जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ इलाके के दो BJP विधायकों पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला जमकर बरसे हैं. विधायकों की ओर से प्रोजेक्ट में दखलंदाजी पर बोलते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा सिर्फ एक ही क्यों, दोनों विपक्षी MLA इलाके के प्रोजेक्ट्स में दखलंदाजी कर रहे हैं. अगर यह आरोप मेरे MLA या मंत्री के खिलाफ होता, तो जल्दी जांच होती. मैं अधिकारियों से मामले की जांच करने की अपील करता हूं क्योंकि मेरा मानना है कि राष्ट्रीय महत्व के प्रोजेक्ट्स में कोई दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए.
मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि अधिकारियों को राष्ट्रीय महत्व के प्रोजेक्ट में दखलंदाजी और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की गंभीरता से जांच करनी चाहिए. यह बयान हैदराबाद की मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (MEIL) के आरोपों के बाद आया है, जो चिनाब नदी पर 3,700 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट बना रही है. कंपनी ने स्थानीय BJP MLA शगुन परिहार पर भर्ती और कॉन्ट्रैक्ट के फैसलों को लेकर कंपनी पर दबाव डालने का आरोप लगाया है.
रैटल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट को लेकर छिड़ा विवाद
जम्मू-कश्मीर के सबसे मुश्किल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में से एक, किश्तवाड़ में 850 मेगावाट का रैटल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट, फिर से अनिश्चितता में आ गया है, क्योंकि इसे बनाने वाली एजेंसी ने लगातार राजनीतिक दखल का आरोप लगाया है. साथ ही चेतावनी दी है कि लगातार रुकावटों की वजह से इसे काम रोकना पड़ सकता है या प्रोजेक्ट से बाहर भी निकलना पड़ सकता है.
MEIL के जॉइंट चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर और रैटल प्रोजेक्ट के इंचार्ज हरपाल सिंह ने यह चौंकाने वाला आरोप लगाया था और दावा किया था कि अगर दखल नहीं रुका तो प्रोजेक्ट में पहले से ही लगभग दो साल की देरी हो चुकी है और यह अब नवंबर 2028 तक और आगे बढ़ सकता है.
जॉइंट चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर ने क्या कहा?
जॉइंट चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर हरपाल सिंह ने दावा किया था कि 2022 में कॉन्ट्रैक्ट देते समय जिन शर्तों पर सहमति बनी थी, वे अब "काम करने लायक नहीं" रह गई हैं, जिसे उन्होंने स्थानीय नेताओं के लगातार दखल और उनके समर्थकों की अनुशासनहीनता बताया. उन्होंने कहा कि MEIL ने NHPC को ऑफिशियली बता दिया है कि अगर रुकावट जारी रहीं तो काम पूरा होने की बदली हुई टाइमलाइन भी शायद लागू न हो.
4 दिसंबर को तनाव तब और बढ़ गया, जब कंपनी के ह्यूमन रिसोर्स हेड को प्रोजेक्ट साइट से लौटते समय जोशना गांव के पास कथित तौर पर रोका गया और उन पर हमला किया गया. सिंह ने कहा कि घटना की रिपोर्ट पुलिस और किश्तवाड़ के डिप्टी कमिश्नर को मिलने के बाद FIR दर्ज की गई और कंपनी ने कथित तौर पर इसमें शामिल पांच लोगों को नौकरी से निकाल दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि तब से, गैर-कर्मचारी, जिनमें राजनीतिक कार्यकर्ता भी शामिल हैं, प्रोजेक्ट अधिकारियों और मजदूरों को नौकरी और कॉन्ट्रैक्ट की मांग करते हुए धमका रहे हैं.
MEIL ने जारी की इंटरनल एडवाइजरी
MEIL ने एक इंटरनल एडवाइजरी भी जारी की है जिसमें मजदूरों को हड़ताल या काम रोकने में शामिल न होने की चेतावनी दी गई है, और चेतावनी दी है कि ऐसे कामों को कॉन्ट्रैक्ट का उल्लंघन माना जाएगा और उन्हें नौकरी से निकाला जा सकता है, कानूनी कार्रवाई की जा सकती है और कंस्ट्रक्शन का काम रोका जा सकता है.
