पंजाब एंड महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक (PMC Bank) एक बार फिर सुर्खियों में है. इस बार वजह है एक ऐसा लोन मामला, जो बैंकिंग प्रक्रिया में मौजूद चौंकाने वाली खामियों को उजागर कर रहा है.
एक हालिया फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट में सामने आया है कि बैंक ने पृथ्वी रियल्टर्स एंड होटल्स प्रा. लि. नाम की कंपनी को 87.5 करोड़ का लोन स्वीकृत किया था. लेकिन हैरानी की बात यह है कि यह पूरी रकम केवल दस्तावेज़ों में ही मौजूद रही. असल में कोई डिस्बर्समेंट नहीं किया गया. इसके बावजूद, ब्याज लगातार जुड़ता रहा और बकाया बढ़कर 150 करोड़ से अधिक हो गया.
यह जांच चार्टर्ड अकाउंटेंट दीपक सिंघानिया एंड एसोसिएट्स द्वारा की गई, जिन्होंने बैंक और कंपनी के बीच चल रही एक आर्बिट्रेशन प्रक्रिया के दौरान दाखिल दस्तावेजों की समीक्षा की. इसमें लोन स्वीकृति पत्र, मॉर्गेज डीड्स और बैंक स्टेटमेंट्स शामिल थे.
ऐसे हुआ फ्रॉड
ऑडिट में यह स्पष्ट हुआ कि पहले 10 करोड़ की मॉर्गेज ओवरड्राफ्ट की सुविधा दी गई थी, जिसे बाद में बढ़ाकर 87.5 करोड़ कर दिया गया. इसके बदले वसई (ठाणे) की 53,680 वर्ग मीटर जमीन को गिरवी रखा गया था. लेकिन 31 अक्टूबर 2012 के बाद से खाते में कोई ट्रांजेक्शन दर्ज नहीं हुआ न कोई फंड आया, न कोई इस्तेमाल या भुगतान.
डिस्बर्स ही नहीं हुआ लोन
ऑडिट में दर्ज टिप्पणियों में कहा गया, "कोई फाइनेंशियल ट्रेल मौजूद नहीं है जो यह दर्शाए कि लोन अमाउंट का डिस्बर्समेंट हुआ हो. सिर्फ लगातार ब्याज जुड़ने की एंट्री हैं."
'ये चूक नहीं प्लानिंग से की गई धोखाधड़ी'
मामला जब आर्बिट्रेशन ट्रिब्यूनल के सामने पहुंचा, तो पैनल ने इसे केवल प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि एक पूर्वनियोजित वित्तीय धोखाधड़ी करार दिया. ट्रिब्यूनल ने जाली दस्तावेजों, पहचान के दुरुपयोग और जानबूझकर की गई गलतबयानी की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह मामला आर्बिट्रेशन की सीमा से बाहर है और ऐसे धोखाधड़ी के प्रकरणों पर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के अनुसार सुनवाई नहीं की जा सकती.
जल्द होगी सुनवाई
अब यह विवाद नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) में विचाराधीन है, जहां जल्द ही इस पर सुनवाई होगी कि जब लोन की असल राशि कभी जारी ही नहीं की गई, तो वह कानूनी रूप से वसूलने योग्य मानी जा सकती है या नहीं. विशेषज्ञों का मानना है कि यह केस आने वाले समय में बैंकिंग गवर्नेंस और लोन अप्रूवल की पारदर्शिता को लेकर एक बड़ी मिसाल बन सकता है.