Punjab Politics: ऐसा बहुत कम होता है जब किसी नेता का नाम लिया जाए और उसकी तस्वीर मन में उभरे, लेकिन पंजाब की सियासत में नवजोत सिंह सिद्धू एक ऐसा नाम है जिसका नाम लेते ही उनकी तस्वीर मन में उभरती है. पंजाब की सियासत में अगर सिद्धू एक ताकतवर नाम ना होता तो बीजेपी उन्हें तीन बार लोकसभा का चुनाव ना लड़वाती. और ऐसा ही कांग्रेस में भी रहा. पंजाब की सियासत में सिद्धू एक ताकतवर नाम होने की वजह से ही कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह की इच्छा के विपरीत जाकर सिद्धू का समर्थन किया.

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बीजेपी पर भारी पड़े थे सिद्धू  

साल 2004 में नवजोत सिंह सिद्धू ने अपने पॉलिटिकल करियर की शुरुआत बीजेपी से की. बीजेपी ने उन्हें अमृतसर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा, बड़े बहुमत के साथ सिद्धू ने यह चुनाव जीता. साल 2009 में एक बार फिर सिद्धू ने अमृतसर लोकसभा सीट से जीत हासिल की. लेकिन इस बार पंजाब में अकाली दल की बीजेपी के साथ गठबंधन वाली सरकार बनी. इस सरकार शुरुआती दौर में तो सिद्धू के साथ सब ठीक चला लेकिन धीरे-धीरे अकाली दल और सिद्धू के बीच टकराव बढ़ता गया.

बीजेपी के लिए धर्मसंकट ये खड़ा हो गया कि वो ना तो सिद्धू को नाराज करना चाहती थी और ना ही अकाली दल को. फिर भी बीजेपी ने अमृतसर से सिद्धू का टिकट काटते हुए अरुण जेटली को टिकट दिया. लेकिन सिद्धू अड़ गए कि वो चुनाव लड़ेंगे तो सिर्फ अमृतसर से वर्ना कही से नहीं. सिद्धू जेटली के प्रचार तक के लिए नहीं गए, सिद्धू की इस जीत की कीमत बीजेपी ने जेटली की हार से चुकाई. 2017 के विधानसभा चुनावों के टकराव को टालने के लिए अप्रैल 2016 में सिद्धू को राज्यसभा भेज दिया गया लेकिन सिद्धू ने महज तीन महीनों के अंदर ही राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए बीजेपी ही छोड़ दी.

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पहले अलग पार्टी बनाई फिर कांग्रेस में एंट्री

बीजेपी से इस्तीफा देने के बाद सिद्धू ने सितंबर 2016 में आवाज़-ए-पंजाब नाम से अलग पार्टी बनाई. आम आदमी पार्टी के साथ भी उनकी बात चली, बाते तो यहां तक हुई कि आम आदमी पार्टी सिद्धू को पंजाब में अपना चेहरा बना सकती है. लेकिन किन्ही वजहों से बात नहीं बन पाई और सिद्धू ने कांग्रेस ज्वाइन की. कैप्टन अमरिंदर सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए वो उनके मंत्रिमंडल में मंत्री भी बने. साल 2022 के चुनाव से पहले सिद्धू ने पार्टी में अहमियत ना मिलने से नाराज़ होकर इस्तीफा दे दिया. वही पार्टी के सामने शर्त रखी अगर पार्टी को उनका साथ चाहिए तो उनकी शर्ते माननी होगी. लेकिन कैप्टन अमरिंदर सिंह भी सिद्धू की शर्तें मानने को तैयार नहीं थे. फिर सिद्धू के पक्ष में प्रियंका गांधी आई तो कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी से नाराजगी बढ़ती चली गई.

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