Badlapur Molestation Case: बदलापुर मामले में आरोपी प्रिंसिपल और दोनों ट्रस्टी को SIT ने फरार घोषित कर दिया गया है. क्राइम ब्रांच और साइबर पुलिस की टीम दोनों आरोपियों की तलाश कर रही है. एसआईटी ने इन तीनों के खिलाफ लापरवाही के मामले में केस दर्ज किया था और इन्हें बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया था. पुलिस सूत्रों ने बताया कि तीनों जांच में शामिल हुए बिना पुलिस को सहयोग नहीं कर रहे हैं, साथ ही जब पुलिस तीनों के घर गई तो पुलिस को तीनों आरोपी घर पर नहीं मिले.

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कोर्ट ने क्या निर्देश दिया?बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार को ठाणे जिले के एक शिक्षा अधिकारी द्वारा दायर याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया, जिसमें बदलापुर के एक स्कूल में दो लड़कियों के कथित यौन शोषण के बाद उनके निलंबन पर रोक लगाने की मांग की गई थी. अधिकारी बालासाहेब रक्षे ने महाराष्ट्र प्रशासनिक न्यायाधिकरण (एमएटी) के समक्ष अपनी याचिका की अंतिम सुनवाई तक निलंबन आदेश पर रोक लगाने का उच्च न्यायालय से आग्रह किया, जिसने 26 अगस्त को उन्हें अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था.

उन्होंने उच्च न्यायालय से राज्य सरकार को इस पद पर किसी अन्य अधिकारी की नियुक्ति करने से रोकने का अनुरोध किया. रक्षे ने अपने निलंबन आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया, जिसमें दावा किया गया कि सरकारी आदेश राजनीति से प्रेरित है और उन्हें बलि का बकरा बनाया गया है. न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने सरकार को 6 सितंबर तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया, जब वह याचिका पर सुनवाई करेगी.

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रक्षे के वकील एस बी तालेकर ने अदालत से तब तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश देने की मांग की, लेकिन अदालत ने कहा कि वह अगली सुनवाई में इस पर विचार करेगी. तालेकर ने तर्क दिया कि रक्षे की ओर से कोई कदाचार नहीं हुआ और सरकार बदलापुर की घटना के बाद केवल अपना चेहरा बचाना चाहती थी.

बदलापुर के एक स्कूल में एक पुरुष परिचारक द्वारा दो किंडरगार्टनरों का यौन शोषण किया गया. याचिकाकर्ता (रक्षे) को बलि का बकरा बनाया गया है. वकील ने कहा कि सरकार ने पहले मीडिया के सामने बयान दिया कि दो शिक्षा अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है और फिर निलंबन आदेश जारी किया. रक्षे ने निलंबन आदेश पर रोक लगाने के लिए पहले एमएटी से अंतरिम राहत मांगी थी, जिसके बारे में उनका दावा था कि यह मनमाना, भेदभावपूर्ण और दुर्भावनापूर्ण है. हालांकि, जब न्यायाधिकरण ने उन्हें अंतरिम राहत देने वाला कोई आदेश पारित करने से इनकार कर दिया, तो रक्षे ने इस सप्ताह की शुरुआत में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.

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