नाशिक शहर में 2027 में होने वाले सिंहस्थ कुंभ मेले के लिए साधुग्राम निर्माण के तहत 1800 पेड़ काटने की तैयारी नगर निगम ने शुरू कर दी है. इसी कारण 1800 पेड़ों की कटाई प्रस्तावित है, और इस पर पर्यावरण कार्यकर्ताओं व नागरिकों ने मोर्चा खोला है. राजनीतिक दलों द्वारा भी विरोध जारी है.  इसके लिए ग्रीन मार्किंग का काम भी शुरू हो चुका है. साधू-महंतों के ठहरने की व्यवस्था करने के लिए 1500 एकड़ में साधुग्राम बसाया जाना है. ऐसे माहौल में नितेश राणे द्वारा उठाए गए सवाल से विवाद और भड़क उठा है. उन्होंने कहा कि तपोवन में पेड़ कटने की चिंता करने वाले बकरीद पर चुप क्यों रहते हैं? इस पर विवाद होने के बाद राणे ने जवाब दिया है.

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नितेश राणे ने अपने पोस्ट में क्या लिखा है?

नितेश राणे ने अपने एक्स पोस्ट में लिखा कि तपोवन में पेड़ों की कटाई को लेकर चिंता जताने वाले पर्यावरणवादी ईद के समय बकरियों की हत्या का विरोध कभी करते नहीं दिखाई देते. तब वे चुप क्यों रहते हैं? क्या सभी धर्म समान हैं? 

नितेश राणे ने विवाद के बाद दिया जवाब

अपने बयान पर विवाद बढ़ने के बाद मीडिया से बात करते हुए नितेश राणे ने कहा, “ये लोग पेड़ों को गले लगाते हैं, तो बकरी को क्यों नहीं लगाते? ईद में बड़े पैमाने पर बकरियों की हत्या होती है, खून बहता है, लेकिन तब पर्यावरणवादी बोलते नहीं दिखाई देते.

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उन्होंने आगे कहा, “कभी यह कहते नहीं कि वर्चुअल बकरी ईद मनाओ. फिर एक धर्म के लिए एक न्याय और दूसरे के लिए दूसरा क्यों? मैं तो बस इतना पूछ रहा हूं.” उन्होंने आगे कहा, “पेड़ जिंदा रहें, यह पर्यावरण की दृष्टि से सही मुद्दा है. लेकिन अगर पेड़ों को गले लगा सकते हैं तो बकरी को क्यों नहीं? मेरा सवाल बिल्कुल सरल है.”

नितेश राणे ने खड़ा किया सवाल

राणे ने आगे कहा, “बकरी क्या जानवर नहीं है? सोसायटी और घरों के आस-पास ईद पर खून बहता हुआ दिखता है. तब ये पर्यावरण प्रेमी कहां होते हैं? यह मेरा सीधा सवाल है. कौन ऑक्सीजन देता है, कौन नहीं यह अलग मुद्दा है. 

विजय वडेट्टीवार मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं. वे शायद भूल गए हैं कि कांग्रेस नेता होने से पहले वे हिंदू भी हैं. उन्होंने कहा कि हमारे त्योहारों और धार्मिक कार्यक्रमों पर ही सवाल क्यों उठते हैं? दूसरे धर्मों के त्योहारों पर सवाल क्यों नहीं?”

हिंदू धर्म और त्योहारों को लगातार निशाना बनाया जाता है- नितेश राणे

राणे ने आगे कहा, “कुंभ मेले के चलते पेड़ कट रहे हैं  यही मुद्दा है. साधुग्राम के लिए जमीन दी जा रही है. लेकिन सवाल ये है कि ऐसे मुद्दे सिर्फ हिंदुओं के त्योहारों के समय ही क्यों उठते हैं? पेड़ काटना या न काटना अलग बहस है. 

उन्होंने कहा कि जिस कारण से पेड़ काटे जा रहे हैं, उसी को मुद्दा बनाकर हिंदू धर्म और त्योहारों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है. कुंभ मेले की इतनी तैयारी चल रही है, लेकिन कुछ लोगों को इससे एलर्जी है, इसलिए वे इसकी बदनामी पर उतर आए हैं.”

कुंभ मेले को लेकर क्या बोले नितेश राणे?

उन्होंने आगे कहा, “यह मुद्दा भाजपा या राष्ट्रवादी का नहीं है. क्या कुंभ मेला बीजेपी का कार्यक्रम है?अगर हिंदू त्योहार पर अचानक सवाल उठने लगे, अचानक पेड़ों को गले लगाने का कार्यक्रम शुरू हो जाए, तो दूसरे धर्मों के त्योहारों पर विरोध क्यों नहीं? बकरियां क्यों काटी जाती हैं? क्या यह पर्यावरण नुकसान नहीं? खून बहकर पानी में जाता है तब पर्यावरणवादी कहां गायब हो जाते हैं?”