Happy New Year 2023: कोरोना महामारी के दो साल बाद नए साल का जश्न भोपाल में जोश खरोश से मनाया जाएगा. साल 2023 का वेलकम करने के लिए झीलों की नगरी राजधानी भोपाल पूरी तरह तैयार है. राजधानी भोपाल सहित आसपास के छह स्पॉट नए साल का जश्न दोगुना करेंगे. भोपाल का बड़ा तालाब एशिया की सबसे बड़ी झील के तौर पर पहचाना जाता है. बाहर से भोपाल आने वाले सैलानी बड़ा तालाब को जरूर निहारने आते हैं. सुबह छह बजे से लेकर रात दस बजे तक पर्यटकों के आने जाने का सिलसिला लगा रहता है. झीलों की नगरी में लेकव्यू पाइंट भी लोगों के आकर्षण का केंद्र है.

नए साल का स्वागत करने को हो जाएं तैयार

साल 2023 का जश्न मनाने वाले सैलानी वन विहार जाने से भी नहीं रोक पाएंगे. वन विहार में बाघ, सिंह, तेंदुआ, भालू, हायना, सियार, गौर, बारासिंगा, सांभर, चीतल, नीलगाय, कृष्णमृग, लंगूर, जंगली सुअर, सेही, खरगोश, मगर, घडिय़ाल, कछुआ सहित विभिन्न प्रकार के सांप हैं. वन विहार में रोजाना सैलानियों की बड़ी संख्या आती है. सुबह सात से रात रात बजे तक वन विहार का आनंद लिया जा सकता है. नए साल पर वन विहार में सैलानियों की भारी भीड़ उमड़ऩे की उम्मीद है. नए साल की खुशहाली की कामना के लिए सैलानी बिड़ला मंदिर जा सकते हैं. बिड़ला मंदिर का दर्शन करने से शांति और आनंद महसूस होता है. सैलानी परिवार के साथ आकर भगवान से मनोकामना कर सकते हैं.

छह स्पॉट का दीदार जश्न को करेगा दोगुना

राजधानी भोपाल में जनजातीय संग्रहालय भी लोगों की पहली पसंद है. संग्रहालय को 40 से 60 वर्षीय लोग युवाओं के मुकाबले ज्यादा पसंद करते हैं. अलग-अलग छह कला दीर्घाएं और प्रतीक चिह्न बिरछा जनजातीय संग्रहालय का आकर्षण हैं. कला दीर्घाओं में जनजातीय जीवन शैली के अलग-अलग हिस्सों को दर्शाया गया है. जनजातीय संग्रहालय में प्रदेश की बैगा, सहरिया, गोंड, भील, कोरकू, कोल और भारिया जनजातियों की झलकियां देखने को मिलती हैं. बैगा घर, गोंड स्थापत्य, भील घर, सहरिया, आंगन, मग रोहन, गोंड घर, पत्थर का घर, कोरकू घर से आदिवासी समूहों के घरों और दिनचर्या का पता चलता है.

संग्रहालय में आदिवासी बच्चों के खेलों जैसे मछली पकडऩा, चौपड़, गिल्ली डंडा, बुड़वा, चक्ताक, गोंदरा, पोशंबा, घर-घर, पंच गुट्टा, गेड़ी, पिठ्टू, गूछू हुड़वा भी बना है. आदिवासियों की प्राचीन परम्परा को समझने के लिए नए साल पर सैलानी आ सकते हैं. भोपाल शहर के अलावा आसपास क्षेत्रों में भी कई मनोहर दृश्य है. राजधानी से 45 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित भीमबेटका लगभग 30 हजार साल पुरानी है. भीमबेटका को यूनेस्को का विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है. माना जाता है कि स्थान का संबंध महाभारत के भीम चरित्र से है. महाभारत का भीम चरित्र से संबंध होने के कारण नाम भीमबेटका पड़ा है.

भीमबेटका की गुफाओं को घूमने के लिए बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं. भारतीयों के लिए इंट्री फीस दस रुपए और विदेशी मेहमानों से महज 100 रुपए लिए जाते हैं. सुबह सात से शाम छह बजे तक पर्यटन का आनंद लिया जा सकता है. भोपाल से 46 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सांची स्तूप है. गुंबद के आकार का स्मारक 120 फीट चौड़ा और 54 फीट ऊंचा है. राजधानी भोपाल के नजदीक सांच स्तूप को देखने के लिए भी संख्या में सैलानी आएंगे. सांची सहित आसपास के क्षेत्रों में होटलें अभी से फुल हैं.