2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम धमाके मामले में 17 साल बाद मुंबई की स्पेशल NIA कोर्ट ने फैसला सुनाया है. कोर्ट ने पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित समेत सभी 7 आरोपियों को बरी कर दिया है.
जज ए.के. लाहोटी ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा और सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया. अदालत ने यह भी कहा कि जिस मोटरसाइकिल पर बम रखा गया था, वह प्रज्ञा ठाकुर की है, यह भी अभियोजन साबित नहीं कर सका. अदालत ने माना कि NIA द्वारा पेश किए गए एक लाख से अधिक पन्नों का दस्तावेज और गवाह भी अभियुक्तों को दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं थे.
2008 से अब तक इन मामले में क्या-क्या हुआ?
इस मामले की शुरुआत 29 सितंबर 2008 को हुई जब मालेगांव में बम धमाका हुआ था, जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद जनवरी 2009 में ATS ने पहली चार्जशीट दाखिल की और अप्रैल 2011 में पूरक चार्जशीट पेश की.
2011 में ही गृह मंत्रालय ने NIA को इस केस की आगे की जांच सौंप दी. मई 2016 में NIA ने अपनी दूसरी पूरक चार्जशीट में MCOCA की धाराएं हटाते हुए साध्वी प्रज्ञा, लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित और अन्य पर से कुछ गंभीर आरोप हटाए.
दिसंबर 2017 में स्पेशल जज एस.डी. टेकेले ने भी MCOCA हटाकर UAPA, IPC, आर्म्स एक्ट और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम की धाराओं में आरोप तय किए. 19 अप्रैल 2025 को अंतिम दलीलें पूरी हुईं और 31 जुलाई 2025 को कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया.
कोर्ट ने क्यों किया बरी?
इस केस में कुल सात आरोपी थे: साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, समीरा कुलकर्णी, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी और सुधाकर चतुर्वेदी. अदालत ने सभी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया.
मामले में सबसे बड़ी चुनौती यह रही कि अभियोजन पक्ष न केवल धमाके से जुड़े तकनीकी साक्ष्य बल्कि मोटरसाइकिल, विस्फोटक की खरीद-फरोख्त और साजिश का पुख्ता प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका. यही वजह रही कि अदालत ने यह मान लिया कि मामला संदेह से परे साबित नहीं हो सका और सभी आरोपी दोषमुक्त हुए.