Nursing and Midwifery Students Result: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने नर्सिंग एण्ड मिडवाइफरी के छात्रों को बड़ी राहत दी है. कोर्ट ने राज्य सरकार को जनरल नर्सिंग एण्ड मिडवाइफरी परीक्षा का रिजल्ट घोषित करने के लिए स्वतंत्र कर दिया है. हालांकि, हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि परीक्षा परिणाम इस याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगे. महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने इस संबंध में अंडरटेकिंग दी है. राज्य के बहुचर्चित नर्सिंग कॉलेज फर्जीवाड़ा को लेकर दायर याचिकाओं पर बुधवार (24 जनवरी) को हुई सुनवाई के हाई कोर्ट की विशेष बेंच ने यह निर्देश दिया.


यहां बताते चले कि प्रदेश भर में जनरल नर्सिंग एण्ड मिडवाइफरी के लगभग 61 हजार छात्रों का रिजल्ट रुका हुआ था. मंगलवार को दो जजों के तरफ से खुद को सुनवाई से अलग करने के बाद बुधवार को जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस ए के पालीवाल की विशेष बेंच गठित कर मामले की सुनवाई की गई. राज्य शासन की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने नर्सिंग काउंसिल की ओर से आवेदन पेश कर जीएनएम की परीक्षाओं के रिजल्ट जारी करने की अनुमति कोर्ट से मांगी.आवेदन पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि डिप्लोमा कोर्स की परीक्षाओं और रिजल्ट पर कोई रोक नहीं लगाई गई है. इसलिए उनके रिजल्ट जारी करने के लिए सरकार अपने स्तर पर निर्णय ले सकती है.


सीबीआई ने पेश की रिपोर्ट


इस दौरान नर्सिंग फर्जीवाड़े से जुड़ी लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल की जनहित याचिका के साथ लगभग 50 से मामलों की एक साथ सुनवाई हुई. याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि सीबीआई की तरफ से जो रिपोर्ट पेश की गई है, वह मध्य प्रदेश के सिर्फ 308 कॉलेज के संबंध में है. उन्होंने बताया कि अभी भी 396 नर्सिंग कॉलेज ऐसे हैं, जिनकी जांच सीबीआई की तरफ से नहीं की गई है. इसी तरह फैकल्टी डुप्लीकेसी और फर्जी फैकल्टी वाले मामले में भी सीबीआई की तरफ से कार्यवाही नहीं की गई है.


फर्जी कॉलेजों के संचालन को चुनौती


जस्टिस संजय द्विवेदी और जस्टिस ए के पालीवाल की कोर्ट ने कहा कि सीबीआई की रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही इस संबंध में कोई निर्देश जारी किए जाएंगे. राज्य शासन को प्रस्ताव दिया गया कि सीबीआई की तरफ से दी गई रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई अनुशंसा के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठित की जा सकती है. इस संबंध में भी अदालत अगली सुनवाई के दौरान विचार करेगी. लॉ स्टूडेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष विशाल बघेल के मुताबिक पिछले साल यह मामला दायर किया गया था. जिसमें प्रदेश में फर्जी तरीके से नर्सिंग कॉलेजों के संचालन को चुनौती दी गई है. याचिका में कहा गया है कि शैक्षणिक सत्र 2020-21 में प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य इलाकों में  कई ऐसे नर्सिंग कॉलेज को मान्यता दी गई. वास्तविकता में यह कॉलेज सिर्फ कागज में संचालित हो रहे हैं. अधिकांश कॉलेजों की निर्धारित स्थल में बिल्डिंग तक नहीं है.


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