MP High Court News: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने मुस्लिम युवक और हिंदू लड़की की शादी से जुड़े मामले में एक अहम फैसला सुनाया है. दोनों की ओर से कोर्ट में धर्म परिवर्तन किए बिना शादी को रजिस्टर करने और पुलिस सुरक्षा देने की मांग की गई थी. इस पर हाई कोर्ट के जस्टिस जी एस अहलुवालिया की सिंगल बेंच ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के के निकाह के लिए धर्मांतरण करना जरूरी है, लेकिन इस मामले में लड़की ने धर्मांतरण नहीं किया है. इसलिए इस विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है.

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याचिकाकर्ता 23 साल के मुस्लिम युवक और 23 साल की हिंदू युवती की ओर से अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने पैरवी की. अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने बताया कि अनूपपुर के रहने वाले मुस्लिम युवक और हिंदू युवती ने अक्टूबर 2023 में कोर्ट में एक याचिका लगाई थी. इसमें दोनों ने स्पेशल मैरिज एक्ट में शादी रजिस्टर करवाने की मांग की थी. इसके साथ ही दोनों ने परिवार के सदस्यों और हिंदू संगठनों द्वारा धमकाने के आरोप लगाए थे. याचिका के माध्यम से दोनों ने पुलिस की सुरक्षा मुहैया करवाने की अपील की थी.

कोर्ट ने सुरक्षा देने से किया इंकारजस्टिस जी एस अहलूवालिया की सिंगल बेंच में बीते सात दिनों से इस याचिका पर नियमित सुनवाई चल रही थी. कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर बिना धर्मांतरण के हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के की शादी को अवैध करार दिया. एक विशेष टिप्पणी के साथ कोर्ट ने दोनों को सुरक्षा देने से भी इंकार कर दिया. 

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जस्टिस अहलुवालिया ने कहा कि 'मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार हिंदू लड़की और मुस्लिम लड़के के निकाह के लिए धर्मांतरण करना जरूरी है, लेकिन इस मामले में लड़की ने धर्मांतरण नहीं किया है. इसलिए इस विवाह को वैध नहीं माना जा सकता है. कोर्ट ने सुरक्षा देने की याचिका को खारिज कर दिया है, लेकिन दोनों के विवाह से जुड़ी याचिका पर सुनवाई जारी रहेगी.'

याचिकाकर्ता ने क्या कहा?याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता एक दूसरे से प्रेम करते है. उन्होंने विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह पंजीकरण अधिकारी के समक्ष आवेदन किया है. विवाह पंजीकरण अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के लिए उन्हें पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए. याचिका में कहा गया कि युवती के पिता अंतर जाति विवाह का विरोध कर रहे हैं. 

याचिका की सुनवाई के दौरान अनावेदक पिता की तरफ से बताया गया कि उसकी बेटी घर से सभी आभूषण ले गयी है. इसके अलावा वह मुस्लिम लड़के से अंतर जाति विवाह करती है तो समाज उसका बहिष्कार कर देगा. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय की तरफ से दलील दी गयी कि दोनों अपने-अपने धर्म का पालन करेंगे. विवाह के लिए धर्म परिवर्तन करने का इरादा नहीं है. 

कोर्ट ने क्या कहा?विशेष विवाह अधिनियम व्यक्तिगत कानून को दरकिनार करता है. एकलपीठ ने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक मुस्लिम पुरुष और एक हिंदू महिला के बीच विवाह से पैदा हुए बच्चों के उत्तराधिकार अधिकारों के संबंध में पारित आदेश का हवाला दिया. कोर्ट ने कहा कि दोनों के बीच विशेष विवाह अधिनियम के तहत हुए विवाह एक अनियमित और विवाद का विवाह होगा. एकलपीठ ने कहा कि पर्सनल लॉ के तहत विवाह की कुछ रस्मों का पालन किया जाता है.

एकलपीठ ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम लड़का किसी ऐसी लड़की से विवाह नहीं कर सकता जो मूर्तिपूजक या अग्निपूजक करती हो. इस प्रकार मुस्लिम लड़की सिर्फ मुस्लिम युवक से विवाह कर सकती है. विशेष विवाह अधिनियम के तहत पंजीकृत होने के बावजूद भी पर्सनल लॉ के तहत यह वैध विवाह नहीं होगा. एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा कि याचिका लिव-इन रिलेशनशिप में रहने या धर्म परिवर्तन से संबंधित नहीं है. इसलिए न्यायालय याचिका को हस्तक्षेप करने के आयोग्य मानते हुए खारिज करती है.