Maharashtra Orange-Cotton News: महाराष्ट्र में नागपुर के आसपास के तपते खेतों में प्याज ने हजारों किलोमीटर दूर शुरू हुए ‘व्यापार युद्ध’ में संतरे को कड़ी टक्कर दी है. इसकी मार कपास की फसल पर भी देखी जा रही है.संतरे के लिए प्रसिद्ध महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के हजारों किसानों के पास इस फल ​​का अतिरिक्त भंडार है और परस्पर-विरोधी विदेशी व्यापार नीतियों, बाजार शक्तियों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार निर्भरता के जटिल ताने-बाने के कारण ये किसान इस उपज को अपने मुख्य निर्यात बाजार बांग्लादेश में बेच नहीं पा रहे हैं.


संतरा उत्पादक किसान पिछले साल तक रोजाना 6,000 टन फल बांग्लादेश भेजते थे, लेकिन ढाका द्वारा संतरे पर आयात शुल्क बढ़ाकर नवंबर, 2023 में 88 रुपये प्रति किलोग्राम करने के बाद यह व्यापार कम हो गया. बांग्लादेश में संतरे की कीमत इतनी अधिक है कि स्थानीय कारोबारियों के लिए भारत से संतरे खरीदना लाभ का सौदा नहीं रह गया है. 


'प्रतिशोध में बढ़ा दिया बांग्लादेश ने आयात शुल्क'
नागपुर संतरा फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी के अध्यक्ष मनोज जवांजल ने नागपुर से लगभग 60 किलोमीटर पश्चिम में स्थित अपने बगीचे में मीडिया से बात करते हुए कहा, "अब हम प्रतिदिन मुश्किल से 100 टन या पांच ट्रक संतरे ही बाहर भेज पाते हैं." विदर्भ के किसानों का मानना ​​है कि घरेलू बाजार की सुरक्षा के लिए भारत द्वारा स्थानीय व्यंजनों के प्रमुख उत्पाद प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के प्रतिशोध में बांग्लादेश ने आयात शुल्क बढ़ा दिया है. पिछले साल दिसंबर में प्याज निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध पर सरकार ने पिछले महीने के अंत में ढील दी थी.


इससे बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), भूटान, बहरीन, मॉरीशस और श्रीलंका को इसके निर्यात की अनुमति मिल गई.यह साफ नहीं है कि बांग्लादेश को प्याज का निर्यात शुरू होने से क्या वहां की सरकार संतरे पर आयात कर में कुछ राहत देगी. किसानों का कहना है कि बांग्लादेश के लोगों को हर भोजन के बाद नागपुर का संतरा चाहिए होता है. इसके रसदार गूदे में सही पीएच मान होता है जो मांस से भरपूर आहार लेने के बाद पेट को आराम देने के लिए आम तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. ऐसा नहीं है कि इस प्रतिस्पर्धी व्यापार जंग का नुकसान सिर्फ संतरे को ही उठाना पड़ रहा है.


किसानों की कपास ने भी बढ़ाई मुश्किल
कपास की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने भी विदर्भ के किसानों को प्रभावित किया है. यह इलाका कपास के लिए इतना उपजाऊ है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक शासकों ने 19वीं सदी के अंत में यहां से कपास की गांठों को बंबई (अब मुंबई) पहुंचाने के लिए यहां रेल नेटवर्क बिछा दिया था. प्रगतिशील किसान मनोज खुटाटे ने मीडिया से कहा, "मेरे पास अब भी पिछले साल की फसल का 130 क्विंटल कपास है. मैं इसे तब 8,500 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच सकता था. मुझे उम्मीद थी कि कीमत बढ़ेगी, लेकिन इसका उलटा हुआ."


खुटाटे की चिंता यह है कि कपास को लंबे समय तक रखा नहीं जा सकता क्योंकि यह समय के साथ पीली पड़ने लगती है और गुणवत्ता भी खराब हो जाती है. वर्तमान में, कपास की कीमतें 7,100- 7,300 रुपये प्रति क्विंटल के दायरे में हैं, जो किसानों के अनुसार खेती की लागत को पूरा नहीं करती है. जवांजल के भतीजे अपूर्व प्रशिक्षित मैकेनिकल इंजीनियर थे लेकिन वह बेंगलुरु में नौकरी छोड़कर पारिवारिक व्यवसाय से जुड़ने के लिए काटोल लौट आए. अपूर्व ने कहा कि परिवार अब बगीचे में संतरे के पेड़ों से उपज बेचने के लिए पूरी तरह से वारूद और अमरावती के नजदीकी बाजारों पर निर्भर है.


'10-20 रुपये/किलो के घाटे पर बेचने पड़ रहे संतरे'
उन्होंने कहा कि किसानों को उत्पादन लागत की तुलना में 10-20 रुपये प्रति किलोग्राम के घाटे पर संतरे बेचने पड़ रहे हैं. अपूर्व ने कहा, "जब हम बांग्लादेश को संतरे भेजते थे और अब की कीमतों में बहुत अंतर है. पहले चीजें बेहतर थीं." केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने दिसंबर में लोकसभा में स्वीकार किया था कि बांग्लादेश द्वारा आयात शुल्क दरों में वृद्धि से भारत के संतरा निर्यात पर असर पड़ा है. 


निर्यात का चुनाव पर पड़ेगा असर?
संतरा उत्पादन के लिए मशहूर इस इलाके में मीडिया से बात करने वाले कई किसानों ने कहा कि उन्होंने इन मुद्दों को राजनीतिक नेतृत्व के सामने उठाया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. उन्होंने संकेत दिया कि इस संकट का असर मौजूदा लोकसभा चुनाव में उनके वोट पर भी पड़ सकता है.


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