स्थानीय लोगों को दरकिनार किए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए, सिंह ने कहा कि कंपनी ने 1,434 स्थानीय मजदूरों को नौकरी पर रखा था, जिनमें किश्तवाड़ जिले के 960 और पड़ोसी डोडा के 220 मजदूर शामिल हैं. हालांकि, उन्होंने कहा कि बड़ी संख्या में मजदूरों के पास जरूरी स्किल्स नहीं थीं या वे दिए गए काम करने को तैयार नहीं थे.
उन्होंने यह भी कहा कि सितंबर में लेबर अधिकारियों से सही इजाजत के बाद केवल 200 मजदूरों को नौकरी से निकाला गया था, इस भरोसे के साथ कि जरूरत पड़ने पर उन्हें फिर से काम पर रखा जा सकता है. सिंह ने चेतावनी दी कि द्राबशाला में 133 मीटर ऊंचे बांध और अंडरग्राउंड पावरहाउस के कंस्ट्रक्शन के दौरान पॉलिटिकल दबाव और बार-बार काम में रुकावट से सेफ्टी और क्वालिटी दोनों पर असर पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि पब्लिक इन्वेस्टमेंट और लोकल रोजगार को बचाने के लिए प्रोजेक्ट को पॉलिटिक्स से दूर रखना चाहिए.
विधायक ने आरोपों का किया खंडन
MLA शगुन परिहार ने इन आरोपों का कड़ा खंडन किया था, और उन्हें 'गैर-जिम्मेदार' और कंपनी की अपनी नाकामियों से ध्यान हटाने की कोशिश बताया था. परिहार ने MEIL के अधिकारियों पर भर्ती में गलत तरीके अपनाने का आरोप लगाया था और कहा था कि नौकरी से निकाले गए लोकल वर्कर, जिनमें जमीन गंवाने वाले भी शामिल हैं, को कानूनी फायदे नहीं दिए गए.
इस विवाद ने लेबर ग्रुप्स के बीच बंटवारे को भी सामने ला दिया है. जहां प्रोजेक्ट में काम करने वालों की यूनियन, भवन निर्माण मजदूर संघ ने केंद्र और केंद्र शासित प्रदेश की सरकारों को चिट्ठी लिखकर अनऑथराइज्ड के दखल का आरोप लगाया और काम में रुकावट के खिलाफ चेतावनी दी, वहीं किसान मजदूर यूनियन के प्रेसिडेंट संजय परिहार की लीडरशिप में एक और ग्रुप ने कंपनी पर नौकरी से निकाले गए 38 लोकल वर्कर को फिर से काम पर रखने के समझौते से मुकरने का आरोप लगाया और कानूनी आंदोलन की धमकी दी.
रुकावटों से भरा रहा है रैटल प्रोजेक्ट का इतिहास
रैटल प्रोजेक्ट का इतिहास रुकावटों से भरा रहा है. 2008 में जम्मू और कश्मीर पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड के तहत एक राज्य-क्षेत्र प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया, इसे बाद में GVK इंडस्ट्रीज को दिया गया, जिसमें L&T ने शुरुआती काम किया. 2014 में स्थानीय विरोध प्रदर्शनों के बाद निर्माण रुक गया, जिससे इंजीनियरों को साइट छोड़नी पड़ी. जिसके बाद सरकार ने इस प्रोजेक्ट को केंद्र के साथ एक जॉइंट वेंचर के रूप में फिर से बनाया.
2021 में, NHPC और जम्मू और कश्मीर स्टेट पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड ने रैटल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाया, जिसमें NHPC के पास 51 प्रतिशत इक्विटी थी. MEIL सबसे कम बोली लगाने वाली कंपनी के रूप में सामने आई और उसे अप्रैल 2022 में निर्माण का ठेका दिया गया. केंद्रीय कैबिनेट ने जनवरी 2021 में इस प्रोजेक्ट को 5,281 करोड़ रुपये से ज्यादा की अनुमानित लागत पर मंजूरी दी थी.
आरोपों और जवाबी आरोपों के बीच, और पिछली रुकावटों की यादें अभी भी ताजा हैं. नवीनतम गतिरोध ने एक ऐसे प्रोजेक्ट के भविष्य पर गंभीर चिंताएं पैदा कर दी हैं. जिसे जम्मू और कश्मीर की बिजली सुरक्षा और आर्थिक संभावनाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है.