Mumbai News: मुंबई पुलिस कमिश्नर संजय पांडे ने पिछले महीने एक आदेश जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा सकती है जो उन मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं करते हैं जब लोग उनके पास शिकायत लेकर आते हैं. ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब पुलिस शिकायतकर्ता की एफआईआर इस वजह से दर्ज नहीं करती ताकि उसके अधिकार क्षेत्र में कम से कम अपराध दिखाए जा सकें.
FIR दर्ज न करने पर हो सकती है 6 महीने की सजा
एक अधिकारी ने कहा कि पांडेय द्वारा जारी आदेश के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 166 सी के तहत प्राथमिकी दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जा सकती है. अधिनियम में कहा गया है कि लोक सेवक होने के नाते यदि कोई संज्ञेय अपराध के संबंध में दंड संहिता की धारा 154 की उप-धारा(1) के तहत उसे दी गई किसी भी जानकारी को दर्ज करने में विफल रहता है तो उसे कठोर कारावास में दंडित किया जाएगा. सजा की अवधि 6 महीने से कम नहीं होगी और इसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है.
इस स्थिति में कमिश्नर को दर्ज करनी होगी एफआईआर
अधिकारी ने कहा कि आदेश के अनुसार एफआईआर दर्ज न करने के संबंध में यदि शिकायत कमिश्नर के पास पहुंचती है तो उन्हें शिकायत की जांच करनी होगी. यदि वरिष्ठ अधिकारी को पता चलता है कि संज्ञेय अपराध हुआ है फिर भी एफआईआर दर्ज नहीं की गई है तो मामले में एफआईआर दर्ज की जाएगी. इसके साथ प्राथमिकी दर्ज नहीं करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की जाएगी. पुलिस अधिकारी ने कहा कि कमिश्नर पांडे ने जब से जनता के साथ अपना मोबाइल नंबर शेयर किया है तब से उन्हें थाने में एफआईआर दर्ज न करने संबंधी कई शिकायतें मिली हैं.
पांडे के पदभार संभालते ही एफआईआर में वृद्धि
बता दें कि जब से पांडे ने कमिश्नर का पदभार संभाला है तब से पहले से अधिक एफआईआर दर्ज की गई हैं. एफआईआर दर्ज न होने वाले ज्यादातर साइबर क्राइम के मामले हैं क्योंकि इनमें अपराधी का का पदा लगाने की दर बहुत खराब है, इसलिए पुलिस इन अपराधों को दर्ज करने से बचती है. लेकिन पिछले कुछ महीनों में मुंबई पुलिस ने साइबर अपराध के मामले में भी बड़ी मात्रा में एफआईआर दर्ज की हैं.
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