Maharashtra Politics: महाराष्ट्र के ओबीसी नेता और राष्ट्रीय समाज पक्ष के संस्थापक महादेव जानकर (Mahadev Jankar) को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती समारोह में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और NCP (SP) प्रमुख शरद पवार की अनुपस्थिति ने झटका दिया.
महादेव जानकर, जो कि धनगर समुदाय के प्रमुख नेता माने जाते हैं, ने इस आयोजन के लिए राहुल गांधी, शरद पवार और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव को आमंत्रित किया था, लेकिन कांग्रेस की ओर से सिर्फ महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल को भेजा गया, जबकि शरद पवार ने निजी कारणों से आने में असमर्थता जताई.
पहले बीजेपी के साथ थे महादेव जानकरजानकर की राजनीति में भूमिका कई रंग बदलती रही है. वे कभी BJP के दिवंगत नेता गोपीनाथ मुंडे के करीबी माने जाते थे. 2015 में BJP के समर्थन से महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य बने और देवेंद्र फडणवीस सरकार में मंत्री पद भी संभाला.
हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने बारामती सीट से NCP की सुप्रिया सुले के खिलाफ चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्हें करीब 70,000 वोटों से हार का सामना करना पड़ा. पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले BJP के साथ उनके रिश्तों में खटास आ गई और उन्होंने महायुति गठबंधन से अलग रास्ता चुन लिया.
निजी कारणों से नहीं आए शरद पवार, कांग्रेस ने भी रस्मअदायगी की- जानकरबीजेपी से दूरी बनाने के बाद जानकर ने विपक्षी महाविकास अघाड़ी (MVA) की ओर झुकाव दिखाया. उन्होंने इसी महीने राहुल गांधी से मुलाकात की और उन्हें टॉलकटोरा स्टेडियम में आयोजित इस समारोह के लिए आमंत्रित किया.
जानकर ने पीटीआई से बातचीत में कहा कि BJP ने उन्हें चुनाव से पहले छोड़ दिया और उनके अनुसार महायुति के साथ गठबंधन करना उनकी राजनीतिक भूल थी. उन्होंने बताया कि शरद पवार ने कुछ निजी मुद्दों के चलते आने से मना कर दिया और गांधी ने भी स्वयं आने के बजाय सपकाल को भेजकर रस्मअदायगी की.
बता दें कि धनगर समुदाय महाराष्ट्र की राजनीति में खास प्रभाव रखता है. सोलापुर, सांगली, बारामती, परभणी और सतारा जैसे लोकसभा क्षेत्रों में इनकी मजबूत उपस्थिति है, जो 25 से 30 विधानसभा सीटों के नतीजों को प्रभावित कर सकती है. जानकर ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन को भी समारोह के लिए निमंत्रण भेजा था. लेकिन बड़े विपक्षी नेताओं की अनुपस्थिति से यह स्पष्ट है कि जानकर को फिलहाल ना सत्ता पक्ष और ना ही विपक्ष से पूरा समर्थन मिल पा रहा है, जिससे उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़े हो रहे हैं.