मध्य प्रदेश के सिंगरौली और उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की सीमा पर बहने वाली बलिया नदी आज अपनी पहचान खो चुकी है. कभी लोगों की प्यास बुझाने वाली यह नदी अब काले, तेजाबी और बदबूदार पानी का नाला बन गई है. कोल इंडिया की मिनी रत्न कंपनी एनसीएल की कोयला खदानों से निकलने वाला अवशिष्ट पदार्थ इसकी वजह है. जिसे सालों से बिना रोक टोक इसी नदी में बहाया जा रहा है.

Continues below advertisement

ABP न्यूज की टीम जब नदी के किनारे पहुंची, तो दूर से ही तेजाब जैसी बदबू आने लगी. पानी बिल्कुल काला था और ऊपर कोयले व केमिकल की मोटी परत साफ दिख रही थी. स्थानीय लोग बताते हैं कि करीब डेढ़ दशक से यह गंदगी नदी में जा रही है, लेकिन पिछले 5 साल में हालात सबसे ज्यादा खराब हुए हैं.

यह नदी 10 किलोमीटर आगे जाकर रिहंद जलाशय में मिल जाती है, जिसके चलते अब रिहंद में भी प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा है. आसपास की दूसरी नदियाँ भी इसी तरह के केमिकलयुक्त पानी के साथ रिहंद में समाहित हो रही हैं.

Continues below advertisement

सिंघरौली ही नहीं, सोनभद्र के गांव भी पी रहे जहर

प्रदूषण का असर केवल MP तक सीमित नहीं है. सोनभद्र जिले के कोन ब्लॉक के कचनारवा पंचायत में स्थित शिकारी टोली गाँव का हाल तो और भी डराने वाला है. यहां कई लोग विकलांगता का शिकार हो चुके हैं. 35 वर्षीय राजू उरांव खुद अपाहिज हैं, मुश्किल से घिसटकर चल पाते हैं.

उनके पिता, माँ और 8 साल का बच्चा सब पर इस बीमारी का असर है. राजू की पत्नी भी घर छोड़कर चली गई क्योंकि कमाने वाला कोई नहीं बचा. गाँववालों का कहना है कि पानी में मौजूद केमिकल और प्रदूषित तत्वों ने लोगों की सेहत बिगाड़ दी है.

स्कूल के बच्चे फ्लोरोसिस के शिकार

सिंगरौली जिले के हर्रहवां गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक डॉ. सुरेंद्र तिवारी बताते हैं कि अधिकांश बच्चों के दांत पीले हो गए हैं. यह फ्लोराइड की अधिक मात्रा और फ्लोरोसिस बीमारी का असर है. उनका कहना है कि यहां का पानी बिल्कुल भी पीने लायक नहीं है, बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं.

दूषित पानी और हवा से बढ़ रही बीमारियां- डॉक्टर

डॉ. नृपेंद्र सागर बताते हैं कि इस क्षेत्र में मलेरिया, टायफाइड, खांसी, फ्लोरोसिस और स्किन की बीमारियाँ तेजी से बढ़ी हैं. उनका कहना है कि यहां की हवा और पानी दोनों बेहद दूषित हैं. लोग रोजाना जहर पीने को मजबूर हैं.

स्थानीय लोगों ने कई बार नेताओं और प्रशासन से शिकायत की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई. नदी हर दिन मर रही है, गांव बीमार हो रहे हैं और लोग मजबूर हैं कि उसी जहरीले पानी को पीकर जिएँ. बलिया नदी की मौत सिर्फ एक नदी का मुद्दा नहीं, बल्कि दो राज्यों के दर्जनों गाँवों के लोगों की ज़िंदगी और सेहत का असली संकट है.