राजस्थान में एक बार फिर किसान अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. चूरू जिले से शुरू हुआ यह आंदोलन अब किसान एकता ट्रैक्टर मार्च के रूप में जयपुर की ओर बढ़ गया है. सांसद राहुल कस्वां की अगुवाई में हजारों किसान ट्रैक्टरों पर सवार होकर राजधानी की तरफ रवाना हुए. किसानों के लंबे समय से लंबित मुद्दों और फसल बीमा के संकट ने इस आंदोलन को नया मोड़ दे दिया है.

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किसानों की सबसे बड़ी चिंता साल 2021 के बकाया फसल बीमा क्लेम का रद्द होना है. सांसद राहुल कस्वां के अनुसार करीब 500 करोड़ रुपये का क्लेम किसानों को नहीं मिल पाया, जिससे हजारों किसान संकट में हैं. बीमा पोर्टल में गड़बड़ियां, किसानों को सर्वे में शामिल न करना और अलग-अलग सीजन के क्लेम अटकाना ये सब बड़ी परेशानियां बन चुकी हैं. इसी अन्याय के खिलाफ किसान अब खुलकर आवाज उठा रहे हैं.

बिजली, पानी और कनेक्शन कई स्तरों पर संकट

RDSS योजना का ठीक से लागू न होना भी किसानों के लिए सिरदर्द है. चूरू क्षेत्र में अब तक कृषि और घरेलू बिजली लाइनें अलग नहीं हुई हैं, जिससे वोल्टेज की समस्या और उपकरण खराब होने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं.

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इसके अलावा किसानों को नए कृषि कनेक्शन नहीं मिल रहे. जल जीवन मिशन कई इलाकों में फेल साबित हो रहा है. रेलवे समपार पर RUB नहीं बनने से खेतों तक पहुंच में दिक्कत हो रही है.

ट्रैक्टर मार्च में रखी जाएंगी बड़ी मांगें

मार्च के जरिए किसान सरकार से कई नीतिगत मांगें उठाएंगे. इनमें शामिल हैं-

  • मध्यप्रदेश और हरियाणा की तरह भावांतर योजना लागू की जाए
  • PM धन-धान्य योजना में मूंग और चना को शामिल किया जाए
  • यमुना लिंक समझौते के अनुसार शेखावाटी को पूरा पानी मिले
  • नोहर फीडर की रिमोडलिंग और स्काडा सिस्टम का काम तेज किया जाए
  • सिद्धमुख नहर में तय 0.47 MAF पानी उपलब्ध कराया जाए
  • झींगा मछली पालन पर बिजली दरें हरियाणा की तरह कम हों
  • चूरू में झींगा क्लस्टर का प्रस्ताव भेजा जाए
  • किसानों की पूरी उपज MSP पर खरीदी जाए

कई जनप्रतिनिधि भी बने मार्च का हिस्सा

ट्रैक्टर मार्च में कांग्रेस के कई बड़े नेता और जनप्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं. तारानगर विधायक नरेंद्र बुडानिया, रतनगढ़ विधायक पूसाराम गोदारा, सुजानगढ़ विधायक मनोज मेघवाल, सरदारशहर विधायक अनिल शर्मा, नोहर विधायक अमित चाचान, पूर्व विधायक डॉ. कृष्णा पूनिया, पीसीसी उपाध्यक्ष रफीक मंडेलिया और कई अन्य नेता किसानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं.

बता दें राजस्थान में किसान आंदोलनों का इतिहास पुराना है. 1920-30 के दशक में शेखावाटी किसान आंदोलन ने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ी भूमिका निभाई थी. अब उसी धरती से एक और बड़ा आंदोलन उठ खड़ा हुआ है. किसानों का कहना है कि उनकी समस्याएं सालों से जस की तस पड़ी हैं, और अब सुनवाई का वक्त आ गया है.