राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक तरफ लोग सरकारी अस्पतालों में बेहतर इलाज और दवा के लिए भटकते हुए दिखाई देते हैं तो वहीं दूसरी तरफ शहर के महात्मा गांधी मेडिकल कालेज ने अब कैडेवर यानी मृत हो चुके शरीर से निकले हुए अंगों के साथ ही जरूरी मेडिसिन, ब्लड और बायोप्सी समेत जिंदगी बचाने के लिए जरूरी दूसरी चीजों को ड्रोन के जरिए अस्पतालों तक पहुंचाए जाने की व्यवस्था की है. 

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दावा किया जा रहा है कि देश में लाइफ सेविंग ड्रग्स और ब्लड तो पहले भी कुछ राज्यों में ड्रोन के जरिए एक से दूसरी जगह भेजे जाते थे, लेकिन कैडेवर यानी मृत शरीरों के अंगों को अस्पताल तक ड्रोन के जरिए पहुंचाए जाने की व्यवस्था देश में पहली बार की जा रही है.

ये बाधाएं होंगी दूर

महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की ड्रोन टीम के प्रभारी वीरेंद्र परीक के मुताबिक ब्रेन डेथ के बाद प्राप्त अंगों को तय समय सीमा में प्रत्यारोपण के लिए पहुंचाना बेहद जरूरी होता है, ऐसे में ड्रोन ट्रैफिक और दूरी जैसी बाधाओं को खत्म करेगा. उनके मुताबिक अब तक अंगों को ले जाने के लिए एंबुलेंस और ग्रीन कॉरिडोर का सहारा लिया जाता था, लेकिन ड्रोन के जरिए बहुत कम समय में एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक अंग सुरक्षित पहुंचाए जा सकेंगे. इससे ट्रांसप्लांट की सफलता की संभावना भी बढ़ेगी.

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15 किमी की रेंज करेगा कवर

मेडिकल कॉलेज प्रशासन का कहना है कि यह ड्रोन पूरी तरह एडवांस तकनीक से लैस है. इसकी रेंज 15 किलोमीटर है और यह 10 से 15 किलो तक वजन उठाने में सक्षम है. इसमें जीपीएस टेक्नोलॉजी लगी है और यह मेडिसिन, ब्लड सैंपल और ऑर्गन ले जाने में सक्षम है. एयरपोर्ट से अस्पताल तक अंग सीधे ऑपरेशन थिएटर तक पहुंचाए जा सकेंगे. इस सेवा के लिए मरीजों से किसी तरह का अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा.

एक्सीडेंट के मामलों में कारगर होगा साबित

ड्रोन तकनीक एक्सीडेंट के मामलों में भी बेहद कारगर साबित हो सकती है. गंभीर हादसों में जहां एंबुलेंस को पहुंचने में समय लगता है, वहीं ड्रोन के जरिए तुरंत लाइफ सेविंग दवाइयां मौके पर भेजी जा सकेंगी. तापमान नियंत्रित ड्रोन बॉक्स के जरिए ब्लड, बायोप्सी और अन्य संवेदनशील सैंपल भी जांच केंद्रों तक तेजी से पहुंचाए जाएंगे, जिससे इलाज में देरी नहीं होगी.

जयपुर में हुआ सफल परीक्षण

पिंक सिटी जयपुर में इसका सफल परीक्षण किया जा चुका है और जल्द ही इसे अमल में लाए जाने की तैयारी है. हालांकि ड्रोन की एडवांस्ड टेक्नोलॉजी का परीक्षण तो किया जा रहा है लेकिन सरकारी अस्पतालों में लोगों को बेहतर और आसानी से मिलने वाले इलाज के लिए अभी तक कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए हैं. 

जयपुर के सबसे बड़े एसएमएस अस्पताल में आज भी कोई दवा के लिए परेशान नजर आया तो कोई सैंपल जमा करने के लिए. किसी को कई घंटे तक जद्दोजेहद करनी पड़ी तो किसी को खांसी की दवा के लिए भी डॉक्टर ने बाहर का  पर्चा लिख दिया. यानी एक तरफ तो व्यवस्थाओं को हाईटेक किए जाने की तैयारी है तो वहीं दूसरी तरफ सरकारी अस्पतालों में धक्के खा रहे गरीब मरीजों का कोई पुरसानेहाल नहीं है.