प्राचीन अरावली पर्वत शृंखला जोकि कई सभ्यताओं और संस्कृति की जन्मस्थली मानी जाती रही है. आज पूरे देश भर में इसको लेकर चर्चा हो रही है और चर्चा की वजह है सुप्रीम कोर्ट की ओर से खनन और इसके संरक्षण को लेकर बनाए गए नियम. अब इस पर बवाल मचा हुआ है.

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नए नियमों को लेकर विपक्ष पूरे तरीके से विरोध कर रहा है तो वहीं सत्ता पक्ष इसे अरावली का संरक्षण और सुरक्षित पर्यावरण की महत्वपूर्ण कड़ी बता रहा है. आपको बता दें अरावली पर्वत श्रृंखला का लगभग 70% हिस्सा राजस्थान में है. ऐसे में राजनीति का केंद्र भी राजस्थान बना हुआ है. राजस्थान में यह पर्वत श्रृंखला करीब 550 किलोमीटर तक फैली है, जोकि दिल्ली में जाकर खत्म होती है.

क्या है विवाद का कारण?

अशोक गहलोत का आरोप है कि बीजेपी सरकार ने उस 100 मीटर फॉर्मूले को मान्यता दिलवाई, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में खारिज कर दिया था. उनके मुताबिक नई परिभाषा से अरावली की करीब 90 फीसद पर्वतमाला नष्ट हो सकती है, जिससे खनन माफिया को फायदा मिलेगा और राजस्थान के पर्यावरण को भारी नुकसान होगा. हालांकि, केंद्र सरकार इस आरोप को पूरी तरह खारिज कर चुकी है.

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पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि 2002 में पर्यावरण संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनी केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) को 5 सितंबर 2023 को कमजोर कर दिया गया. पहले CEC स्वतंत्र संस्था थी और इसके सदस्यों को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी से नियुक्त किया जाता था.

उन्होंने कहा कि अब यह पर्यावरण मंत्रालय के अधीन होकर केंद्र सरकार की कठपुतली बन गई है. गहलोत ने याद दिलाया कि इसी CEC की रिपोर्ट पर 2011 में कर्नाटक के मंत्री जनार्दन रेड्डी को अवैध खनन मामले में गिरफ्तार किया गया था. अब CEC केवल सरकारी फैसलों पर मुहर लगाने का काम कर रही है.

अशोक गहलोत ने दी यह जानकारी

गहलोत ने यह भी बताया कि खदान मालिकों से पैसे वसूले जाने की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) तक पहुंची. CEC के एक सदस्य ने बताया कि मंत्री भूपेन्द्र यादव व्यक्तिगत रूप से इस प्रक्रिया की निगरानी कर रहे थे. 

गहलोत ने कहा कि केंद्र सरकार की 0.19% नई माइनिंग वाली परिभाषा पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि असल में संरक्षित क्षेत्रों में भी सेंध लगाने की कोशिश हो रही है. उन्होंने चेतावनी दी कि राजस्थान अपनी प्राकृतिक धरोहर के साथ इस तरह के खिलवाड़ को बर्दाश्त नहीं करेगा.

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने किया पलटवार

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि यह बात पूरी तरह गलत है. 100 मीटर की ऊंचाई पर खनन की कोई अलग से परमिशन नहीं दी गई है. असल में, हम पहाड़ियों की पहचान कर रहे हैं. नियम यह है कि अगर कोई पहाड़ी 200 मीटर ऊंची है, तो उसके आसपास का 500 मीटर का इलाका भी अरावली का हिस्सा माना जाएगा और वहां कुछ नहीं होगा. 

अरावली की 90% खेती वाली जमीन को भी हमने खनन से पूरी तरह बाहर रखा है. अरावली को बचाना सिर्फ पहाड़ों का मामला नहीं है. यह हमारे पर्यावरण, पीने के पानी और प्रकृति के संतुलन से जुड़ा है. सरकार इसे सुरक्षित रखने के लिए पूरी तरह तैयार है. 

सुप्रीम कोर्ट ने दिए स्पष्ट आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने भी इस पर स्पष्ट आदेश दिए हैं. हमारा सबसे बड़ा लक्ष्य अवैध खनन (Illegal Mining) को पूरी तरह रोकना है. जब तक वैज्ञानिकों की टीम एक पक्का प्लान नहीं बना लेती, तब तक वहां किसी भी नई खुदाई की अनुमति नहीं दी जाएगी.

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) के तहत बनी समिति की सिफारिशों को सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर 2025 को स्वीकार किया. 

  • अरावली पहाड़ियां: ऐसी कोई भी जमीन जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-भाग (जमीन) से 100 मीटर या उससे अधिक हो.
  • अरावली रेंज (पर्वतमाला): यदि दो या उससे अधिक ऐसी पहाड़ियां 500 मीटर के दायरे में हैं, तो उन्हें एक ही पहाड़ियों का समूह माना जाएगा.
  • इन पहाड़ियों और रेंज के भीतर आने वाले सभी लैंडफॉर्म, उनकी ऊंचाई या ढलान चाहे जो हो, खनन से बाहर रहेंगे.
  • सरकार का कहना है कि इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि 100 मीटर से नीचे के सभी इलाके खनन के लिए खोल दिए गए हैं.