बजे लोकार्पण समारोह होगा.

महोत्सव में शामिल होने के लिए मंदिर के आसपास की 22 से अधिक धर्मशालाएँ, होटल, बच्चियां और वाटिका बुक हो चुकी हैं. अनुमान है कि पाँच दिनों में देशभर से 25,000 और विदेशों से 5,000 श्रद्धालु शामिल होंगे.

मंदिर की प्रमुख विशेषताएं

1. प्रदक्षिणा पथ मुख्य मंदिर तल से लगभग दो फीट नीचे बने विशाल परिक्रमा पथ पर भक्तों पूरे मंदिर की परिक्रमा कर सकते हैं. परिक्रमा पथ को खुला रखा गया है, जिससे भक्त सहज रूप से वेदों, पुराणों और प्रेरणादायी श्लोकों को पढ़ते हुए ध्यानपूर्वक भ्रमण कर सकते हैं. यह परिक्रमा मार्ग न केवल भक्ति का, बल्कि ज्ञान का भी केंद्र है.

2. अत्यंत जटिल, महीन और अलंकृत शिल्पकला

मंदिर की प्रत्येक दीवार, मंडप, स्तम्भ, छत और प्रवेश द्वार पर सूक्ष्म नक्काशी की गई है. देवताओं, दिग्पालों, संतों, भक्तों और पौराणिक कथाओं की जीवंत प्रस्तुति.

बेलबूटों, पशु-पक्षियों तथा ज्यामितीय आकृतियों से सुसज्जित स्तम्भ. नक्काशी में आध्यात्मिकता और सौंदर्य का विलक्षण संगम.

3. शिखर की विशिष्ट बनावट नागर शैली के अनुसार मंदिर का शिखर तीव्र आरोही और लंबवत रूप में बना है. छोटे शिखरों (उरुश्रुंग), झरोखों और वितान से सुसज्जित. आमलक (कदंब फलाकार पत्थर) और उसके ऊपर कलश.ध्वजदंड और ध्वज मंदिर की भव्यता को और बढ़ाते हैं.

4. गर्भगृह, मंडप और अर्धमंडप मंदिर तीन मुख्य भागों में विभाजित है: गर्भगृह पूजा का केंद्र. महामंडप (गुंबद) ध्यान और सभा का स्थल.

अर्धमंडप प्रवेश क्षेत्र.

इनके अतिरिक्त ‘अंतराल’ या ‘कोली मंडप’ संतों के बैठने और पूजा-अर्चना के लिए विशेष रूप से निर्मित है.तीनों दिशाओं में सीढ़ियों का समापन वितान मंडपों में होता है, जो मंदिर की वास्तु योजना की अनूठी पहचान है.

5. स्तम्भों की अद्वितीयता

मंदिर के स्तम्भ बहुकोणीय अथवा वृत्ताकार हैं और अनेक नक्काशीदार भागों से मिलकर बने हैं. इनके प्रमुख भाग हैं खारो, कुम्भी, स्तंभ, ठेकी, भरनी, काटासरो, भेटास आदि. इनमें भगवान के चरित्रों, लीलाओं और धार्मिक प्रसंगों को अंकित किया गया है.

6. तोरण द्वार की भव्यता

प्रवेश पर विशाल तोरण द्वार मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं.

प्रत्येक दो स्तंभों के बीच सजावटी धनुषाकार तोरण.

हाथियों की सूंड से उभारा गया आकर्षक स्वरूप.

कला कौशल और वास्तुशिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण.

7. मनमोहक मूर्तियां

मंदिर में अवतारों, ऋषियों, संतों की जीवंत प्रतिमाएं. श्रृंगार, भक्ति, नृत्य और ध्यान की स्पष्ट अभिव्यक्ति. गणपति, शिवस्वरूप, गुरु परंपरा की मूर्तियाँ विशेष आकर्षण हैं.

8. मंडोवर  

बाह्य दीवारों का अलंकरण मंदिर की बाहरी दीवारों को ‘मंडोवर’ कहा जाता है. यहां देवताओं, दिग्पालों, मुक्तों, संतों और भक्तों की नयनरम्य मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो आध्यात्मिकता और कला का समृद्ध प्रतीक हैं.

9. बहु-मंजिल संरचना की विशिष्टता

राणकपुर आदि मंदिरों में बहु-मंजिल स्थापत्य देखने को मिलता है, लेकिन भूमि तल पर अभिषेक मंडप की योजना स्वामिनारायण मंदिरों की अनूठी विशेषता है.

यह स्थापत्य मारू-गुर्जर शैली, नागर परंपरा और स्वामिनारायणीय विशिष्टताओं का समावेश कर पश्चिम भारत की सांस्कृतिक धरोहर को समृद्ध करता है.

10. स्थापत्य शैली का महत्व

इस मंदिर की वास्तु योजना संतुलित, सूक्ष्म शिल्पकला से परिपूर्ण और अभिनव है. इसने प्राचीन भारतीय स्थापत्य परंपराओं को पुनर्जीवित करते हुए आधुनिक भक्ति स्थल का स्वरूप दिया है.