PM Modi Meets Sharad Pawar: कल पीएम मोदी पुणे दौरे पर आये थे. महाराष्ट्र की राजनीति में कल दिनभर ये चर्चा का विषय रहा कि शरद पवार ने पीएम मोदी के साथ मंच साझा किया है. जाहिर है कि पीएम मोदी और एनसीपी प्रमुख दोनों की विचारधाराएं अलग-अलग हैं. ऐसे में दोनों के एक मंच पर साथ आने से महाराष्ट्र की राजनीति में गरमाहट बढ़ गई. और बयानों का सिलसिला शुरू हो गया.


इस मुलाकात के सियासी मायने क्या?
शरद पवार और पीएम मोदी की मुलाकात को लेकर सबसे ज्यादा अगर किसी चीज की चर्चा हुई तो वो थी शरद पवार का पीएम मोदी के पीठ पर हाथ रखना. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हाथ मिलाने के दौरान एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने उनकी पीठ पर हाथ रख दिया. जबकि पीएम मोदी के कार्यक्रम में पवार का शामिल होना सहियोगी दलों को कुछ ठीक नहीं लगा और सभी ने एक सुर में इसकी आलोचना भी की.


उद्धव गुट का भी विरोध 
उद्धव ठाकरे की शिवसेना पहले ही इसका विरोध कर चुकी है. कांग्रेस ने भी इसका विरोध जताया. इसके बावजूद जब शरद पवार ने कार्यक्रम में शिरकत की और मोदी की पीठ पर हाथ रखा, तो महाराष्ट्र की सियासत में हलचल सी दिखनी शुरू हो गई है.


तरुण तलपड़े ने क्या कहा?
लोकसत्ता के अनुसार, महाराष्ट्र की राजनीति में पीठ पर हाथ रखने की घटना को सामान्य से ज्यादा सियासी तौर पर देखा जा रहा है. राजनीतिक विश्लेषक तरुण तलपड़े कहते हैं कि महाराष्ट्र की सियासत में यह लगातार चर्चाएं होती रहती है कि कहीं ऐसा न हो कि शरद पवार सियासी लड़ाई में कहीं न कहीं अंत तक अपने भतीजे अजित पवार के साथ आ जाएं. उसके पीछे का तर्क देते हुए तलपड़े कहते हैं कि हाल में ही अजित पवार और उनके साथ गए एनसीपी के विधायक जब शरद पवार से मिलने गए थे तो अजित पवार ने शरद पवार से आशीर्वाद देने और उनके साथ बने रहने की गुजारिश की थी.


कई नेताओं ने किया था विरोध
महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से समझने वाले राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बीते कुछ दिनों से पुणे में होने वाले कार्यक्रम के दौरान पवार की उपस्थिति को लेकर अंदरूनी और खुले आम विरोध हो रहा था. इसके पीछे असली वजह यही बताई जा रही थी कि प्रधानमंत्री के साथ मंच साझा करने पर महाराष्ट्र की राजनीति में एक अलग तरह का मैसेज जाएगा.


राजनीतिक जानकार अभिनव शिवराम लाले कहते हैं, 'दरअसल यह आशंका विपक्षी दलों को इसलिए सबसे ज्यादा सता रही थी कि प्रधानमंत्री कहीं मंच से कुछ ऐसा ना बोल दें जिसका महाराष्ट्र की सियासत में कुछ और मतलब निकाला जाने लगे. इसीलिए शरद पवार को मंच साझा न करने के लिए महा विकास अघाडी गठबंधन लगातार मना करता रहा था.


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