Thane News: ठाणे के कल्याण में बकरीद के दिन दुर्गाडी किले पर पुलिस की काफी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी. उद्धव ठाकरे और शिंदे दोनों गुट ने दुर्गाडी किले के सामने घंटानाद आंदोलन करेंगे. 39 साल पहले धर्मवीर आनंद दिघे ने घंटानाद आंदोलन की परंपरा की शुरुआत शुरू की थी. इस किले पर एक ही दीवार लगकर देवी का मंदिर और मजार दोनों है. ऐसे में यह मंदिर है या मस्जिद है. इस पर विवाद जारी है. 

क्या है विवाद ?

पिछले 48 सालों से दुर्गाडी किले में स्थित मंदिर या मस्जिद को लेकर दो धर्मों के बीच लड़ाई कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय में चल रही थी. पहले यह दावा ठाणे जिला न्यायालय में लंबित था, जिसके बाद कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय में दावा दायर किया गया था.

मंदिर या मस्जिद? कोर्ट में विचाराधीन है मामला 

याचिकाकर्ता दिनेश देशमुख ने कहा कि 1971 में ठाणे जिला कलेक्टर ने घोषित किया था कि दुर्गाडी किले में एक मंदिर है. इसके बाद इस जगह को मंदिर या मस्जिद बताने के लिए जांच की अर्जी दायर की गई थी. इस दावे में एडवोकेट भाऊसाहेब मोदक ने केस की पैरवी की थी. मस्जिद में खिड़कियां नहीं हैं, यहां मंदिर की खिड़कियां हैं, यहां मूर्तियां रखने के लिए एक मंदिर है. इसलिए सरकार ने घोषित किया था कि इस जगह पर एक मंदिर है.

1975-76 में मुस्लिम समुदाय की ओर से ठाणे जिला न्यायालय में अर्जी दाखिल की गई थी कि दुर्गाडी किला मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है. इसके बाद दो साल तक यह दावा चलता रहा, इसके बाद यह दावा कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया.

अन्य धार्मिक लोगों ने मांग की कि यह दावा कल्याण जिला एवं सत्र न्यायालय से वक्फ बोर्ड को स्थानांतरित कर दिया जाए. याचिकाकर्ता दिनेश देशमुख ने बताया कि न्यायालय ने इस मांग को खारिज कर दिया और सरकार के पहले के फैसले को स्वीकार करते हुए कहा कि दुर्गाडी किले पर मंदिर है.

साल 1976 में बाला साहेब ठाकरे और आनंद दिघे ने घंटानाद आंदोलन चलाकर इस स्थान पर मंदिर के अधिकार के लिए संघर्ष किया. इस वर्ष भी शिवसेना और हिंदू संगठनों ने मंदिर बंद होने पर विरोध प्रदर्शन किया था.

हिंदू मंच के अध्यक्ष (याचिकाकर्ता) दिनेश देशमुख ने कहा कि वर्ष 1971 में ठाणे जिला कलेक्टर कार्यालय में इस स्थान को मंदिर घोषित किया गया था. यह मंदिर है या मस्जिद, इसकी जांच के लिए याचिका दायर की गई थी.

भाव साहेब मोदक ने हिंदुओं की ओर से याचिका दायर की और अपने पक्ष को बहुत अच्छे से पेश किया था. लेकिन वर्ष 1976 में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने याचिका दायर की कि यह मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है. इस दावे की सुनवाई ठाणे कोर्ट में हुई बाद में इसे कल्याण कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया.

उस समय यह भी दावा किया गया कि यह वक्फ है. इसलिए इसकी सुनवाई कल्याण कोर्ट में नहीं बल्कि वक्फ बोर्ड में होनी चाहिए. लेकिन कल्याण जिला न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी है.

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